पितृपक्ष : श्राद्ध पक्ष को लेकर रही भ्रम की स्थिति, 15 दिन पितृपक्ष में पूर्वज आशीर्वाद देने पृथ्वी लोक पर आते हैं, श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को मिलती है शांति
लोक संस्कृति
पितृ पक्ष आरंभ हो चुके हैं। इस बार अनंत चतुर्दशी और पूर्णिमा के एक दिन 17 सितंबर को पड़ने की वजह से लोगों में थोड़ी भ्रम की स्थिति भी रही। कुछ लोग 17 सितंबर को पूर्णिमा तिथि से श्राद्ध कर रहे हैं तो कुछ 18 सितंबर से। पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष भाद्रपद पूर्णिमा से आरंभ होकर आश्विन अमावस्या तक चलते हैं। इन 15 दिनों में श्राद्ध कर्म होते हैं। मंगलवार को दोपहर करीब 11:30 बजे अनंत चतुर्दशी खत्म हो गई और पूर्णिमा शुरू हो गई ।
17 सितंबर को अनंत चतुर्दशी पर पूरे देश भर में गणेश विसर्जन भी किया गया। आमतौर पर गणेश विसर्जन के अगले दिन से पितृ पक्ष प्रारंभ होते हैं। लेकिन इस बार मंगलवार दोपहर बाद पूर्णिमा लगते ही श्राद्ध पक्ष शुरू हो गए । आज सुबह करीब 8 :44 बजे पूर्णिमा का समापन हो गया है। पितरों को समर्पित 15 दिनों की अवधि बहुत शुभ मानी जाती है। इन दिनों पितरों की आत्मा की शांति पिंडदान, श्राद्ध कर्म, तर्पण आदि कार्य किए जाते हैं। पितृपक्ष में बिहार के गया में सबसे ज्यादा लोग श्राद्ध करने पहुंचते हैं।
पिंडदान में पितरों को भोजन का दान दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष यानी पूर्वज श्राद्ध में गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी या देवताओं के रूप में आकर भोजन ग्रहण करते हैं। इसलिए पितृ पक्ष के दौरान भोजन के पांच अंश निकालने का विधान है।
श्राद्ध पक्ष में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इसके साथ कोई नया सामान भी खरीदना अच्छा नहीं माना जाता है। श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वह तृप्त होकर श्राद्ध करने वाले की सभी कामनाओं को पूरा करते हैं। इसके अलावा श्राद्ध करने वाले व्यक्ति से विश्वेदेव गण, पितृ गण, मातामह और कुटुंबजन सभी संतुष्ट रहते हैं।
धार्मिक मान्यता के मुताबिक पितृ पक्ष में पितृ स्वयं श्राद्ध लेने आते हैं और श्राद्ध मिलने पर प्रसन्न होते हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित शशिशेखर त्रिपाठी कहते हैं कि भ्रम होने का कारण यह है कि सामान्यतः प्रतिपदा यानी पहली तिथि से हिन्दी मास प्रारम्भ होता है लेकिन भाद्रपद की पूर्णिमा को पूर्णिमा श्राद्ध होता है और यह 17 सितंबर को थी। केवल भाद्रपद की पूर्णिमा को छोड़कर अन्य पूर्णिमाओं में पिंडदान का निषेध है, क्योंकि भाद्रपद की पूर्णिमा अमावस्या के तुल्य मानी गई है। इसलिए आज पूर्णिमा का श्राद्ध किया जाएगा। इसलिए पितृपक्ष 17 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक चलेगा।
वहीं ज्योतिषाचार्य एस एस नागपाल ने बताया कि वैसे तो 17 सितंबर को पूर्णिमा श्राद्ध थी, लेकिन 18 सितंबर प्रतिपदा श्राद्ध से ही पितृ पक्ष की शुरुआत मानी जाएगी और 2 अक्टूबर को समापन होगा।
पितृ पक्ष के दौरान पितरों की आत्माशांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के कार्य किए जाते हैं—
पितृपक्ष में हम लोग अपने पितरों को याद करते हैं और याद में दान धर्म का पालन करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ नाराज हो जाएं तो घर की तरक्की में बाधाएं उत्पन्न होने लगती हैं। वर्ष में पंद्रह दिन की विशेष अवधि में श्राद्ध कर्म किए जाते हैं और इसकी शुरुआत हो चुकी है। श्राद्ध पक्ष को पितृपक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर सर्वपितृ अमावस्या तक पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष कहलाती है। पितृ पक्ष के दौरान पितरों की आत्माशांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के कार्य किए जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में घर के दिवंगत पूर्वज पितृ लोग से धरती लोक पर आते हैं। इस दौरान श्राद्ध और धार्मिक अनुष्ठान से पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार के सदस्यों पर अपना आशीर्वाद बनाए रखते हैं।
आपको बता दें कि 28 सितंबर को किसी तिथि का श्राद्ध नहीं होगा, क्योंकि दोपहर 12 बजे तक तिथि परिवर्तित नहीं हो रही। वहीं चतुर्दशी तिथि को सिर्फ शस्त्र, विष, दुर्घटनादि (अपमृत्यु) से मृतक का श्राद्ध होता है। उनकी मृत्यु चाहे किसी अन्य तिथि में हुई हो। चतुर्दशी तिथि में सामान्य मृत्यु वालों का श्राद्ध व अमावस्या तिथि में सर्वपितृ श्राद्ध करने का शास्त्र विधान है।पितृपक्ष के दौरान आइए जानते हैं क्या करना चाहिए। इस अवधि में दोनों वेला में स्नान करके पितरों को याद करना चाहिए। कुतुप वेला में पितरों को तर्पण दें और इसी वेला में तर्पण का विशेष महत्व भी होता है। तर्पण में कुश और काले तिल का विशेष महत्व है। कुश और काले तिल के साथ तर्पण करना अद्भुत परिणाम देता है। जो कोई भी पितृ पक्ष का पालन करता है उसे इस अवधि में सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। पितरों को हल्कि सुगंध वाले सफेद फूल ही अर्पित करें। तीखी सुगंध वाले फूल वर्जिक हैं। इसके अलावा, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों का तर्पण और पिंड दान करें। पितृ पक्ष में हर रोज गीता का पाठ जरूर करें। वहीं, कर्ज लेकर या दबाव में कभी भी श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए।
इस बार श्राद्ध 2024 की सभी प्रमुख तिथियां इस प्रकार रहेंगी–
प्रोषठपदी\ पूर्णिमा का श्राद्ध : 17 सितंबर मंगलवार
प्रतिपदा का श्राद्ध : 18 सितंबर बुधवार
द्वितीया का श्राद्ध : 19 सितंबर गुरुवार
तृतीतया का श्राद्ध : 20 सितंबर शु्क्रवार
चतुर्थी का श्राद्ध : 21 सितंबर शनिवार
पंचमी का श्राद्ध : 22 सितंबर रविवार
षष्ठी का श्राद्ध और सप्तमी का श्राद्ध : 23 सितंबर सोमवार
अष्टमी का श्राद्ध : 24 सितंबर मंगलवार
नवमी का श्राद्ध : 25 सितंबर बुधवार
दशमी का श्राद्ध : 26 सितंबर गुरुवार
एकादशी का श्राद्ध : 27 सितंबर शुक्रवार
द्वादशी का श्राद्ध : 29 सितंबर रविवार
मघा का श्राद्ध : 29 सितंबर रविवार
त्रयोदशी का श्राद्ध : 30 सितंबर सोमवार
चतुर्दशी का श्राद्ध : 1 अक्टूबर मंगलवार
सर्व पितृ अमावस्या : 2 अक्टूबर बुधवार