जागेश्वर धाम के कर्मचारियों का ड्रेस कोड जारी हुआ
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
जागेश्वर धाम भगवान शिव का मंदिर ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यह मंदिर लगभग 2500 वर्ष पुराना है। शिव पुराण, लिंग पुराण और स्कंद पुराण आदि पौराणिक कथाओं में भी मंदिर का उल्लेख है। मंदिर में शिलालेख, नक्काशी और मूर्तियां एक खजाना है। जाटगंगा नदी की घाटी में स्थित मंदिर में वास्तुकला और इतिहास के लिहाज से भी कई पौराणिक सामग्री हैं। इस मंदिर की एक खास बात यह भी है कि इसे गौर से देखने पर इसकी बनावट बिल्कुल केदारनाथ मंदिर की तरह नजर आती है। यहां तक कि इस मंदिर के अंदर करीब 124 ऐसे छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं जो जागेश्वर धाम का परिचय देता है।
विश्व प्रसिद्ध जागेश्वर धाम के कर्मचारी अब एक जैसे ट्रैक शूट और टी शर्ट में दिखेंगे। धाम में मंदिर समिति ने ड्रेस कोड लागू कर दिया है कार्मिकों की दूर से ही अलग पहचान हो सकेगी। जागेश्वर मंदिर समिति में अब तक कार्मिकों की अलग से कोई पहचान नहीं थी। ऐसे में यहां आने वाले श्रद्धालु और पर्यटकों को पूछताछ आदि में दिक्कतें होती थीं। ऐसे में अब मंदिर में ड्रेस कोड लागू कर दिया गया है।समिति की बैठक में भी कई बार इस मुद्दे पर मंथन हुआ। इधर, अब समिति ने मंदिर में ड्रेस कोड लागू कर दिया है। कार्मिकों के लिए नारंगी टी शर्ट और लाल व नीले रंग का ट्रैक शूट और लोअर निर्धारित किया है। इस यूनिफार्म में ही वे अपनी ड्यूटी देंगे। इससे कार्मिकों की अलग पहचान हो सकेगी। वहीं आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को भी काफी हद तक सहायता मिलेगी। इससे पहले श्रद्धालुओं के लिए ड्रेस कोड लागू किया गया था। जागेश्वर धाम में कर्मचारियों के लिए ड्रेस कोड लागू किया गया है, लेकिन उत्तराखंड के कई ऐसे मंदिर हैं, जिसमें श्रद्धालुओं के लिए भी ड्रेस कोड है।
दरअसल सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आई जिसको लेकर विवाद शुरू हो गया। छोटे कपड़े पहनकर लड़कियों के मंदिर में जाने को लेकर विवाद हुआ और इसको देखते हुए उत्तराखंड के कई मंदिरों में ड्रेस कोड लागू कर दिया गया। उत्तराखंड में मंदिरों के अंदर छोटे कपड़े पहन कर एंट्री कर पाना मुश्किल है। न सिर्फ जागेश्वर धाम बल्कि कई ऐसे प्रसिद्ध मंदिर है जहां पर ड्रेस कोड लागू कर दिया गया है। इससे पहले दक्ष प्रजापति मंदिर और नीलकंठ महादेव मंदिरों में ड्रेस कोड लागू हो गया था। इससे संबंधित पोस्टर भी लगा दिए गए थे। महिला हो या पुरुष अमर्यादित वस्त्रों में इन मंदिरों में प्रवेश नहीं कर पाएगा। कांवड़ मेले से पूर्व यह फैसला लिया गया था। इसके अलावा कुछ मंदिरों में अमर्यादित कपड़े पहनकर जाने पर भी रोक लगा दी गई है। ऐसे में लोगों की अहम जिम्मेदारी बनती है, कि वह मंदिर परिसर के अंदर हमेशा मर्यादित रहें।
हालांकि, मंदिर में आने वाले श्रद्धालु भी इन नियमों से खुश हैं। महिलाओं का कहना है कि मंदिरों में आने के लिए नियम तो होने ही चाहिए।ऐसा न हो कि कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह के कपड़ों में मंदिर में प्रवेश कर ले। लोगों की अटूट भावपूर्ण श्रद्धा, विश्वास और शक्ति स्वरूपा के प्रति आस्था रहें।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )