अवैध रूप से हुए खड़िया खनन (chalk mining)
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा के लिहाज से बागेश्वर बेहद संवेदनशील जिला है। बीते सालों में यहां भूस्खलन और ग्लेशियर खिसकने की घटनाएं बढ़ी हैं लेकिन इनसे सबक लेने की बजाय सरकारी खजाना भरने के लिए प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। साथ ही झूठी जानकारी देकर खड़िया खनन का कारोबार किया जा रहा है। इसे लेकर ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन की मिलीभगत से प्राकृतिक आपदा की जद में आए गांवों में खनन की तैयारी की जा रही है उत्तराखंड में अवैध खनन के कारोबार से जेबें भरने का खेल किस स्तर पर जारी है, इसकी एक बानगी बागेश्वर ज़िला देता है। यहां साल 2011 में 30 खड़िया खदानें थीं, जो 2021 में बढ़कर107 तक पहुंच गई हैं। जबकि इस तरह के खनन को लेकर कई विशेषज्ञों समेत 300 से ज़्यादा लोगों ने शिकायतें की हुई हैं, उसके बावजूद अंधाधुंध खड़िया खनन यहां जारी है।
इस अवैध खनन से तीन बड़े सवाल खड़े हो गए हैं। एक, जब ज़िले में इस खनन से करोड़ों के वारे न्यारे हो रहे हैं, तो यहां गरीबी दूर क्यों नहीं हो रही? दो, पर्यावरण को इससे कितना नुकसान हो रहा है? तीन, स्थानीय लोगों की सेहत के लिए यह कितना खतरनाक हो गया है? प्राकृतिक संपदा से भरपूर बागेश्वर में पहाड़ों का सीना चीरकर खड़िया खान मालिकों ने करोड़ों की संपत्ति बना ली है, लेकिन खड़िया आधारित उद्योग की पहल अब तक नहीं हो सकी। उद्योग से यहां के युवाओं को रोज़गार मिलता और पलायन पर भी अंकुश लगता। यहां जिस भी पार्टी के विधायक रहे,उन्होंने खड़िया पिसाई का उद्यम लगाकर बेरोज़गारों को रोज़गार देने के सब्ज़बाग ज़रूर दिखाए लेकिन इस मुद्दे को लेकर ज़िला या राज्य स्तर पर कभी नीति बनी न नीयत साफ हो पाई।
आलम यह है कि बागेश्वर में खड़िया खनन से लगभग 150 करोड़ का कारोबार हो रहा है, फिर भी यहां गरीबी है कि कम होने का नाम नहीं ले रही। ज़िले में खनन कार्यों के लिए भू-गर्भीय संवेदनशील क्षेत्रों में लगातार लीज़ स्वीकृत की जा रही है। उन्होंने कहा पिछले दशक में कई विनाशकारी भू-स्खलन हुए हैं। बावजूद इसके यहां लगातार खनन लीज़ को स्वीकृति दिया जाना पर्यावरण के साथ मज़ाक साबित हो रहा है और किसी बड़ी आपदा की तरफ इशारा कर रहा है। अंधाधुंध खड़िया खनन पर्यावरण के लिए तो घातक सिद्ध हो ही रहा है, क्षेत्रीय लोगों के लिए खनन से उड़ने वाली धूल बीमारियों का कारण बन रही है।
चिकत्सालय के डॉक्टर बताते हैं कि खड़िया खनन से लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। धूल के कण फेफड़ों और आंखों में पहुंचकर नई-नई बीमारियां पैदा कर रहे हैं। पशु पक्षी भी इससे प्रभावित बताए उत्तराखंड हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, बागेश्वर में खड़िया खनन पर लगाई रोक बागेश्वर जिले में खड़िया के खनन को लेकर हाईकोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है। कोर्ट ने सरकार को खड़िया खनन रोकने को कहा है. इस मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। अवैध खनन में काफी पैसा होने के कारण कई सफेदपोश भी खनन माफिया को संरक्षण देते हैं। इसके चलते अवैध खनन करने वालों पर कभी ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती। इस कारण खनन माफिया का हौसला इतना बढ़ जाता है कि ये सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों पर भी हमला करने से नहीं घबराते। पूर्व में ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जब खनन माफिया अधिकारियों पर हमले कर चुके हैं।
अवैध खनन रोकने के लिए नीति में कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। जो व्यवस्था है, वह भी अमल में नहीं आ पाई है। कहने को नीति में सभी व्यवस्थाओं को आनलाइन करने, वाहनों में जीपीएस ट्रेकिंग सिस्टम लगाने, ई-रवन्ना काटने व मोबाइल चेकपोस्ट बनाने की व्यवस्था की बात कही गई है, लेकिन ये बेहद धीमी गति से आगे बढ़ रही हैं। जनहित याचिका दायर कर कहा कि उनके गांव में सरकार ने मानकों के विपरीत जाकर अवैध खड़िया खनन की अनुमति दे दी है, जिसकी वजह से गांव मे समस्त जल स्रोत सूख गए हैं। खनन व्यवसायियों द्वारा अवैध खनन करने पर गांव में भूस्खलन का खतरा भी पैदा हो गया है इसलिए इस पर रोक लगाई जाये। इसमें पर्वतीय और मैदानी इलाकों के स्वरूप का ध्यान रखा गया है। इसके अलावा भंडारण नीति में बदलाव में दो खास व्याख्या की गई है। इसमेें भंडारण की अनुमति पहले डीएम से ही मिल जाया करती थी।
अब शासन से इसकी अनुमति लेनी होगी। इसके अलावा जिसके पास खनन का पट्टा होगा, उसे ही स्टोन क्रेशर की अनुमति मिलेगी। साथ ही रिवर बैंक मैटेरियल को लेकर भी बदलाव किया गया। इसके तहत अब घनमीटर की जगह टन में वजन मापा जाएगा।खड़िया को लेकर नीति बन सकती है।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )