सेहत के लिए वरदान है मोटा अनाज (coarse grains)

सेहत के लिए वरदान है मोटा अनाज (coarse grains)

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 की अहमियत और बढ़ गई है। हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री ने अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 के दौरान भारत में वर्ष भर चलने वाले कार्यक्रमों के अग्रिम उद्घाटन के अवसर पर कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रधानमंत्री की पहल पर को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर) घोषित किया है। उन्होंने कहा कि अब सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गेहूं-चावल की बजाय मोटे अनाज देने की जरूरत है। इससे पोषण सुधारने के साथ-साथ मोटे अनाज के उत्पादन और खपत को प्रोत्साहन मिलेगा।

गौरतलब है कि मोटे अनाजों को पोषण का पावर हाउस कहा जाता है। पोषक अनाजों की श्रेणी में ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, चीना, कोदो, सावां, कुटकी, कुट्टू और चौलाई प्रमुख हैं। विभिन्न दृष्टिकोणों से मोटे अनाज की फसलें किसान हितैषी फसले हैं। मोटे अनाज के उत्पादन में पानी की कम खपत होती है, कम कार्बन उत्सर्जन होता है। यह ऐसी जलवायु अनुकूल फसल है जो सूखे वाली स्थिति में भी उगाई जा सकती है। मोटा अनाज सूक्ष्म पोषक तत्वों, विटामिन और खनिजों का भंडार है। छोटे बच्चों और प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं के पोषण में विशेष लाभप्रद हैं। शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के दौर में मोटा अनाज वैकल्पिक खाद्य प्रणाली प्रदान करता है।

उत्पादन के लिहाज से भी मोटे अनाज कई खूबियों रखते हैं। इनकी खेती सस्ती और कम चिंता वाली होती है। मोटे अनाजों का भंडारण आसान है और ये लंबे समय तक संग्रहण योग्य बने रहते हैं। देश में कुछ दशक पहले तक सभी लोगों की थाली का एक प्रमुख भाग मोटे अनाज हुआ करते थे। फिर हरित क्रांति और गेहूं-चावल पर हुए व्यापक शोध के बाद गेहूं-चावल का हर तरफ अधिकतम उपयोग होने लगा। मोटे अनाजों पर ध्यान कम हो गया। यद्यपि तकनीक एवं अन्य सुविधाओं के दम पर पांच दशक पहले की तुलना में प्रति हेक्टेयर मोटे अनाजों की उत्पादकता बढ़ गई है, लेकिन इनका रकबा तेजी से घटा और इनकी पैदावार कम हो गई। इनका उपभोग लगातार कम होता गया।

स्थिति यह है कि कभी हमारे खाद्यान्न उत्पादन में करीब 40 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले मोटे अनाज की हिस्सेदारी इस समय 10 प्रतिशत से भी कम हो गई है। वस्तुत: इस समय एक बार फिर मोटे अनाज की अहमियत दो प्रमुख कारणों से उभरकर दिखाई दे रही है। एक, दुनियाभर में कुपोषण की चुनौती बढ़ गई है और दो, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण खाद्यान्न की कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई है।

देश और दुनिया में भूख और कुपोषण की वर्तमान चुनौती का अनुमान हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के द्वारा प्रकाशित द स्टेट ऑफ फंड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वल्र्ड रिपोर्ट 2022 में लगाया जा सकता है।  इसके मुताबिक वर्ष 2021 से जहां भारत में 22.4करोड़ लोग भूख व कुपोषण की चुनौती का सामना करते हुए पाए गए हैं, वहीं पूरी दुनिया में करीब76.8 करोड़ लोग इस चुनौती का सामना कर रहे हैं। ऐसे में देश में करोड़ों लोगों के लिए पोषण युक्त आहार की व्यवस्था सुनिश्चित करना जरूरी है।

ज्ञातव्य है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013 के तहत सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के लिए देश की लगभग दो तिहाई आबादी हकदार है। सभी पात्र परिवारों को तीन रुपये किलो चावल, दो रुपये किलो गेहूं और एक रुपये किलो की दर से मोटे अनाज का वितरण आवश्यक है। इसके अलावा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के लिए भी अनाज का एक बड़ा भाग उपभोग में आ रहा है। इसके तहत अप्रैल 2020 से दिसंबर 2022 तक के लिए 80 करोड़ लोगों को अतिरिक्त रूप से 5 किलो राशन निशुल्क वितरण सुनिश्चित किया गया है। चूंकि गेहूं व चावल की तुलना में मोटे अनाज में पोषण तत्व अधिक हैं और ये किसान हितैषी फसलें हैं, अतएव इनका अधिक उत्पादन एवं अधिक वितरण किया जाना बहुआयामी उपयोगिता देते हुए दिखाई देगा। इसमें कोई दो मत नहीं है कि पिछले 8 वर्षों में सरकार ने मोटे अनाजों को लोगों थाली में स्थान दिलाने को लेकर बहुस्तरीय प्रयास किए हैं। भारत के अधिकांश राज्य एक या अधिक मिलेट (मोटा अनाज) फसल प्रजातियों को उगाते हैं। खासतौर से अप्रैल 2018 से सरकार देश में मोटे अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए मिशन मोड में काम कर रही है। सरकार ने मोटे अनाज के न्यूनतम समर्थन मूल्य में राहतकारी वृद्धि की है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत मिलेट के लिए पोषक अनाज घटक 14 राज्यों के 212 जिलों में क्रियान्वित किया जा रहा है। साथ ही राज्यों के जरिये किसानों को अनेक सहायता दी जाती है। देश में मिलेट मूल्यवर्धित श्रृंखला में 500 से अधिक स्टार्टअप काम कर रहे हैं। मोटे अनाजों के वैश्विक उत्पादन में भारत का हिस्सा करीब 40 फीसदी के आसपास है। मोटे अनाजों के उत्पादन और निर्यात में पूरी दुनिया में भारत पहले क्रम पर है।

देश में मोटा अनाज उत्पादन के शीर्ष राज्य राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और मध्यप्रदेश के द्वारा मोटा अनाज के उत्पादन के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। खासतौर से मध्यप्रदेश में मोटे अनाज उत्पादन के लक्षित प्रयासों की ऊंची सफलता मिली है। मोटा अनाज उत्पादन को उच्च प्राथमिकता के साथ प्रोत्साहित किया जा रहा है, उससे मोटे अनाज के उत्पादन बढऩे के साथ इनका निर्यात भी तेजी से बढ़ा है। ऐसे में जरूरी है कि आगामी वर्ष 2023 में देश के विभिन्न प्रदेश अपने-अपने यहां उत्पादित होने वाले मोटे अनाजों के उत्पादन और उनके वितरण पर अधिक ध्यान देवें।

हम उम्मीद करें कि भारत 2023 में जी- 20 की अध्यक्षता करते हुए अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 के उद्देश्यों व लक्ष्यों के मद्देनजर देश और दुनिया में मोटे अनाजों के लिए जागरूकता पैदा करने में सफल होगा और इससे मोटे अनाज का वैश्विक उत्पादन बढ़ेगा, मोटे अनाज का वैश्विक उपभोग बढ़ेगा। साथ ही कुशल प्रसंस्करण एवं फसल चक्र का बेहतर उपयोग सुनिश्चित होगा। हम उम्मीद करें कि भारत के द्वारा वर्ष
2023 में मोटा अनाज वर्ष के तहत मोटे अनाजों के प्रति जागरूकता की प्रभावी रणनीति से एक बार फिर मोटे अनाज को देश के हर व्यक्ति की थाली में अधिक जगह मिलने लगेगी। इससे कुपोषण और खाद्य चुनौती का सामना किया जा सकेगा। साथ ही मोटे अनाज के निर्यात से अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त की जा सकेगी, जो भारत के लिए लाभदायक होगा।

भारत में ब्रिटिश राज्य के आगमन के साथ हमें अंग्रेजों ने एक खोखली औपनिवेशिक विरासत दी और उसी के परिणाम स्वरूप मोटे अनाजों को गरीबी और विफलता का प्रतीक मान लिया गया। अंग्रेजों ने बड़ी चतुराई से हम पर वे खाद्य और पेय लाद दिए, जो न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक बल्कि भारतीय मिट्टी में उनकी उपज और गुणवत्ता वैसी नहीं थी। फलस्वरूप भारत में मधुमेह, मोटापा, अपच और कब्ज जैसी तमाम बिन बुलाए बीमारियां सर्वव्यापी हो गई। अपने को अमीर, संपन्न और आधुनिक दिखाने के चक्कर में हमने इन अनाजों को खेतों और थाली दोनों से बहिष्कृत कर दिया।

मोटे अनाजों को पोषण का शक्ति केंद्र कहा जाता है। पौष्टिकता से भरपूर मोटा अनाज सेहत के लिए रामबाण है। रेशे और कई पौष्टिक तत्वों से भरपूर मोटा अनाज शुगर, हार्ट, लिवर, ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए रामबाण साबित हो रहा है। कोलेस्ट्रॉल स्तर सुधारते हैं। मोटा अनाज सूक्ष्म पोषक तत्व, विटामिन और खनिजों का भंडार है। छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं की पोषण में विशेष लाभप्रद है। सप्ताह में 4 दिन गेहूं चावल और 3 दिन मोटा अनाज का उपयोग करना चाहिए। मिलेट्स के उपयोग से दलिया, खीर, रोटी, कुकीज, पुलाव, डोसा, पास्ता आदि कई प्रकार की चीजें बनाई जा सकती हैं। निःसंदेह मोटे अनाज एक कारगर औषधि साबित हो सकती है।

शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के दौर में मोटा अनाज वैकल्पिक स्थान प्रणाली प्रदान करता है। इन खूबियों के कारण सरकार अब इसकी पैदावार पर जोर भी दे रही है। मोटे अनाज की मांग तेजी से बढ़ने के कारण कंपनियां भी इसके फायदे बताकर उनकी अच्छी कीमतों पर बिक्री कर रही है। भारत में सदियों से मोटे अनाज का उत्पादन होता रहा है। इसकी वजह यह है कि इसकी उत्पादन लागत कम होती है। अधिक तापमान में खेती संभव है। मोटे अनाज किसान हितैषी फसल हैं। इसके उत्पादन में पानी की कम खपत और कम कार्बन उत्सर्जन होता है। इससे उन जगहों का बढ़ावा दिया जाएगा, जहां पानी का संकट है, जिससे कि भूजल का दोहन कम हो और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल भी रुके। साथ ही कम उपजाऊ भूमि में इसका उत्पादन हो सकता है। इसके अलावा कीटनाशकों की कम जरूरत होती है और किसान रासायनिक खादों से परहेज करते हुए कंपोस्ट खाद से बीज का उत्पादन कर सकते हैं। कृषि विभाग किसानों को उपज की बिक्री में भी सहयोग करेगा। इसके तहत किसानों को निःशुल्क और अनुदान पर फसलों के बीज वितरित किए जाएंगे। खरीफ सीजन में इसकी बुवाई होगी। अक्टूबर तक फसल तैयार हो जाएगी।भारत के अधिकांश  राज्य एक या अधिक मोटे अनाजों उगाते हैं।

अप्रैल 2018 से सरकार देश भर में मोटे अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए मिशन मोड में काम कर रही है। मोटे अनाजों के उत्पादन और निर्यात में पूरी दुनिया में भारत पहले क्रम पर है। बाजरा भारत मे सबसे ज्यादा उगाया जाने वाला मिलेट्स है। इसमे चावल की अपेक्षा ८ गुना अधिक आयरन पाया जाता है। बाजरे की तासीर गरम होती है। इसे सर्दी के मौसम मे खाया जाता है। यह पोटेशियम, मेग्नीशियम, आयरन, जिंक, फास्फोरस, कॉपर तथा विटामिन ए का अच्छा स्रोत है। साथ ही इसका स्वाद भी अच्छा होता है। उन्हें सप्ताह मे तीन दिन अपने भोजन मे जरूर शामिल करना चाहिए। यह घास की प्रजाति का अनाज होता है।

मिलेट्स अत्यंत पोषक, पचने मे आसान तथा उगाने मे भी आसान होते हैं। इनका सही तरीके से उपयोग कई प्रकार की बीमारी से बचाव कर सकता है। अधिक उत्पादन भूख और कुपोषण की समस्या हल करने मे बहुत सहायक हो सकता है। अब सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गेहूं-चावल के बजाय मोटा अनाज देने की जरूरत है। इससे पोषण सुधारने के साथ-साथ मोटे अनाज के उत्पादन और खपत को भी प्रोत्साहन मिलेगा। खाद्य उत्पादन को जलवायु परिवर्तन से पूरी तरह सुरक्षित रखना मुश्किल है। किसानों को जलवायु के अनुकूल अनाज उत्पादनकी ओर स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित करना इस दिशा में एक आसान पहल हो सकती है। जिस तरह चावल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सार्वजनिक नीति और सार्वजनिक खरीद पर अमल किया गया, उसी तरह हम इसका उपयोग अनाज उत्पादन में विविधता लाने के लिए भी कर सकते हैं।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)