गाँधी के सपनों का भारत गाँवों में बसता था
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्याग्रह से जुड़े विचारों का पूरी दुनिया सम्मान करती है। उनके मोहनदास से महात्मा बनने तक का आजादी की लड़ाई में प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक महात्मा गांधी भी रहे। महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है। सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर उन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। कोई उन्हें बापू कहता है तो कोई देश का राष्ट्रपिता। दोनों का अर्थ एक ही है, उन्हें हर भारतीय के पिता के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने सही मार्ग पर चलकर आजादी की जंग लड़ी और भारतीयों का भी इस जंग में मार्गदर्शन किया। मोहनदास करमचंद गांधी, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता सैनानियों में से एक थे। उन्हें प्यार से बापू के नाम से भी जाना जाता है। आज पूरे देशभर में उनकी पुण्यतिथि है। 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर गांधी की हत्या कर दी थी। हर साल उनकी पुण्यतिथि को देशभर में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्मे महात्मा गांधी ने इंग्लैंड में अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। हालांकि, देश में हो रहे अत्याचारों को देख वह ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन गए। उन्होंने भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में “सत्य और अहिंसा” का परिचय दिया। आज भी दुनियाभर में उनके आदर्शों का पालन किया जाता है। गांधी के मोहनदास से महात्मा बनने का सफर इतना आसान नहीं है। इस सफर को मात्र कुछ शब्दों में समेटा भी नहीं जा सकता। आइंस्टाइन का यह कथन गांधी की महत्ता बताने के लिये पर्याप्त है कि “आने वाली पीढ़ियाँ विश्वास नहीं करेंगी कि इस धरती पर गांधी जैसा कोई हाँड-माँस का शरीर रहा होगा।रामचंद्र गुहा ठीक कहते हैं कि, गांधी ने जो दो दशक दक्षिण अफ्रीका में बिताए वे गांधी को महात्मा बनने की राह पर ले गए।” गांधी के व्यक्तित्व को उनके पारिवारिक संस्कारों ने जरूर गढ़ा था लेकिन गांधी के मुखर व्यक्तित्व की निर्मिती में दक्षिण अफ्रीका प्रवास का महत्वपूर्ण योगदान है।
दक्षिण अफ्रीका में प्रवास के 21 वर्षों में गांधी का जीवन और विचार कई महत्त्वपूर्ण बदलावों से गुजरे।दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान गांधी को कई प्रकार के अपमानजनक अनुभव मिले। उन्होंने इस अपमान के विरुद्ध संघर्ष की राह का चुनाव किया। दक्षिण अफ्रीका में ही उन्होंने सार्वजनिक जीवन में पदार्पण किया और लगातार विस्तार करते गए। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका तथा भारत में संगठित प्रयास के लिये ‘नटाल इंडियन कांग्रेस’ (1894), ट्रांसवाल ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन(1902), हरिजन सेवक संघ (1933) जैसे संगठनों का निर्माण किया। अफ्रीका से भारत लौटते समय गांधी के पास एक सुस्पष्ट कार्यपद्धती और भारत के पुनरुत्थान के लिये एक सुविचारित कार्यक्रम था।
चंपारण आंदोलन(1917), खेड़ा सत्याग्रह(1918), अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918) में सफल नेतृत्व की बदौलत गांधी भारत आगमन के चार सालों के अंदर ही प्रभावशाली राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभरे। उनकी नैतिकतावादी भाषा, जटिल व्यक्तित्व, स्पष्ट दृष्टि, सांस्कृतिक प्रतीकों का इस्तेमाल,आचरण और असाधारण आत्मविश्वास ने देशवासियों को प्रभावित किया।असहयोग आंदोलन (1920) सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) गांधी के प्रयोगों के माध्यम से भारतीय जनमानस का ब्रिटिश उपनिवेशवादी सत्ता के प्रति आक्रोश को अभिव्यक्त करने का माध्यम बना। जिससे स्वाधीनता की राह आसान हुई।
गांधी की अनुपस्थिति में हम भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। गांधी को समझने हेतु उनके चिंतन को समझना बेहद जरूरी है। उनका चिंतन बहुआयामी है। इसका मुख्य कारण गांधी बहुत सारे विचारों से प्रभावित थे और अनुभव के आधार पर उनमें स्वीकारोक्ति का भी भाव था। गांधी हिंदू धर्म के विभिन्न ग्रंथों मुख्य रूप से गीता और रामायण से प्रभावित थे। अहिंसा और शांति का विचार उन्होंने बौद्ध धर्म से लिया था। अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का विचार उन्होंने जैन धर्म से स्वीकार किया था।इस्लाम की बंधुता और ईसाईयत का दया भाव उनको प्रभावित करता था। इसके अतिरिक्त गांधी टॉलस्टॉय, थोरो और रस्किन के विचारों से भी प्रभावित थे। सत्याग्रह, स्वराज प्राप्ति का साधन है। जिसके लिये वे असहयोग और सविनय अवज्ञा जैसी नैतिक दबाव वाली तकनीकों का प्रयोग करते हैं। वे सत्य पर अडिग रहते हुए हृदय परिवर्तन पर बल देते हैं।
हम कह सकते हैं कि सत्याग्रह एक प्रकार से सामाजिक क्रांति का गांधीवादी तरीका है। के. एल. श्रीधरानी ने इसे ‛हिंसाविहीन युद्ध’ भी कहा है। गांधी के लिये स्वराज प्राप्ति का अर्थ सिर्फ राजनीति स्वतंत्रता प्राप्त करना नहीं है बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और नैतिक स्वाधीनता है। व्यक्ति के लिये वह इसे स्वनियंत्रण से जोड़ते हैं। गांधी कहते हैं- “मैं ऐसे भारत के निर्माण का प्रयत्न करूँगा जिसमें निर्धन से निर्धन मनुष्य भी यह अनुभव करेगा कि यह मेरा अपना देश है और इसके निर्माण में मेरा पूरा अपना हाथ है।” गांधी औद्योगीकरण का विरोध करते हुए आत्मनिर्भरता हेतु स्वदेशी पर बल देते हैं। औद्योगिक सभ्यता के इस दौर में गांधी का स्वदेशी से संबंधित विचार देश के आर्थिक निर्माण का मार्गदर्शक सिद्धांत है। उन्होंने भारतीय समाज की संस्कृति का स्मरण कराने वाले प्रतीकों का समूह बनाया। जिसमें चरखा, खादी, गाय एवं गांधी टोपी शामिल था। सर्वोदय का अर्थ है सबका उदय। यह एक प्रकार से गांधीवादी समाजवाद है। सर्वोदय ऊपर से नीचे नहीं नीचे से ऊपर जाने वाला रास्ता है। समाज की बुनियाद इकाइयों और संरचनाओं से इसकी शुरुआत होती है।
गांधी ने सभी वर्गों मुख्य रूप से अछूतों, महिलाओं, कामगारों एवं किसानों के उत्थान के लिये रचनात्मक कार्यक्रमों का भी संचालन किया। सर्वोदय की अवधारणा से ही भूदान आंदोलन का जन्म हुआ। महात्मा गांधी राष्ट्र उत्थान के लिये सभी प्रकार के विचारों का स्वागत करते थे लेकिन किसी भी देश की उन्नति के लिये उस देश की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था को सिर्फ पश्चिमी सभ्यता में ढालने के पक्षधर नहीं थे। उनका दृढ़ विश्वास था कि पश्चिमी सभ्यता मनुष्य को उपभोक्तावाद का रास्ता दिखा कर नैतिक पतन की ओर ले जाती है; नैतिक उत्थान का रास्ता आत्मसंयम और त्याग की भावना की मांग करता है। महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। उन्होंने अपने सपनों के भारत में गांव के विकास को प्रमुखता प्रदान करके उससे देश की उन्नति निर्धारित होने की बात कही थी। गांधी ने अपने सपनों के भारत में अपनी व्यापक दृष्टि का परिचय देते हुए ग्रामीण विकास की तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति करके ग्राम स्वराज्य, पंचायतराज, ग्रामोद्योग, महिलाओं की शिक्षा, गांव की सफाई व गांव का आरोग्य व समग्र विकास के माध्यम से एक स्वावलंबी व सशक्त देश के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था।
गांवों में ग्रामोद्योग की दयनीय स्थिति से चिंतित गांधी ने”स्वदेशी अपनाओ, विदेशी भगाओ” के जरिए गांवों को खादी निर्माण से जोड़कर अनेकों बेरोजगार लोगों को रोजगार देकर स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका को रेखांकित किया। वे स्वतंत्रता के पश्चात एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते थे जहां ऊंच-नीच और महिला-पुरुष का भेद पूर्णतः समाप्त हो और सभी अपने मताधिकार का विवेकपूर्ण प्रयोग करके अपने प्रतिनिधि का चयन कर लोकतंत्र की नींव को मजबूत करें। गांधी जी ने पश्चिमी सभ्यता और आधुनिक सभ्यता को समवर्ती मानते हुए उसकी विस्तृत समीक्षा की। वर्ष 1927 में “यंग इंडिया” के अंतर्गत उन्होंने लिखा कि,”मैं यह नहीं मानता कि इच्छाओं को बढ़ाने, उनकी पूर्ति के साधन जुटाने से संसार अपने लक्ष्य की ओर एक कदम भी बढ़ पाएगा।
आज की दुनिया में दूरी और समय के अंतराल को कम करने, भौतिक इच्छाओं को बढ़ाने और उनकी तृप्ति के लिये धरती का कोना- कोना छान मारने की अंधी दौड़ चल रही है, वह मुझे बिल्कुल पसंद नहीं। यदि आधुनिक सभ्यता के यही सब लक्षण हैं और मुझे इसके यही लक्षण समझ आते हैं तो मैं इसे शैतानी सभ्यता कहता हूँ।ज्ज् गांधी बीसवीं सदी के सबसे सार्थक, सक्रिय और सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्तित्व रहे। आज 21वीं सदी के दो दशक बाद भी गांधी और उनके विचार संपूर्ण विश्व के लिये जरूरी प्रतीत होते हैं। वैश्वीकृत, समकालीन आधुनिक भौतिकतावादी समाज में जहाँ असंतोष ,अवसाद, असमानता व असंवेदनशीलता जैसी समस्याएँ हावी हैं वहाँ विकास से जुड़ी समस्याओं के संदर्भ में गांधीवादी चिंतन ना सिर्फ प्रासंगिक है बल्कि इसमें विशेष अभिरुचि भी ली जा रही है।
गांधी के विचारों को आधार बनाकर कई देशों ने स्वाधीनता हासिल की।चूँकि गांधी सदैव विकेंद्रीकरण के समर्थक रहे इसलिये गांधी का चिंतन वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिये बेहद उपयोगी है। गांधी ने श्रम की गरिमा को मानव गरिमा से जोड़ा। पूंजीवाद और मानव मूल्यों के क्षरण के इस दौर में मानव गरिमा को बचाए रखने हेतु गांधी का चिंतन बेहद जरूरी है। विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय संकट से जूझ रहे संपूर्ण विश्व के समक्ष गांधी का चिंतन ना सिर्फ धारणीय विकास के अनुकूल है बल्कि सामाजिक समावेशन को बढ़ाने वाला है।गांधी ने “हिंद स्वराज” के अंतर्गत लिखा है कि, “आधुनिकता सभ्यता दिखावटी तौर पर समानता के सिद्धांत को सम्मान देती है, परंतु यथार्थ के धरातल पर यह प्रजातिवाद को बढ़ावा देती है। इसमें अश्वेत जातियों को मानवीय गरिमा से वंचित रखा जाता है और उनका भरपूर शोषण किया जाता है। कहीं उन्हें दास बनाकर तो कहीं बंधुआ मजदूर बनाकर रखा जाता है।”
गांधीजी के अनुसार, “आधुनिकत सभ्यता के अंतर्गत चेतन की तुलना में जड़ को, प्राकृतिक जीवन की तुलना में यांत्रिक जीवन को और नैतिकता की तुलना में राजनीति और अर्थशास्त्र को ऊँचा स्थान दिया जाता है।” गांधी ने अपने मत के पक्ष में सदैव वाद-विवाद और संवाद किया। स्वाधीनता संग्राम के दौरान गांधी ने जितने भी कदम उठाए, उनका यही उद्देश्य था कि अपने विचारों को जमीन पर उतारा जा सके। उनके लिये वे विचार निरर्थक थे जिन्हें जिया न जा सके। जहाँ ज़रूरी लगा गांधी अपना मत परिवर्तन करने से हिचके भी नहीं। गांधी सदैव सिद्धांत निर्माण के बजाय कर्म में विश्वास करते रहे। गांधी के लिये अहिंसा साधन है और सत्य साध्य है। उनका मानना था कि उन्होंने सत्य की अपनी खोज में अहिंसा को प्राप्त किया है। वे कहते हैं, “मेरे लिये अहिंसा का स्थान स्वराज से पहले है।” गांधी के लिये सत्य कोई अंतिम दावा नहीं था। सत्य उनके लिये प्रयोग का विषय था।
उनका मानना था सत्य अपने-अपने अनुभव और विवेक की प्रयोगशाला में स्वयं को परखने की चीज है। वे कहते हैं, “मेरे निरंतर अनुभव ने यह विश्वास दिला दिया है कि सत्य से अलग कोई ईश्वर नहीं है।” इसलिये उन्होंने अपनी आत्मकथा का नाम भी “सत्य के साथ मेरे प्रयोग” रखा।गांधी के जीवन और चिंतन का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष साध्य और साधन की पवित्रता रही। गांधी यहीं पर पश्चिम के मैकियावेली जैसे विचारकों से अलग दिखते हैं। गांधी के भीतर आजीवन एक नैतिक संघर्ष चलता रहा। इसे वे आत्मपरीक्षण कहते थे। गांधी एक-एक भाव की जाँच करते थे। जो ग्रहण करने योग्य होता था उसके अनुरूप आचरण करते थे। गांधी धर्म को भी नैतिक अनुशासन की व्यवस्था मानते थे। गांधी के संपूर्ण चिंतन का अवलोकन करने के पश्चात हम कह सकते हैं कि वह एक ‛नैतिक आदर्शवादीज् हैं। उनके राजनीतिक विचारों के आलोक में उन्हें ‛दार्शनिक अराजकतावादी’ भी कहा जाता है। अपने विचारों के प्रसार के लिये उन्होंने इंडियन ओपिनियन, ग्रीन पम्फलेट, नवजीवन, यंग इंडिया, हरिजन जैसे समाचार पत्रों का प्रकाशन किया।
अपने विचारों को मूर्त रूप देने के लिये फिनिक्स आश्रम, टॉलस्टॉय फॉर्म, साबरमती तथा सेवाग्राम जैसे महत्वपूर्ण आश्रमों की स्थापना भी की। जो कि स्वराज्य प्राप्ति में सहायक साबित हुए।जिस दिन महात्मा गांधी का निधन हुआ था, उसे देशवासी शहीद दिवस के तौर पर मनाते हैं। बापू की पुण्यतिथि यानी 30 जनवरी को देश शहीद दिवस के रूप में मनाते हुए महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करता है। इस मौके पर राजधानी दिल्ली के राजघाट स्थित गांधी की समाधि पर भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री पहुंचते हैं। गांधी जी को स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए याद करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। इस मौके पर देश के सशस्त्र बलों के शहीदों को सलामी दी जाती है और बापू की याद व शहीदों के लिए दो मिनट का मौन रखा जाता है। भारत में शहीद दिवस दो बार मनाया जाता है। गांधी जी की पुण्यतिथि के मौके पर30 जनवरी को शहीदों की याद में शहीद दिवस मनाते हैं। इसके अलावा 23 मार्च को भी शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। दो अलग तारीखों को शहीद दिवस मनाने को लेकर लोग असमंजस में रहते हैं। दोनों शहीद दिवस में अंतर है।
30 जनवरी को महात्मा गांधी की हत्या हुई थी और 23 मार्च 1931 को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी। 23 मार्च को अमर शहीद दिवस मनाते हैं। इस दिन इन तीनों शहीदों की शहादत को याद किया जाता है। गांधी का व्यक्तित्व और चिंतन न सिर्फ भारत बल्कि संपूर्ण विश्व के लिये एक धरोहर है वर्तमान में इसे संरक्षित और संवर्द्धित करने की आवश्यकता है। मोहनदास करमचंद गांधी से लेकर, महात्मा गांधी के रूपांतरण को जानने और समझने के लिये दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी द्वारा किये गए सामाजिक और राजनैतिक गतिविधियों को पढ़ना और समझना बहुत ज़रूरी है। हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार गिरिराज किशोर जी ने गांधी जी के दक्षिण अफ़्रीका प्रवास पर एक बेहद सधा हुआ और प्रमाणिक उपन्यास, पहला गिरमिटिया लिखा है। आप इसे पढ़ सकते हैं। अभी रामचंद्र गुहा ने गांधी बिफोर इंडिया के नाम से भी एक इतिहास पुस्तक लिखी है। मेकिंग ऑफ महात्मा के नाम से एक बहुत अच्छी फिल्म भी गांधी जी के उस कालखंड पर बनी है।
गांधी जी द्वारा लिखी गयी अपनी आत्मकथा सत्य से मेरे प्रयोग तो दक्षिण अफ्रीका में उनकी गतिविधियों के बारे में जानने का एक मूल श्रोत तो है ही। गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका छोड़ देने के बाद भी गांधी के ही सिखाये रास्ते पर चल कर महान दक्षिण अफ्रीकी नेता नेल्सन मंडेला ने अपना अभीष्ट प्राप्त किया। रंगभेद के खिलाफ गांधी की लड़ाई ने महान अमेरिकी मानवाधिकारवादी मार्टिन लूथर किंग द्वितीय को प्रेरित किया और वे भी अपने लक्ष्य में सफल रहे। निःसंदेह, आजादी के इतने वर्षों के बाद आज ग्रामीण विकास की छवि काफी सुधरी है। गांवों में स्कूलें, अस्पताल, शुद्ध पेयजल का प्रबंधन, पुलिस चौकी की स्थापना आदि इसके प्रमाण हैं। महिलाओं के प्रति भेदभाव में कमी आई है और वे चारदीवारी से निकलकर देश के राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक क्षेत्र में अपना योगदान देने लगी। लेकिन, अभी गांधी के सपनों के भारत को साकार करने के लिए हमें लंबा सफर तय करना बाकी है।
गांधी के देश में शराब व मादक द्रव्यों के नशे में डूबती युवा तरुणाई को इस दलदल से सुरक्षित बाहर निकालकर दिशा देने की चुनौती हमारे समक्ष है। भीड़तंत्र के रूप में अराजक व देश की वर्तमान व्यवस्थाओं से आहत होते लोगों में अहिंसा और शांति की स्थापना करने की अविलंब दरकार है। एक ऐसा माहौल कायम करनी की आवश्यकता है जहां लोगों में गांधीवाद और गांधी मूल्यों के प्रति आस्था व विश्वास बना रहे। बेशक, गांधी का मतलब दूसरों पर अंगुली उठाने की बजाय बाकी की अंगुलियों को अपनी ओर देखकर अपने मन में झांककर अपनी गलतियों से सबक लेना है। गांधी का मतलब देश की विसंगतियों को कोसने की बजाय देश निर्माण में अपने योगदान को उल्लिखित करना है। लोकतंत्र
के मंदिर संसद में गांधी मूल्यों की धज्जियां उड़ाने वाले हमारे देश के नेताओं को गांधी टोपी और खद्दरधारी कुर्ते-पजामे के साथ अपना आचरण भी गांधी की भांति बनाना होगा, तभी हम कई जाकर गांधी के सपनों को सच कर पाएंगे।
महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर उनका कोटि कोटि नमन !लेखक, के व्यक्तिगत विचार हैं दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।