आंदोलनों और संघर्षों के पर्याय लोकनायक जयप्रकाश नारायण
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
लोकनायक जय प्रकाश नारायण का जन्म बिहार के सारण जिला के सिताब दियारा में हुआ था। वह मात्र 9 वर्ष की कच्ची उम्र में ही गांव छोड़ कर पढ़ाई के लिए पटना चले गए। इसके बाद 1920 में केवल 18 वर्ष की उम्र में उनकी शादी 14 वर्ष की प्रभावती से हो गई। जयप्रकाश नारायण का झुकाव शुरुआत से ही स्वतंत्रता आंदोलन की तरफ था। उन्होंने 1919 में ब्रिटिश सरकार के रालेट एक्ट के खिलाफ असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर कालेज छोड़ दिया। जय प्रकाश नारायण महात्मा गांधी के साथ कई आंदोलन में शामिल रहे। इसके बाद अपनी पत्नी को 20 साल की उम्र में साबरमती आश्रम में छोड़कर अमेरिका पढ़ने चले गए। वहां उन्होंने पढ़ाई के दौरान अपने खर्चे निकालने के लिए कई छोटे मोटे काम किए। उन्होंने खेतों में काम किया, होटलों में बर्तन धोए और कई अन्य काम किए।
जय प्रकाश नारायण अमेरिका से वापस आने के बाद 1929 में कांग्रेस में शामिल हुए। हालांकि उनकी विचारधारा समाजवादी थी और जल्द ही कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के नाम से अलग संगठन बनाया।आजादी के बाद उन्होंने 1952 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। लेकिन आजादी के बाद राजनीति ने जय प्रकाश नारायण को हताश कर दिया। इसके बाद जय प्रकाश नारायण 1974 में राजनीति के खिलाफ देशभर में तेजी से उभरे।जय प्रकाश ने इंदिरा गांधी के आपातकाल के खिलाफ आवाज बुलंद की।इस दौरान, उन्होंने बिहार में छात्र आंदोलन की अगुआई की, जिसे जेपी आंदोलन कहा गया।जेपी आंदोलन से बिहार में कई समाजवादी नेताओं का जन्म हुआ, जो आज भी सक्रिय राजनीति में अहम किरदार में हैं। जय प्रकाश नारायण ने सत्ता में कभी भी दिलचस्पी नहीं दिखाई।
ऐसा कहा जाता है कि उन्हें राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक बनने का प्रस्ताव मिला, लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया। जय प्रकाश नारायण ने बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान में 5 जून 1974 को संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया। उन्होंने कहा था, ‘सम्पूर्ण क्रांति से मेरा तात्पर्य समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है।’ उस दौरान, गांधी मैदान में ‘जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो, समाज के प्रवाह को नई दिशा में मोड़ दो’ नारा गूंजा था। इसी नारे से जय प्रकाश नारायण को विश्व में पहचान मिला। 1999 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें समाजसेवा के लिए 1965 में मैगससे पुरस्कार प्रदान किया गया था।
जयप्रकाश नारायण का नाम जब भी जुबां पर आता है तो यादों में रामलीला मैदान की वह तस्वीर उभरती है जब पुलिस जयप्रकाश को पकड़ कर ले जाती है और वह हाथ ऊपर उठाकर लोगों को क्रांति आगे बढ़ाए रखने की अपील करते हैं। जयप्रकाश नारायण ही वह शख्स थे जिनको गुरू मानकर आज के अधिकतर नेताओं ने मुख्यमंत्री पद तक की यात्रा की है। लालू यादव, नीतीश कुमार, मुलायम सिंह यादव, राम विलास पासवान, जार्ज फर्नांडिस, सुशील कुमार मोदी जैसे तमाम नेता कभी जयप्रकाश नारायण के चेले माने जाते थे लेकिन सत्ता के लोभ ने उन्हें जयप्रकाश नारायण की विचारधारा से बिलकुल अलग कर दिया। उन्होंने लंबे वक्त के लिए ग्रामीण भारत में इस आंदोलन को आगे बढ़ाया। उन्होंने आचार्य भावे के भूदान के आह्वान का पूरा समर्थन किया।
जेपी ने 1950 के दशक में ‘राजव्यवस्था की पुनर्रचना’ नामक एक पुस्तक लिखी। कहा जाता है कि इसी पुस्तक को आधार बनाकर नेहरू ने ‘मेहता आयोग’ का गठन किया। इससे लगता है कि सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात शायद सबसे पहले जेपी ने उठाई थी। यह जयप्रकाश नारायण ही थे जिन्होंने उस समय की सबसे ताकतवर नेता से लोहा लेने की ठानी और उनके शासन को हिला भी दिया। लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि आज उनके आदर्शों की उनकी ही पार्टी में कोई पूछ नहीं है। सभी जानते हैं अगर इतिहास में जयप्रकाश नारायण नाम का इंसान नहीं होता तो भारतीय जनता पार्टी का कोई भविष्य ही नहीं होता।
भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं। क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति – सम्पूर्ण क्रान्ति आवश्यक है। संपूर्ण क्रांति का उनका दर्शन और आंदोलन भारतीय राजनीति में बड़ा बदलाव तो लाया ही साथ ही देश के सामाजिक तानेबाने को बदलने में भी कारगर साबित हुआ।आपातकाल के खिलाफ सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान करने वाले लोकनायक जयप्रकाश को 1998 में उनके सम्मान में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। लोकनायक आजादी के बाद वे बड़े-बड़े पद हासिल कर सकते थे, पर उन्होंने गांधीवादी आदर्शों की अपनी सोच नहीं छोड़ी और सादा जीवन जीकर बेमिसाल हो गए।– जिसने राजनीति तो की लेकिन कभी किसी पद की इच्छा नहीं की ?
अलोकप्रिय सरकार से लड़ने और उसे सत्ता से हटाने के बाद, उन्होंने नई सरकार में गॉडफादर की भूमिका निभाने या सत्ता संभालने से इनकार कर दिया, जिसे उन्होंने ही संभव बनाया था। इसके बजाय, उन्होंने इस पर लोगों की प्रधानता को संस्थागत बनाने का प्रयास किया। सिर पर अलौकिक संतत्व का भाव रखने वाले जयप्रकाश नारायण कई मायनों में अपने आदर्श महात्मा गांधी के समान थे।मुझे अच्छी तरह याद है, हमारी सभी चर्चाओं के दौरान उनका ध्यान हमेशा स्वतंत्रता के विस्तार और लोकतंत्र को मजबूत करने के एक ही विषय पर केंद्रित रहा। उनके शब्द आज भी गूंजते हैं, उनकी मृत्यु के तीन दशक से भी अधिक समय बाद, वे पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं, उनकी विरासत किसी के लिए भी प्रेरणादायक है, चाहे वह केंद्र का बायां हो या दायां।संपूर्ण क्रांति के जनक लोकनायक जयप्रकाश नारायण को उनकी जयंती पर शत-शत नमन। वे जीवनपर्यंत भारतीय लोकतंत्र को सशक्त करने की दिशा में प्रयासरत रहे। उनका निस्वार्थ सेवा भाव देशवासियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )