सस्ते नहीं होंगे लोन, इस बार भी रेपो रेट में नहीं किया गया कोई बदलाव, 5.5% पर रहेगा बरकरार

सस्ते नहीं होंगे लोन, इस बार भी रेपो रेट में नहीं किया गया कोई बदलाव, 5.5% पर रहेगा बरकरार

लोक संस्कृति

फाइनेंशियल ईयर 2025-26 की चौथी बैठक के नतीजे आ गए हैं। त्‍योहारी सीजन के बीच आए इस नतीजे से आपको थोड़ा मायूस होना पड़ सकता है क्‍योंकि इस बार रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया है।

आरबीआई के गवर्नर संजय मल्‍होत्रा ने रेपो रेट को 5.5% पर बरकरार रखने का फैसला सुनाया है। मतलब आपकी ईएमआई न घटेगी और न बढ़ेगी, फिलहाल वो जस का तस रहने की उम्‍मीद है। यह फैसला मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की 29 सितंबर से 1 अक्टूबर तक चली मीटिंग में लिया गया। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने आज इसकी जानकारी दी।

आरबीआई गवर्नर ने कहा कि कमेटी के सभी मेंबर्स ब्याज दरों में स्थिर रखने के पक्ष में थे। जीएसटी में कटौती के बाद महंगाई में कमी के चलते ये फैसला लिया गया। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यानी आरबीआई जिस रेट पर बैंकों को लोन देता है उसे रेपो रेट कहते हैं। इसमें बदलाव नहीं होने का मतलब है कि ब्याज दरें न तो बढ़ेंगी न घटेंगी। आरबीआई ने फरवरी में हुई मीटिंग में ब्याज दरों को 6.5% से घटाकर 6.25% कर दिया था। मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की ओर से ये कटौती करीब 5 साल बाद की गई थी।‌

दूसरी बार अप्रैल में हुई मीटिंग में भी ब्याज दर 0.25% घटाई गई। जून में तीसरी बार दरों में 0.50% कटौती हुई। यानी, मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी ने तीन बार में ब्याज दरें 1% घटाई।

रेपो रेट घटने से लोन की ब्याज दरें सस्ती हो जाती हैं

रेपो रेट घटने पर बैंकों के लिए आरबीआई से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है।

इसका फायदा ग्राहकों को पहुंचाने के लिए लोन की ब्याज दर सस्ती की जाती हैं। रेपो रेट से लिंक्ड लोन की दरें तो घटती ही हैं, साथ ही कई बैंक मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट्स में भी कटौती करते हैं। वहीं जब आरबीआई रेपो रेट बढ़ाता है तो बैंकों के लिए कर्ज महंगा हो जाता है। ऐसे में वे भी ग्राहकों के लिए लोन रेट बढ़ा देते हैं।

अब बात करते हैं फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) की। इसका सीन लोन से उल्टा रहता है। रेपो रेट घटने और बैंकों को आरबीआई से सस्ता कर्ज मिलने पर बैंकों में लिक्विडिटी बढ़ जाती है। ऐसे में एफडी पर ज्यादा ब्याज की पेशकश करके ग्राहकों से ज्यादा जमा पाकर लिक्विडिटी बढ़ाने की जरूरत नहीं रह जाती है। इसलिए कुछ बैंक रेपो रेट कम होने पर एफडी पर ब्याज में कटौती कर देते हैं।

वहीं जब रेपो रेट बढ़ती है, बैंकों के लिए कर्ज महंगा हो जाता है तो लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए वह एफडी पर ब्याज बढ़ा देते हैं, ताकि ग्राहक उनके पास ज्यादा मात्रा में पैसा जमा करें। रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाता और घटाता क्यों है? किसी भी सेंट्रल बैंक के पास पॉलिसी रेट के रूप में महंगाई से लड़ने का एक शक्तिशाली टूल है।

जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है, तो सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है। पॉलिसी रेट ज्यादा होगी तो बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज महंगा होगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देते हैं। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होता है। मनी फ्लो कम होता है तो डिमांड में कमी आती है और महंगाई घट जाती है। इसी तरह जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है।

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