केदारनाथ में चुनातियां अब भी कम नहीं
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के इतिहास की सबसे भीषण आपदा से उजडे केदारनाथ को पिछले 11 वर्षोंं से संवारने का जो अभियान चल रहा है, उसे लेकर कई तरह की चुनौतियां और सवाल भी खड़े हैं। केदारपुरी में कदम रखते ही वहां चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों के बीच आसपास बिखरा और फैला टूटा-फूटा सामान, लोहा व सरिया इस अनूठे धाम की शोभा में धब्बों की तरह है। 2013 में आई जल प्रलय के बाद पीएम ने केदारनाथ को नया स्वरूप देने का बीड़ा उठाया। मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर पुनर्निर्माण के कई काम हो रहे हैं और कई होने बाकी हैं। लेकिन छह महीने बर्फबारी और काम के महीनों में चारधाम यात्रा का दबाव इसकी गति पर लगाम लगाने का काम कर रहा है।
बेशक केदारपुरी में एमआई-17 हेलिकॉप्टर और चिनूक से लेकर थार वाहन तक उतारे जा चुके हैं। लेकिन अभी भी कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब सरकार को पहले ही तैयार कर लेने चाहिए थे।केदारपुरी में श्रद्धालुओं के लिए इतने वर्षों में ठहरने की स्थायी व्यवस्था नहीं हो पाई है। अब भी टेंटों से ही काम चलाया जा रहा है। इस मोर्चे पर सबसे पहले काम किए जाने की आवश्यकता थी। चिंता की बात यह है कि भैरो मंदिर के नीचे वाली पहाड़ी की तरफ टेंट लगाए गए हैं, जहां बड़ी संख्या श्रद्धालु ठहरते हैं। इस तरफ की पहाड़ी काफी भुरभुरी और नाजुक हैं। कायदे से सबसे पहले मंदिर के आसपास की ऐसी पहाडि़यों का ट्रीटमेंट हो जाना चाहिए था। इसके अभाव में यहां भूस्खलन का खतरा भी है। वहां से मिट्टी और पत्थर गिरते रहते हैं। जब तेज बारिश होती है तो अस्थायी व्यवस्था के नाम पर लोगों को यहां रोक दिया जाता है, लेकिन वहां सुरक्षा और सतर्कता के इंतजाम नहीं हैं।
शासन के स्तर से लगातार निर्देशों के बावजूद मंदिर के आसपास भीड़ प्रबंधन नहीं हो पाया है।अब भी श्रद्धालुओं को दर्शन के दौरान व्यवस्थित बनाने के लिए इंतजाम नदारद हैं। वाजिब दाम पर चीजें मिलें ऐसे इंतजाम नहींकेदारपुरी में पानी की एक बोतल 100 रुपये में मिल रही है। खाने-पीने का सामान कई गुना महंगा है। सामान की ढुलाई की लागत इतनी अधिक है कि श्रद्धालुओं को इनकी महंगी कीमत चुकानी पड़ती है। लेकिन सरकार की ओर से ऐसे प्रयास नहीं हुए कि वहां श्रद्धालुओं को वाजिब दाम पर चीजें मिल सके।समन्वय की दिखाई दे रही है कमी केदारनाथ में एक तरफ पुनर्निर्माण के कार्य चल रहे है। दूसरी तरफ यात्रा चल रही हैं। इन दोनों ही मोर्चों पर लगा सरकारी तंत्र, मंदिर समिति और स्थानीय प्रशासन के बीच समन्वय की कमी साफ- साफ नजर आती है। मंदिर प्रबंधन के लोग, पंडा पुरोहित, व्यवस्थापक के बीच तालमेल न होने से मंदिर के बाहर से लेकर भीतर तक व्यवस्थाओं पर प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। इससे श्रद्धालुओं को काफी असुविधा हो रही है।
11 साल पहले केदारनाथ आपदा ने जो जख्म दिया था, वह अब भरने लगा है। केदारपुरी की सूरत बदल रही है। तीर्थ यात्रियों के लिए अब यात्रा का अनुभव और बेहतर होने लगा है। केदारनाथ मास्टर प्लान का पहले चरण का काम पूरा होने के बाद अब दूसरे चरण में 23 में से 11 परियोजनाओं का काम पूरा कर लिया गया है। 12 योजनाओं पर काम तेजी से चल रहा है। धाम में यात्री सुविधाओं के साथ ही केदारपुरी को दिव्य एवं भव्य बनाए जाने के लिए मास्टर प्लान के अनुसार विकास कार्य एवं पुनर्निर्माण कार्य किए जा रहे हैं। मंदिर मार्ग को पौराणिक और भव्य स्वरूप दिया जा रहा है, ताकि तीर्थयात्री मंदिर व मंदिर के प्रवेश द्वार का काफी दूरी से दीदार कर सकें।केदारनाथ की प्रलयकारी आपदा के बाद जो तस्वीरें सामने आई, उससे अंदाजा लगा पाना मुश्किल था कि आखिर उस वक्त वहां पर क्या हालात रहें होंगे।आपदा देश ही नहीं बल्कि दुनिया की भयंकर और भीषण आपदाओं में से एक थी। इस आपदा में हजारों लोग मारे गए। कई लोग लापता हो गए, जिनका आजतक कुछ पता नहीं चल पाया है।
लोग आज भी जब उस आपदा के बारे में बात करते हैं, तो कांप उठते हैं। शरीर में सिहरन सी उठने लगी है। हालांकि आज से 11 साल पहले केदारनाथ आपदा ने जो जख्म दिया था, वह अब भरने लगा है। केदारपुरी की सूरत बदलरहीहै। केदारनाथ समेत राज्य के पर्वतीय जिलों में जो तांडव मचाया था, उसे याद करते हुए आत्मा कांप जाती है। केदारनाथ की जलप्रलय में 4400 से अधिक लोगों की मौत हो गई। केदारपुरी आज भले ही नए रंग-रूप में संवरने लगी हो, लेकिन आज भी केदारनाथ जाते वक्त आपदा के वो जख्म हरे हो जाते हैं। उनको याद कर लोग कांप उठते हैं। घाटी में जब भी तेज बारिश होती है, लोगों में 11 साल पहले आई भीषण आपदा का दर्द कंपकंपी छुटा देता है लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )