बद्रीनाथ धाम में रोज चढ़ाई जाती है बद्रीतुलसी
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
बदरीनाथ घाटी में बहुतायत से उगने वाली बद्री तुलसी को बदरीनाथ मंदिर में प्रसाद के रूप में चढाया जाता है। बद्री तुलसी की सुगंध बहुत अच्छी होती है जो लंबे समय तक चलती है। इस प्रजाति के भी बहुत से औषधीय गुण हैं जो कई रोगों के इलाज में उपयोग की जाती है। वन अधिकारी ने बताया कि एक ताजा शोध में पता चला है कि इसमें जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की अदभुत क्षमता है और सामान्य तुलसी तथा अन्य पौधों के मुकाबले यह 12 प्रतिशत ज्यादा कार्बन सोख सकती है। उत्तराखंड के बद्रीनाथ मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन करने जाते हैं। यहां भगवान बद्रीनाथ को प्रसाद के तौर पर ब्रद्री तुलसी चढ़ती है।
उत्तराखंड फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि बद्री तुलसी खत्म(विलुप्त) होने की कगार पर है। अब राज्य का वन विभाग बद्री तुलसी की प्रजाति को बचाने की कोशिश में जुट गया है। सेन्ट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (मिनस्ट्री ऑफ आयुष) के मेम्बर डॉ. मधुसूदन देशपांडे (आयुर्वेद एक्सपर्ट) का कहना है कि बद्री तुलसी कई बीमारियों के इलाज में उपयोगी है इससे दिल से जुड़ी बीमारी और कैंसर की दवाएं बनाई जाती हैं। इसके बीज और पत्तियों का उपयोग डाइजेशन सिस्टम से संबंधित रोगों के लिए फायदेमंद होता है। सिर दर्द, सर्दी-जुकाम, मलेरिया के लिए बद्री तुलसी बहुत काम की है। ये मोटापा कम करने में मदद करती है। इसे सौंदर्य निखार के लिए भी खाया जाता है।
बद्रीनाथ धाम में रोज तुलसी की मालाएं चढ़ाई जाती हैं। ये माला माल्या पंचायत और बामणी गांव के लोगों द्वारा बनाई जाती है। बद्रीनाथजी की आरती पवन मंद सुगंध शीतल लाइन आती है। इस लाइन में जो सुगंध शब्द की बात आई है,वह इसी बद्रीतुलसी से संबंधित है।तुलसी की महक यहां के वातावरण को पवित्र बनाती है। कोरोना संक्रमण के चलते बदरीनाथ धाम की तीर्थयात्रा रुकी होने के बावजूद यहां की ‘बद्रीतुलसी’ ऑनलाइन बिक रही है। पूर्व में धाम की यात्रा पर आ चुके श्रद्धालु बदरीनाथ धाम से सटे बामड़ी के ग्रामीणों से ऑनलाइन तुलसी की माला खरीद रहे हैं और ऑनलाइन ही भक्तों को दिखाकर भगवान बदरीनाथ को अर्पित कर रहे हैं। तुलसी की माला से ग्रामीणों की आमदनी भी
हो रही है और भक्तों की इच्छा भी पूरी हो रही है। स्वरोजगार की दिशा में ग्रामीणों की यह अनूठी पहल है बदरीनाथ धाम में तुलसी की पैदावार बड़े पैमाने पर होती है। इसे बदरी तुलसी नाम से जाना जाता है। धार्मिक आस्था के साथ ही यह तुलसी अपने में औषधीय गुण समेटे है।
बदरी तुलसी चर्म रोग (लेसमेनियासिस), डायरिया, डायबिटीज, घाव, बाल झड़ना, सिर दर्द, बुखार, कफ-खांसी, बैक्टीरियल संक्रमण जैसे रोगों को दूर करने में फायदेमंद है। हिमालय की बर्फीली वादियों में उपजी और ठंडे माहौल में रहने की आदी बदरी तुलसी अधिक कार्बन सोखेगी। इतना ही नहीं तापमान बढ़ने पर बदरी तुलसी मुरझाएगी नहीं, बल्कि और शक्तिशाली हो जाएगी। बदरीनाथ क्षेत्र के ग्रामीणों ने बदरी तुलसी को भगवान नारायण को समर्पित कर दिया है, यही वजह है कि यहां ये पौधा अच्छी तरह संरक्षित है। बदरी तुलसी के पौधे को कोई भी नुकसान नहीं पहुंचाता। चारधाम आने वाले सैलानी और श्रद्धालु बदरी तुलसी को प्रसाद के रूप में अपने घर ले जाते हैं। श्रद्धालु केवल इसे प्रसाद के लिए तोड़ते हैं। पुराणों में भी इसके औषधीय गुणों का खूब बखान किया गया है। आस्था हो या फिर विज्ञान हर कसौटी पर बदरी तुलसी का पौधा शत-प्रतिशत खरा उतरा है, लोगों के लिए ये किसी चमत्कार से कम नहीं है।
लेखक उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर कार्य कर चुके हैं।
(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )