बिगड़ रहा है प्राकृतिक सन्तुलन, बढ़ रही हैं चुनौतियां
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखण्ड राज्य अपने प्राकृतिक सौंदर्य व वन्यजीवों के कारण विख्यात है। यहां के वन,अनेक पशु-पक्षी व जंगली जानवर इस राज्य को खूबसूरत, आकर्षण व प्रसिद्ध बनाते हैं। उत्तराखण्ड में कुल क्षेत्रफल (53,483 वर्ग किलोमीटर) का 71.05% (38,000वर्ग किलोमीटर ) भाग वन आरक्षित है। उत्तराखण्ड जिन चीजों के कारण प्रसिद्ध है वहीं दूसरी तरफ उन्हीं चीजों के कारण यहां के लोग परेशानियां भी उठा रहे है। जिन वन्यजीवों के कारण उत्तराखण्ड प्रसिद्ध था। आज उन्हीं वन्यजीवों ने परेशानियां उत्पन्न कर रखी है,अलग-अलग क्षेत्रों में जंगली जानवरों ने आम लोगों की दिक्कतें बढ़ा दी है। तेंदुए,बाघ, जंगली सूअर व हाथी आदि जंगली जानवरों ने किसानों की मेहनत को बर्बाद कर दिया है। कई ऐसे गांव हैं जहां इन जानवरों ने फसलों को तो रौंदा ही पर साथ ही साथ किसानों की मेहनत को भी रौंद दिया है। वहीं कुछ जानवर फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं तो कुछ जंगली जानवर लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। गुलदार, बाघ, हाथी व भालू के हमलों से कई लोग घायल व कई लोगों की मौत हो चुकी है।
वन्यजीवों के कारण जो नुकसान आम जनता को सहना पड़ रहा है उसके लिए सरकार ने अनेक नीतियां बनाई है। अगर किसी जंगली जानवर के कारण कोई नुकसान व हानि आम जनता को पहुंची है तो सरकार ने उसके लिए अलग-अलग धनराशि तय कर रखी है जो कि समय-समय पर बढ़ा दी जाती है। मानव वन्यजीव संघर्ष रोकने के लिए आबादी क्षेत्रों में तथा जंगल और खेतों के बीच सोलर फेंसिंग लगाई जा रही है। हाथी से बचाव के लिए हाथी खाई वह हाथी रोधी दीवार (मोटी सीमेंट की दिवार) बनाई जा रही है। वन्य जीवो का हमला तुरंत खत्म तो नहीं किया जा सकता पर धीरे-धीरे हमले कम करने का प्रयास वन विभाग कर रहा है “वन विभाग की तरफ से समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाया जाता है। गांव में जाकर उन्हें जंगली जानवरों से बचने व उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए वह बताया जाता है। रामनगर, टिहरी, पौड़ी जैसे क्षेत्रों में जहां गुलदार,बाघ, हाथी व अन्य जानवरों का हमला जब बढ़ जाता है तब उन क्षेत्रों में गश्त बढ़ा दी जाती है। आदमखोर जानवरों को पकड़ने के लिए तत्काल कार्यवाही की जा रही है।
वर्तमान की स्थिति को देखते हुए, वन्यजीव संरक्षण के साथ ही साथ मानव जीवन संरक्षण भी आवश्यक है। वन्यजीवों का बस्तियों से आने का सिलसिला जारी है। जिसके कारण लोग दहशत में है। ताजा मामला रामनगर वनप्रभाग के अंतर्गत पड़ने वाले टेड़ा भंडारपानी मार्ग का है। यहां हाथियों का झुंड सड़क पर आ गया। जिसके कारण पूरा यातायात बाधित हो गया। वहीं,धर्मनगरी हरिद्वार में भी रिहायशी इलाकों में जंगली जानवरों का आना लगातार जारी है। बीती रात हरिद्वार के कॉलोनी में हाथियों की दहशत रही। रुद्रप्रयाग नगर क्षेत्र में भी गुलदार के आतंक से लोग परेशान हैं। ऋषिकेश में आवारा सांडों ने लोगों का जीना मुहाल किया हुआ है। राज्य में वन्यजीव रेस्क्यू सेंटर गुलदार और बाघों से भरे पड़े हैं। अब, वहां अन्य पकड़े गए वन्य जीवों को रखने की जगह नहीं है, लिहाजा इसके लिए भी तुरंत कार्ययोजना बनाई जाए। राज्य के रेस्क्यू सेंटर के गुलदार और बाघों को दूसरे राज्यों के चिड़ियाघर, वन्यजीव रेस्क्यू सेंटर में शिफ्ट करने के लिए वहां के जिम्मेदार अधिकारियों से संपर्क करें, ताकि यह समस्या हल हो सके।
मुख्यमंत्री ने ऐसी घटनाओं को देखते हुए प्रमुख वन संरक्षक को दैनिक रूप से मामलों की मॉनिटरिंग करने के निर्देश दिए।इसके अलावा चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन को भी खुद फील्ड में जाने के लिए भी आदेश दिया गया है।मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विभाग के अधिकारियों को सख़्त निर्देश दिए, कि किसी भी दशा में जनहानि नहीं होनी चाहिए। इसके लिए जो भी आवश्यक कदम हैं, उठाये जायें। लोगों को जागरूक किया जाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि मानव वन्य जीव संघर्ष के लिए वन विभाग अलर्ट मोड पर काम करे। जिम्मेदार अधिकारियों को यह भी निर्देश दिए कि जंगलों से सटे गांवों में शत प्रतिशत शौचालय और गैस कनेक्शन दिए जाने की योजना बनाई जाए ताकि लोग जंगलों का रुख न करें। धरती पर प्राकृतिक सन्तुलन बनाए रखने और मानव जीवन के लिए सुख-समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए जितना जरूरी आदमी है, उतने ही जरूरी अन्य जीव जन्तु और पादप भी हैं।
इसी तरह हमारे जीवन में बहुत काम आने वाले पालतू पशु जितने जरूरी हैं, उतने ही जरूरी वन्य जीव जन्तु भी हैं। इनमें से भी अगर केवल वनस्पतियों पर निर्भर जीव जन्तु ही धरती पर रहेंगे तो यह धरती वनस्पति विहीन हो जाएगी, इसलिए दूसरे जीवों को खाने वाले मांसाहारी जीवों का सही अनुपात में सलामत रहना बहुत जरूरी है। लेकिन दुर्भाग्य से यह प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ गया है। इस असन्तुलन के कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष चिन्ताजनक स्थिति जक पहुंच गया है। सुनने में तो बहुत अच्छा लग रहा है कि देश में बाघों और तेंदुओं जैसे मांसाहारी जीवों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। कूनो पार्क में विदेश से लाए गए चीतों की वंश वृद्धि की सूचना है।
देश में बाघों की संख्या 3683 तक पहुंच गई। लेकिन दूसरी तरफ केरल में वायनाड, कन्नूर, पलक्कड़ और इडुक्की जिलों की मानव वन्यजीव संघर्ष की इस सरकारी रिपोर्ट के आकड़े भी देखिए जिनमें कहा गया है कि 2022-23 में इन जिलों में 8,873 जंगली जानवरों के हमले दर्ज किए गए, जिनमें से 4193 जंगली हाथियों द्वारा,1524 जंगली सूअरों द्वारा, 193 बाघों द्वारा, 244 तेंदुओं द्वारा और 32 बाइसन द्वारा किए गए थे । उत्तराखण्ड की राजधानी के कुछ इलाकों में लोगों को रात को घरों से न निकलने की सलाह प्रशासन द्वारा दी गई है। मुख्यमंत्री ने राज्य में गुलदारों के बढ़ते हमलों को देखते हुए वन विभाग के कर्मचारियों की छुट्टियों पर रोक लगा रखी है। श्रीनगर गढ़वाल में तो मानों गुलदारों को रात का पहरा देने की ड्यूटी लगी हो। देहरादून महानगर के आसपास जनवरी और फरवरी में मानवभक्षी तेंदुए तीन लोगों को निवाला बना चुके हैं। वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री द्वारा जुलाई 2022 में लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में दी गई लिखित जानकारी के अनुसार हाथियों ने 2019 से लेकर 2022 तक देश में 1,579 मनुष्यों को मार डाला। इनमें से सबसे अधिक 322 मौतें ओडिशा में हुईं, इसके बाद झारखंड में 291, पश्चिम बंगाल में 240, असम में 229, छत्तीसगढ़ में 183 और तमिलनाडु में 152 मौतें हुईं। सन् 2019 और 2021 के बीच बाघों ने अभयारण्यों में 125 मनुष्यों को मार डाला। इनमें से लगभग आधी मौतें महाराष्ट्र में हुईं।
उत्तराखंड में हर साल मानव पशु संघर्ष बढ़ रहा है। राज्य गठन के वर्ष 2000 से लेकर 2022 तक, कुल 1,054 लोग वन्यजीवों के हमलों का शिकार हुए, 5,112 व्यक्ति ऐसे हमलों में घायल हुए। उत्तराखण्ड में गुलदारों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है औेर मानजीवन के लिए सर्वाधिक खतरा ये गुलदार ही बने हुए हैं। इस संकट के लिए बेजुबान वन्यजीवों को अकेले दोषी ठहराना न तो न्यायसंगत् है और ना ही इससे कोई हल निकल सकता है। देखा जाए तो मनुष्य ही इस संघर्ष के लिए ज्यादा जिम्मेदार है। मानव आबादी बढ़ते जाने से उसका वन्यजीव आवासों में विस्तार होता जा रहा है जिससे वन्यजीवों के आवास की हानि और विखंडन हो रहा है। यह स्थिति वन्यजीवों को मानव बहुल क्षेत्रों में भोजन और आश्रय खोजने के लिए मजबूर करती है, जिससे संघर्ष की संभावना बढ़ जातीहै। वनों की कटाई, कृषि और शहरीकरण जैसे भूमि उपयोग परिवर्तन वन्यजीव आवास और प्रवास पैटर्न को बदल देते हैं, जिससे जानवर मानव बस्तियों के निकट संपर्क में आ जाते हैं।
जलवायु परिवर्तन पारिस्थितिक तंत्र को बदल रहा है और वन्यजीवों के व्यवहार, वितरण और भोजन की उपलब्धता को प्रभावित कर रहा है। इससे जानवरों की गतिविधियों और सीमाओं में परिवर्तन हो सकता है। अवैध शिकार और वन्यजीव व्यापार जैसी अवैध गतिविधियां पारिस्थितिक तंत्र को बाधित करती हैं और वन्यजीव आबादी को कम कर सकती हैं, जिससे संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है और मनुष्यों के साथ संघर्ष हो सकताहै।मानवीय गतिविधियां बढ़ने से प्राकृतिक शिकार की आबादी को खत्म कर देती हैं।इससे मांसाहरी जीव घरेलू जानवरों को निशाना बनाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। सड़कें, बाड़ और अन्य मानव निर्मित संरचनाएं वन्यजीव गलियारों और प्रवास मार्गों को बाधित करती हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है, जो समुदाय अपनी आजीविका के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं, उन्हें वन्यजीवों के साथ संघर्ष का सामना करना पड़ता है।
इधर, कुछ मामलों में, वन्यजीव व्यवहार के बारे में जागरूकता की कमी और अपर्याप्त शमन उपाय संघर्षों में योगदान कर सकते हैं। संघर्षों को कम करने के लिए शिक्षा और सामुदायिक सहभागिता आवश्यक है। न्यजीव प्रायः लोगों की सुरक्षा, आजीविका और सुख सुविधाओं के लिए सीधा खतरा पैदा करते हैं। उदाहरण के लिए जब हाथी फसलों को खा जाते हैं, गुलदार और बाघ पालतू पशुओं को मार देते हैं, तो लोग अपनी आजीविका खो सकते हैं।
हिसंक जीव मानव संहार भी करते हैं तो मानव द्वारा इन प्रजातियों के खिलाफ अक्सर प्रतिशोध होता रहता है। यह प्रतिशोध किसी प्रजाति के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है और पिछली संरक्षण प्रगति को उलट सकता है।मानव जनसंख्या वृद्धि, कृषि विस्तार, बुनियादी ढांचे के विकास, जलवायु परिवर्तन और निवास स्थान के नुकसान के अन्य कारकों के कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष अधिक लगातार, गंभीर और व्यापक होते जा रहे हैं। मानव-वन्यजीव संघर्ष वहां भी हो सकता है जहां वन्यजीव और मानव आबादी ओवरलैप होती है, इसलिए कोई भी कारक जो वन्यजीव और लोगों को निकट संपर्क में आने के लिए मजबूर करता है, संघर्ष की संभावना को और अधिक बढ़ा देता है।अब तक किए गए अधिकांश कार्यों में लोगों पर प्रभाव को कम करने के लिए हस्तक्षेप और वन्यजीवों के खिलाफ प्रतिशोध जैसे बाधाएं पैदा करना, निवारक तैनात करना या वन्यजीवों को स्थानांतरित करना शामिल है। हितधारकों के साथ परामर्शात्मक, सहयोगात्मक प्रक्रियाओं के अभाव में, इन उपायों को अक्सर सीमित सफलता मिलती है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष को संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी के 2020 के बाद के वैश्विक जैव विविधता ढांचे में एक वैश्विक चिंता के रूप में मान्यता दी गई है। विशेज्ञों द्वारा ऐसे कई दृष्टिकोण और उपाय सुझाये गये हैं जिनसे क्षति या प्रभाव को कम करने, तनाव कम करने, आय और गरीबी के जोखिमों को दूर करने और स्थायी समाधान विकसित करने के लिए अपनाए जा सकते हैं। इन सुझावों में वन्यजीवों को बस्तियों में आने से रोकने के लिये बाधाएं (बाड़, जाल, खाइयाँ), रखवाली और पूर्व-चेतावनी प्रणालियां, निवारक और विकर्षक (सायरन, रोशनी, मधुमक्खी के छत्ते),स्थानान्तरण (वन्यजीवों को स्थानांतरित करना), मुआवजा या बीमा, जोखिम कम करने वाले विकल्प प्रदान करना, साथ ही प्रबंधन भी शामिल हैं। ऐसे उपायों की प्रभावी योजना और कार्यान्वयन के लिए प्रभावित समुदायों के सहयोग से समुदाय के नेतृत्व वाले संरक्षण में अच्छे सिद्धांतों पर विचार करने की आवश्यकता होती है। स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र और लोगों को प्रदान की जाने वाली महत्वपूर्ण सेवाएँ वन्य जीवन पर निर्भर करती हैं। इसलिए मानव-वन्यजीव संघर्षों का प्रबंधन संयुक्त राष्ट्र के जैव विविधता विजन 2050 को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है जिसमें “मानवता प्रकृति के साथ सद्भाव में रहती है और जिसमें वन्यजीव और अन्य जीवित प्रजातियां संरक्षित हैं”।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )