हिमालय के ऊपर बढ़ रहा तापमान खतरे की घंटी

हिमालय के ऊपर बढ़ रहा तापमान खतरे की घंटी

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

दुनिया में इस साल रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ रही है। वहीं कई इलाके ऐसे हैं, जहां भयानक बारिश हो रही है। यह कोई भी देख सकता है कि साल 2023का मौसम सामान्य नहीं है। कई लोग इसके लिए जलवायु परिवर्तन को दोष दे रहे हैं।जो कि एक हद तक सही भी है। इंसानों के जीवाष्म ईंधन जलाने से फैली ग्लोबल वॉर्मिंग इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हाल ही में पता चला है कि जून 2023में मैक्सिको में गर्मी की भयानक लहर के लिए ग्लोबल वॉर्मिंग ही जिम्मेदार है। लेकिन गर्मी के लिए सिर्फ ग्लोबल वॉर्मिंग को दोष नहीं दिया जा सकता।

एरोसॉल ही निचले वायुमंडल को गर्म करने के लिए 50 फीसदी जिम्मेदार है जबकि बाकी भूमिका ग्रीन हाउस गैसों की है। साफ तौर पर पाया गया है कि एरोसॉल से ना केवल इलाका गर्म हो रहा है,बल्कि हिमालय पर्वत शृंखला दुनिया भर की सबसे विशाल पर्वत शृंखला है। इसके ग्लेशियर से निकली नदियों से करीब दनिया के 2 अरब लोगों की पानी की जरूरतें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पूरी होती हैं। यह अफगानिस्तान से लेकर म्यांमार तक फैला जिसमें भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, चीन और बांग्लादेश भी शमिल हैं।

आपको बता दें कि, अब जलवायु परिवर्तन की वजह से हमारा हिमालय गर्म हो रहा है। इसरो के वैज्ञानिकों की अगुआई में हुए अध्ययन में खुलासा हुआ है, कि हालात बहुत नाजुक हो रही है और इसके लिए जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती पानी की महीन बूंदें जिम्मेदार हैं रिपोर्ट में बताया गया है कि अकेलेवह जलवायु परिवर्तन का प्रमुख बनने के साथ ही ग्लेशियरों के पिघलने की दर को बढ़ाने के साथ ही बारिश के स्वरूपों में भी बदलाव ला रहा है। पहली बार हुए इस तरह क अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि ऐरोसोल रेडिएटिव फोर्सिंग कारगरता दक्षिण और पूर्वी एशिया के तुलना में 2-4 गुना अधिक है।अध्ययन की पड़ताल के नतीजे हाल ही में द साइंस ऑफ टोटल एनवायर्नमेंट जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।

अध्ययन में पाया गया है कि अवलोकित वार्षिक औसत एरोसॉल जनित वायुममंडलीय ऊष्मन पहले की तुलना में अधिक पाया गया है। इससे एशिया की करीब 2 अरब की वजह जनसंख्या सीधे तौर पर प्रभावित होगी जो पीने के पानी के साथ ही, सिंचाई और ऊर्जा के लिए भी हिमालय पर निर्भर है।बढ़ने लगेंगी बाढ़, भूस्खलन जैसी आपदाएंहिमालय के ऊपर तापमान बढ़ने का सीधे तौर पर ग्लेशियरों को अस्थिर करने का काम करेगा जो पहले से ही हिमालय के रिहायशी इलाकों के पास तबाही का खतरा बन चुके हैं और अपने साथ भूस्खलन जैसी खतरनाक घटना ला दते हैं। इसमें ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से असमय आने वाली की बाढ़ एक सहायक कारक बन जाती है। जिससे बारिश के पैटर्न में बदलाव होगा और मानसून तो प्रभावित होगा ही हिमालय पर होने वाली असमय बारिश और बर्फबारी बढ़ेगी।जिसका भारत पर गहरा असर होगा। लेकिन खतरा यहीं तक रुका नहीं है,एरोसॉल के कारण 2 हजार किलोमीटर लंबी हिमालय पर्वत शृखला में लगातार बर्फ का नुकसान हो रहा है और तेजी से ग्लेशियर पिघलने का एक प्रभाव यहां के जलचक्र तक को प्रभावित करेगा।

मानवीय गतिविधियाँ जो वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैस छोड़ती हैं, तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि कर रही हैं, प्रति दशक औसतन 0.2 डिग्री फ़ारेनहाइट (0.1 सेल्सियस)। तीन अतिरिक्त प्राकृतिक कारक भी इस वर्ष वैश्विक तापमान और ईंधन आपदाओं को बढ़ाने में मदद कर रहे हैं: अल नीनो, सौर उतार-चढ़ाव और पानी के नीचे एक विशाल ज्वालामुखी विस्फोट। दुर्भाग्य से, ये कारक इस तरह से मिल रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है। इससे भी बदतर, हम कम से कम 2025 तक असामान्य रूप से उच्च तापमान जारी रहने की उम्मीद कर सकते हैं,जिसका मतलब है कि निकट भविष्य में मौसम और भी अधिक चरम होगा। अगले कुछ साल बहुत कठिन हो सकते हैं। यदि अगले वर्ष एक मजबूत अल नीनो विकसित होता है, जो सौर अधिकतम और हंगा टोंगा-हंगा हा’आपाई विस्फोट के प्रभावों के साथ संयुक्त होता है, तो पृथ्वी का तापमान संभवतः अज्ञात ऊंचाई तक बढ़ जाएगा।

जलवायु मॉडलिंग के अनुसार, इसका मतलब संभवतः और भी अधिक गर्मी की लहरें, जंगल की आग, अचानक बाढ़ और अन्य चरम मौसम की घटनाएं होंगी। हाल के वर्षों में मौसम और जलवायु दोनों पूर्वानुमान बहुत विश्वसनीय हो गए हैं, जो पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों से बड़ी मात्रा में डेटा और समुद्र, भूमि और वायुमंडल के जटिल घटकों के बीच गर्मी और पानी के प्रवाह और अंतरसंबंध की भविष्यवाणी करने के लिए विशाल सुपरकंप्यूटिंग शक्ति से लाभान्वित हो रहे हैं। दुर्भाग्य से, जलवायु मॉडलिंग से पता चलता है कि जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि जारी है, मौसम की घटनाएं और अधिक चरम होती जा रही हैं। अब 50 प्रतिशत से अधिक संभावना है कि पृथ्वी का वैश्विक तापमान वर्ष 2028 तक 2.7 F (1.5 C) तक बढ़ जाएगा, कम से कम अस्थायी रूप से, इससे भी अधिक मानव प्रभावों के साथ जलवायु परिवर्तन बिंदुओं को ट्रिगर करने का जोखिम बढ़ जाएगा। जलवायु प्रणाली के कई हिस्सों के दुर्भाग्यपूर्ण समय के कारण, ऐसा लगता है कि हालात हमारे पक्ष में नहीं हैं।

( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )