आखिर उत्तराखंड क्यों मांगे भू-कानून, जानिए इसके पीछे का इतिहास

उत्तराखंड मांगे भू- कानून

उत्तराखंड में भू और जनसंख्या नियत्रंण कानून क्या हैं, उत्तराखंड में इतने सालों से जनसंख्या वृद्धि हो चुकी जिसमें से 50 से 60 % लोग बाहर के हैं। जो उत्तराखंड में उत्तराखंड की जमीन खरीद के ले रहे हैं। जिससे उत्तराखंड में बाहर के लोग बढ़ते जा रहे हैं। उत्तराखंड में वैसे भी लोग पलायन कर रहे हैं। और यहाँ बाहर के लोग आ कर रोजगार कर रहे हैं।
उत्तराखंड की कंपनियों में भी बाहर के लोगो को पहले रखा जाता है। और उत्तराखंड के मूल निवासियों को बाद में जिससे बाहर के लोग यहाँ काम करके के यहाँ की जमीन खरीद रहे है। इसलिए अब उत्तराखंड के लोग यह मांग कर रहे है कि उत्तराखंड में बाहर के लोगो को जमीन ना बेचीं जाए इसलिए यहाँ उत्तराखंड के लोग उत्तराखंड भू- कानून और जनसंख्या नियत्रंण कानून की मांग कर रहे हैं।
उत्तराखंड में भू कानून, जनसंख्या नियत्रंण कानून लागू करने और जोशियाड़ा में हाईटेंशन बिजली लाइन को हटाने की मांग की।
भाजपा के पूर्व जिला महामंत्री विजय बहादुर सिंह रावत ने देहरादून में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी से मुलाकात की। उन्होंने उत्तराखंड में भू कानून, जनसंख्या नियत्रंण कानून लागू करने और जोशियाड़ा में हाईटेंशन बिजली लाइन को हटाने की मांग की।
मुख्यमंत्री ने उन्हें अपने स्तर से सभी समस्याओं के निदान करने का भरोसा दिया।
मुख्यमंत्री से मुलाकात में दौरान भाजपा के पूर्व जिला महामंत्री विजय बहादुर सिंह रावत ने उन्हें भू और जनसंख्या नियत्रंण कानून लागू करने की मांग की। कहा कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद यहां पर तेजी से बाहरी राज्यों के रहने वाले व्यक्तियों द्वारा बड़े-बड़े भूखंड, बीघा के हिसाब खरीदे जा रहे है, जो कि हमारे राज्य की अवधारणा के विपरीत है। इसके साथ ही उन्होंने जनसंख्या नियत्रंण कानून लागू करने की मांग की।
इसके बाद भाजपा के पूर्व जिला महामंत्री ने कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी से भी मुलाकता कर जोशियाड़ा क्षेत्र में हाईटेंशन बिजली लाइनों को हटाने की मांग की। कहा कि जोशियाड़ा में हाईटेंशन बिजली लाइनों के कारण कई दुर्घटनाएं हो गई।
कहा कि कई बार प्रशासन व ऊर्जा निगम के अधिकारियों को इस संबंध में लिखत व मौखिक भी बताया गया है, लेकिन कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं है। इस संबंध में मुख्यमंत्री व कैबिनेट मंत्री ने उन्हें अपने स्तर से शीघ्र ही समस्याओं के निदान करने का भरोसा दिया।
भू- कानून और उत्तराखंड में क्या है इसका इतिहास-
भू – कानून का सीधा – सीधा मतलब भूमि के अधिकार से है। यानी आपकी भूमि पर केवल आपका अधिकार है न की किसी और का जब उत्तराखंड बना था तो उसके बाद साल 2002 तक बाहरी राज्यों के लोग उत्तराखंड में केवल 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे। वर्ष 2007 में बतौर मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी ने यह सीमा 250 वर्ग मीटर कर दी।
इसके बाद 6 अक्टूबर 2018 को भाजपा के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत एक नया अध्यादेश लाए, जिसका नाम  उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम , 1950 में संशोधन का विधेयक ‘ था। इसे विधानसभा में पारित किया गया। इसमें धारा 143 ( क ) , धारा 154 ( 2 ) जोड़ी गई।
यानी पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को समाप्त कर दिया गया। अब कोई भी राज्य में कहीं भी भूमि खरीद सकता था। साथ ही इसमें उत्तराखंड के मैदानी जिलों देहरादून , हरिद्वार , यूएसनगर में भूमि की हदबंदी ( सीलिंग ) खत्म कर दी गई इन जिलों में तय सीमा से अधिक भूमि खरीदी या बेची जा सकेगी।
उत्तराखंड की अगर बात करें तो एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 के आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तराखंड की कुल 8,31,227 हेक्टेयर कृषि भूमि 8,55,980 परिवारों के नाम दर्ज थी। इनमें 5 एकड़ 10 एकड़, 10 एकड़ से 25 एकड़ और 25 एकड़ से ऊपर की तीनों श्रेणियों की जोतों की संख्या 1,08,863 थी इन 1,08,863 परिवारों के नाम 4,02,422 हेक्टेयर कृषि भूमि दर्ज थी।
यानी राज्य की कुल कृषि भूमि का लगभग आधा भाग बाकी 5 एकड़ से कम जोत वाले 7,47,117 परिवारों के नाम मात्र 4,28,803 हेक्टेयर भूमि दर्ज थी।
ये आंकड़े दर्शाते हैं कि, किस तरह राज्य के लगभग 12 फीसदी किसान परिवारों के कब्जे में राज्य की आधी कृषि भूमि है। बची 88 फीसदी कृषि आबादी भूमिहीन की श्रेणी में पहुंच चुकी है।
हिमाचल के मुकाबले उत्तराखंड का भू कानून बहुत ही लचीला है इसलिए सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय लोग , एक सशक्त , हिमाचल के जैसे भू – कानून की मांग कर रहे हैं। इसलियें उत्तराखंड मांगे भू- कानून।