चिलचिलाती गर्मी के बीच मौसम विभाग ने इस साल मानसून को लेकर सुनाई खुशखबरी, किसानों को भी राहत
लोक संस्कृति
अभी देश में गर्मी का मौसम पूरे अपने रौद्र रूप में नहीं आया है। कुछ दिनों बाद प्रचंड गर्मी परेशान करने वाली है। देश के कुछ हिस्से पहले से ही अत्यधिक गर्मी से जूझ रहे हैं और अप्रैल से जून की अवधि में काफी अधिक संख्या में हीट वेव वाले दिन आने की उम्मीद है। इससे बिजली ग्रिड पर दबाव पड़ सकता है और पानी की कमी हो सकती है। इस बीच मौसम विभाग ने मानसून को लेकर अच्छी खबर सुना दी है। मौसम विभाग की मानें तो इस साल भी देश भर में झमाझम बारिश होगी।
भारतीय मौसम विभाग ने बताया कि इस बार जून से सितंबर तक मानसून सामान्य से बेहतर रहेगा। आईएमडी का कहना है कि 2025 में 105% यानी 87 सेंटीमीटर बारिश हो सकती है। मौसम विभाग 104 से 110 फीसदी के बीच बारिश को सामान्य से बेहतर मानता है। यह फसलों के लिए अच्छा है।
गौरतलब है कि वर्ष 1971 से 2020 तक मानसूनी वर्षा का दीर्घकालिक औसत 87 सेंटीमीटर दर्ज है। वर्तमान में प्रशांत महासागर में ईएनएसओ की स्थिति सामान्य है, लेकिन वातावरण में ला-नीना जैसी स्थितियां देखने को मिल रही हैं। वहीं, हिंद महासागर में भी इंडियन ओशन डायपोल की स्थिति फिलहाल सामान्य है और इसके भी मानसून के समय तक समान बने रहने की संभावना है।
आईएमडी द्वारा जारी पूर्वानुमान के मुताबिक देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक वर्षा की संभावना है, जबकि उत्तर-पश्चिम भारत, पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में सामान्य से कम वर्षा हो सकती है। कुछ क्षेत्रों में मौसम मॉडल से स्पष्ट संकेत नहीं मिले हैं, जिससे वहां सामान्य, कम या अधिक-तीनों में से कोई भी स्थिति संभव हो सकती है। आईएमडी ने यह पूर्वानुमान मल्टी-मॉडल एन्सेम्बल तकनीक के आधार पर तैयार किया है, जो कई जलवायु मॉडलों के माध्यम से मानसून की अधिक सटीक भविष्यवाणी करने में सहायक होती है।
देश की अर्थव्यवस्था और अच्छी पैदावार के लिए बारिश वरदान
बता दें कि देश में 70% से 80% किसान फसलों की सिंचाई के लिए बारिश पर ही निर्भर हैं। यानी मानसून के अच्छे या खराब रहने से पैदावार पर सीधा असर पड़ता है। अगर मानसून खराब हो तो फसल कम पैदा होती है, जिससे महंगाई बढ़ सकती है। क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था में एग्रीकल्चर सेक्टर की हिस्सेदारी करीब 20% है। हालांकि, सामान्य बारिश का मतलब यह नहीं है कि देश में हर जगह और हर समय एक जैसी बारिश होगी। भारत एक किसान प्रधान देश है। कृषि क्षेत्र के लिए मानसून महत्वपूर्ण है। कृषि देश की लगभग 42.3 प्रतिशत आबादी की आजीविका का आधार है। देश के सकल घरेलू उत्पाद में 18.2 प्रतिशत का योगदान देता है।
बता दें कि शुद्ध खेती वाले क्षेत्र का 52 प्रतिशत प्राथमिक बारिश प्रणाली पर निर्भर करता है। इसके अलावा देश भर में बिजली उत्पादन के अलावा पीने के पानी के लिए महत्वपूर्ण जलाशयों को फिर से भरने के लिए भी बारिश महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि मानसून के मौसम में सामान्य बारिश की भविष्यवाणी देश के लिए एक बड़ी राहत की बात है। जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि बारिश के दिनों की संख्या घट रही है जबकि भारी बारिश की घटनाएं (थोड़े समय में अधिक बारिश) बढ़ रही हैं। यही वजह है कि लगातार सूखे और बाढ़ आ रही हैं। मौसम विभाग के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश में बदलाव हो रहा है।
जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि बारिश के दिनों की संख्या कम हो रही है। लेकिन कम समय में भारी बारिश की घटनाएं बढ़ रही हैं। इससे बार-बार सूखा और बाढ़ आ रही है। भारत में मानसून आमतौर पर 1 जून के आसपास केरल के दक्षिणी सिरे पर आता है। यह मध्य सितंबर में वापस चला जाता है। वहीं इस साल मानसून के दौरान उत्तराखंड में जमकर बारिश होने की संभावना है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रदेश में इस बार सामान्य से अधिक बारिश होने के आसार हैं। खासतौर पर पर्वतीय जिलों में कई दौर की तेज बारिश होने से मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
इस संबंध में मौसम विज्ञान केंद्र की ओर से पूर्वानुमान जारी किया गया है। हालांकि मानसून के दौरान होने वाली बारिश के संबंध में मई के अंतिम सप्ताह में भी पूर्वानुमान जारी किया जाएगा।