तिमूर (Timur) दांतों के लिए नहीं रक्तचाप के लिए भी रामबाण
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में बहुतायत से पाया जाने वाला तिमूर वास्तव में बहुपयोगी है। अलग-अलग जगहों पर इसके नाम के साथ थोड़ा फेरबदल जरूर है मगर है यह बहुत काम की चीज। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यह रूटेसी परिवार से है, इसका वैज्ञानिक नाम
जेंथेजाइलम अरमेटम हैं। कुमाऊं में इसे तिमुर, गढ़वाल में टिमरू, संस्कृत में तुम्वरु, तेजोवटी, जापानी में किनोमे, नेपाली में टिमूर यूनानी में कबाबए खंडा, हिंदी में तेजबल, नेपाली धनिया आदि नामों से जाना जाता है।
भारत प्राचीन काल से ही जड़ी बूटियों एवं औषधियों का उपयोग करता आया है और भारत के राज्यों में औषधीय गुण वाले तमाम पेड़- पौधे मौजूद हैं। इन्हीं में से एक है पहाड़ी नीम यानी तिमूर जो मुख्य तौर पर उत्तराखंड में पाई जाती है। इस नीम को कई गुणों से भरपूर माना जाता है और कई छोड़ी-बड़ी बीमारियों के इलाज में इसका इस्तेमाल किया जाता है। इस पौधे का इस्तेमाल दंत मंजन के रूप में होता है, वहीं माना जाता है कि इसे लेने से बीपी भी कंट्रोल में रहता है। इस कांटेदार पेड़ पर छोटे-छोटे फल लगते हैं और इन दानों को चबाने पर झाग भी बनता है।
उत्तराखंड की पहाड़ी में पाए जाने वाले इन पौधे का वैज्ञानिक नाम जेनथोजायलम अर्मेटम है। झाड़ीनुमा इस वृक्ष की लंबाई 10 से 12 मीटर होती है और तिमूर के अलावा इसे टिमरू और तेजोवती नाम से भी जाना जाता है। इस पौधे की सूखी टहनी बहुत मजबूत होती है जिसके चलते इसे लाठी के तौर पर भी प्रयोग में लाया जाता है। वहीं इसका आध्यात्मिक महत्व भी है और इसकी लकड़ी को बहुत शुभ माना जाता है। पहाड़ी नीम की लकड़ी को मंदिर, देव स्थानों आदि पर प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है।इन पहाड़ी पोधो के कई फायदे है जैसे कि दांतों और मसूढ़ों की देखभाल में पहाड़ी नीम बहुत काम आती है। इसे दांत का दर्द दूर करने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है।
इन्हीं खूबियों के कारण इसे पायरिया के इलाज में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसकी सूखी टहनी शरीर में जोड़ों पर अच्छा दबाव बनता है। इस वजह से ये एक्यूप्रेशर के काम में ली जाती है। पहाड़ी नीम के बीज भी कई फायदों के लिए जाने जाते हैं। इनको जहां माउथ फ्रेशनर के रूप में प्रयोग किया जाता है, वहीं इनमें एक एंटीसेप्टिक रसायन भी होता है। इन बीजों को पेट की तकलीफों के लिए प्रयोग में लाया जाता है। बीपी कंट्रोल करने में भी पहाड़ी नीम का प्रयोग होता है। इसकी टहनियों के निर्मित औषधि ब्लड प्रेशर को सही रखती है।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र अपनी अमूल्य वन संपदा और वनौषधियों के लिए पूरी दुनिया में अलग पहचान रखते हैं। यहां अनेक दुर्लभ जड़ी बूटियां पैदा होती हैं, जिनका प्रयोग स्थानीय लोग सदियों से औषधि के रूप में करते आ रहे हैं। ऐसी ही अनेक गुणों से युक्त पर्वतीय क्षेत्र में मिलने वाली वनौषधि है तिमूर। तिमूर दांतों के लिए ही संजीवनी नहीं है बल्कि रक्तचाप नियंत्रण के लिए भी रामबाण है। तिमूर पहाड़ में हर स्थान पर पाया जाता है। इसकी दंतमंजन बनाने के लिए काफी मांग रहती है, लेकिन यह रोजगार का जरिया पहाड़ में नहीं बन पाया।
पर्वतीय क्षेत्र में इस वनौषधि का संरक्षण कर रोजगार के विभिन्न अवसर सृजित किए जा सकते हैं। इसकी खेती को बढ़ावा देकर पलायन भी रोका जा सकता है। तिमूर की टहनियों से निर्मित औषधि का प्रयोग रक्तचाप को भी नियंत्रित करता है। तिमूर के बीजों में पाया जाने वाला लीनालोल नामक रसायन एंटीसेप्टिक के रूप में कार्य करता है। इसकी पत्तियों का चूर्ण टूथ पाउडर बनाने में प्रयुक्त होता है। इसके बीजों का प्रयोग माउथ फ्रेशनर, कृमिनाशक दवा के साथ ही उदर रोगों के लिए किया जाता है। बीजों में पाया जाने वाला लीनालोल नामक रसायन एंटीसेप्टिक के रूप में कार्य करता है।
उत्तराखण्ड में तिमूर की लकड़ी को अध्यात्मिक कामों में भी बहुत महत्त्व दिया जाता है, तिमूर की लकड़ी को शुभ माना जाता है। जनेऊ के बाद बटुक जब भिक्षा मांगने जाता है तो उसके हाथ में तिमूर का डंडा दिया जाता है। तिमूर की लकड़ी को मंदिरों, देव थानों और धामों में प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है। तिमूर की पत्तियों में एक विशेष प्रकार का तेल पाया जाता है। इस तेल का प्रयोग तमाम तरह की औषधियों के निर्माण में किया जाएगा।
इससे दवाएं, टूथ पेस्ट, टूथ पाउडर, बायोमास्किटो क्वायल भी बनाया जाता है। इसका तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में दो से दस हजार रुपये प्रति लीटर है। ग्रामीण क्षेत्रों में तिमूर का प्रयोग दातून के रूप में भी किया जाता है। यह दांतों में लगने वाले पायरिया के लिए रामबाण है मुंह में एजायम बनाने वाला, पाचन तंत्र मजबूत करता है। यह एंटी सैप्टिक होता है दांत दर्द को ठीक करता है। इसमें विटामिन ए, फासफोरस, थायमिन और कैरोटिन होता है। इसमें एंटी फंगल और एंटी वैक्ट्रियल गुण होते हैं। इम्यूनिटी को बढ़ता है। दर्द निवारक है भूख बढ़ाने के साथ खून का सर्कुलेशन नियमित रखता है।
सरकार ने बजट सत्र में पिथौरागढ़ में तीन साल में तिमूर घाटी विकसित करने की बात कही है। पूरे जिले में तिमूर का अच्छा उत्पादन होता है। अगर भविष्य में पिथौरागढ़ में तिमूर घाटी विकसित होगी तो किसानों की आय बढ़ेगी। तिमूर समुद्र तल से तकरीबन 8.10 मीटर ऊंचाई पर पाया जाता है। इसके पेड़ का प्रत्येक हिस्सा औषधीय गुणों से युक्त है। तना, लकड़ी, छाल, फूल, पत्ती से लेकर बीज तक हर चीज औषधी के काम में लायी जाती है। उत्तराखंड के पहाड़ में कांटेदार टिमरू अधिकतर जगहों पर पाया जाने वाला पेड़ है। यह दवाईयों के साथ कई अन्य मामलों में भी इसका इस्तेमाल होता है।
बदरीनाथ तथा केदारनाथ में इसकी टहनी को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। उत्तराखंड के सभी जिलों में टिमरू अधिकांश मात्रा में पाया जाता है। इसकी प्रमुख रूप से पांच प्रजातियां उत्तराखंड में पाई जाती हैं जिसका वानस्पतिक नाम जैन्थोजायलम एलेटम है।दांतों के लिए यह काफी फायदेमंद है इसका प्रयोग दंत मंजन, दंत लोशन व बुखार की दवा के रूप में काम में लाया जाता है। इसका फल पेट के कीड़े मारने व हेयर लोशन के काम में भी लाया जाता है। कई दवाइयों में इसके पेड़ का प्रयोग किया जाता है। इसके मुलायम टहनियों को दातुन की तरह इस्तेमाल करने से चमक आती है।यह मसूड़ों की बीमारी के लिए भी रामबाण का काम करता है।
उत्तराखंड के गांव में आज भी कई लोग इसकी टहनियों से ही दंतमंजन करते हैं। टिमरू औषधीय गुणों से युक्त तो है ही, साथ ही इसका धार्मिक व घरेलू महत्व भी है। हिन्दुओं प्रसिद्ध धाम बदरीनाथ तथा केदारनाथ में प्रसाद के तौर पर चढ़ाया जाता है। यही नहीं गांव में लोंगो की बुरी नजर से बचने के लिए इसके तने को काटकर अपने घरों में भी रखते हैं। गांव में लोग इसके पत्ते को गेहूं के बर्तन में डालते हैं, क्योंकि इससे गेहूं में कीट नहीं लगते।इसके बीज मुंह को तरोताजा रखने के अलावा पेट की बीमारियों के लिए भी फायदेमंद हैं। इसकी लकड़ी हाई ब्लड प्रेशर में बहुत कारगर है, इसकी कांटेदार लकड़ी को साफ करके हथेली में रखकर दबाया जाए तो ब्लड प्रेशर कम हो जाता है। तिमूर के बीज अपने बेहतरीन स्वाद और खुशबू की वजह से मसाले के तौर पर भी इस्तेमाल किये जाते हैं।
हमारे यहां तिमूर से सिर्फ चटनी बनायी जाती है लेकिन यह चाइनीज, थाई और कोरियन व्यंजन में बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला मसाला है। शेजवान पेप्पर चाइनीज पेप्पर के नाम से जाना जाने वाला यह मसाला चीन के शेजवान प्रान्त की विश्वविख्यात शेजवान डिशेज का जरूरी मसाला है। मिर्च की लाल काली प्रजातियों से अलग इसका स्वाद अलग ही स्वाद और गंध लिए होता है। इसका ख़ास तरह का खट्टा मिंट फ्लेवर जुबान को हलकी झनझनाहट के साथ अलग ही जायका देता है। चीन के अलावा, थाईलेंड, नेपाल, भूटान और तिब्बत में भी तिमूर का इस्तेमाल मसाले और दवा के रूप में किया जाता है।
(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)