‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के कई संभावित नुकसान और चुनौतियाँ भी : गरिमा दसौनी
देहरादून/लोक संस्कृति
एक राष्ट्र एक चुनाव का विचार आकर्षक हो सकता है, लेकिन इसके कई संभावित नुकसान और चुनौतियाँ भी हैं यह कहना है उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी का। एक राष्ट्र एक चुनाव के मध्य नजर संविधान संशोधन विधेयक के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी )के उत्तराखंड पहुंचने पर दसौनी ने यह बयान दिया है।
गरिमा ने कहा कि एक राष्ट्र, एक चुनाव से देश को फायदा कम नुकसान अधिक होगा और वर्तमान में यह फैसला अव्यावहारिक भी कहा जाएगा क्योंकि देश की आबादी डेढ़ सौ करोड़ के करीब पहुंच चुकी है।
दसौनी ने कहा इसमें संविधानिक जटिलताएँ भी सामने आएंगी जैसे भारत का संविधान केंद्र और राज्यों को अलग-अलग शासन और कार्यकाल की स्वतंत्रता देता है। यदि एक साथ चुनाव होते हैं, तो राज्यों की स्वायत्तता और संघीय ढाँचे पर आघात हो सकता है।
गरिमा ने बताया कि इससे राज्य सरकारों के कार्यकाल में बाधा भी आएगी। यदि किसी राज्य में असमय सरकार गिर जाए, तो उसे दो विकल्प मिलते हैं: या तो राष्ट्रपति शासन लागू हो या फिर उसके लिए विशेष चुनाव टालकर अगले आम चुनाव तक इंतज़ार किया जाए, यह दोनों ही स्थितियाँ लोकतंत्र के लिए सही नहीं।
दसौनी ने इसे स्थानीय मुद्दों के गौड़ हो जाने का भी खतरा बताया,उन्होंने कहा कि जब सभी चुनाव एक साथ होते हैं, तो राष्ट्रीय मुद्दे हावी हो जाते हैं और राज्य या स्थानीय मुद्दों को नजरअंदाज किया जाता है। इससे स्थानीय प्रतिनिधियों का मूल्यांकन ठीक से नहीं हो पाएगा और मतदाताओं के लिए पशोपेश की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
गरिमा ने इसे लोकतंत्र के विरुद्ध भी बताया,उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था में सभी दलों के लिए लेवल प्लेयिंग फील्ड नहीं होगा। विपक्ष के लिए असमान अवसर, सत्ताधारी दल के पास अधिक संसाधन और प्रचार शक्ति होती है। एक साथ चुनाव होने पर विपक्ष को बराबर प्रचार और क्षेत्रीय पहुँच का अवसर कम मिलेगा।
दसौनी ने इस व्यवस्था को लोकतांत्रिक विविधता पर विपरीत असर होने की आशंका जताई।
उन्होंने कहा कि भारत जैसे विविधता वाले देश में हर राज्य की अपनी राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियाँ होती हैं। एक साथ चुनाव से यह विविधता दब सकती है और ‘एकरूप शासन’ की दिशा में धकेला जा सकता है।
यह चुनाव आयोग और प्रशासन पर अत्यधिक दबाव भी डालेगा।
गरिमा ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि एक साथ लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव कराने से चुनाव आयोग, सुरक्षा बलों और प्रशासन पर अत्यधिक दबाव पड़ेगा, जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना कठिन हो सकता है।
चुनावी मुद्दों की जटिलता
दसौनी ने कहा कि एक साथ चुनाव होने पर मतदाता को एक ही समय में केंद्र और राज्य के दो अलग-अलग स्तरों की सरकार के लिए वोट करना होगा। इससे भ्रम की स्थिति बन सकती है।
यह सत्तावादी शासन की ओर झुकाव भी उत्पन्न करेगा।
दसौनी ने कहा कि एक साथ चुनाव लोकतंत्र में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के विरुद्ध है।
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