जोशीमठ में खतरा अभी टला नहीं है!
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
जोशीमठ भूधंसाव पर वैज्ञानिक संस्थाओं की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद भूधंसाव की वजह सामने आई है।हाईकोर्ट की सख्ती के बाद जोशीमठ भूधंसाव पर आई वैज्ञानिकों की रिपोर्ट को सरकार ने सार्वजनिक कर दिया है। जिसमें खुलासा हुआ है कि जोशीमठ में भूधंसाव की वजह जमीन के भीतर पानी के रिसाव के कारण चट्टानों का खिसकना बताई गई है।
इन रिपोर्ट्स के मुताबिक मोरेन क्षेत्र यानी ग्लेशियर की ओर से लाई गई मिट्टी में जोशीमठ बसा हुआ है। जिसकी जमीन के भीतर पानी के रिसाव के कारण चट्टानों के खिसकने की बात सामने आई है और इन्हीं चट्टानों के खिसकने के कारण जोशीमठ में भूधंसाव हो रहा है। हालांकि वाडिया की टीम ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि दो-तीन जनवरी 2023 की रात को ऐसा क्या हुआ, जिससे जोशीमठ शहर में तेजी से भूधंसाव हुआ, लेकिन रिपोर्ट में यह जरूर कहा गया है कि जोशीमठ में छोटे-छोटे भूकप आते रहते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड का जोशीमठ क्षेत्र भारत के उच्चतम भूकंपीय क्षेत्र में आता है। 1999 में 6.6 तीव्रता के चमोली भूकंप का केंद्र जोशीमठ के करीब और दक्षिण में है। जहां हिमालयी भूकंपीय बेल्ट क्षेत्र से होकर गुजरती है, वहां भूकंपीय गतिविधि अधिक होती है। ऊपरी परत के भीतर मुख्य हिमालयन थ्रस्ट भूकंपीय गतिविधि को चलाने वाला प्रमुख टेक्टोनिक फाल्ट है।यही वजह है कि वाडिया इंस्टीट्यूट ने यहां 1.0 से कम तीव्रता वाले सूक्ष्म भूकंप की की निगरानी के लिए जोशीमठ और उसके आसपास 11 स्टेशनों का एक निकटवर्ती भूकंपीय नेटवर्क स्थापित किया। इसको सेंट्रल रिकॉर्डिंग स्टेशन, देहरादून में निरंतर भूकंपीय डेटा निकालने के लिए भूकंपीय स्टेशन ऑनलाइन जोड़ा गया और निरंतर निगरानी की गई।
रिपोर्ट के मुताबिक 13 जनवरी से 12 अप्रैल के दौरान, भूकंपीय नेटवर्क ने जोशीमठ से 50 किमी की दूरी के भीतर अधिकतम 1.5तीव्रता के 16 सूक्ष्म भूकंप रिकॉर्ड किए, जो हाइपोसेंटेस 10 किमी की गहराई के ऊपरी क्रस्ट के भीतर थे। भूकंप का केंद्र मुख्य रूप से जोशीमठ के दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम में था, जहां वक्रिता थ्रस्ट (वीटी) और मुन्सियरी थ्रस्ट (एमटी) टेक्टॉनिक फाल्ट मौजूद हैं। वर्तमान में आए इन भूकंप और अतीत की भूकंपीय गतिविधियों में दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम में बढ़ती भूकंपीयता की समान प्रवृत्ति दिखी, जो मुख्य रूप से चमोली भूकंप के केंद्र के आसपास केंद्रित है। अत: इस क्षेत्र में अत्यंत छोटे सूक्ष्म भूकंप की यह भूकंपीय गतिविधि सामान्य है।
हालांकि, जोशीमठ के आसपास 100 किमी की दूरी के भीतर कुछ हल्के और उच्च तीव्रता वाले भूकंप दर्ज किए गए, जो हिमालय के आसपास के इलाकों की तुलना में थोड़े अधिक पैमाने पर हैं। सबसे अधिक तीव्रता वाला भूकंप 5.4 तीव्रता का है जो 24 जनवरी 2023 को नेपाल के पश्चिमी भाग में जोशीमठ से 100 किमी की दूरी पर दक्षिण-पूर्व में आया था। रिपोर्ट के मुताबिक टीम ने अध्ययन के दौरान जोशीमठ में ढलान पर सड़कों और घरों की दीवारों पर आई कुछ हालिया दरारों को देखने के बाद पाया कि अधिकांश दरारों की ज्यामिति (जियोमेट्री) समान है। यानी, नीचे की ओर संकीर्ण ज्यामिति, जिसका अर्थ है कि दरारें ऊपर से नीचे तक फैली हुई हैं या अभी भी फैल रही हैं।दरारों के ऊपरी हिस्से का निचले हिस्से की तुलना में चौड़ा होना दर्शाता है कि दबाव की वजह से ये दरारें बनी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अध्ययन में यह पाया गया कि जोशीमठ शहर एक ढलान पर स्थित है जिस पर अब तक कोई भी यथास्थान चट्टान नहीं देखी गई है। बल्कि ढलान में अलग-अलग आकारऔर मिट्टी की सामग्री के ढीले बोल्डर हैं। बोल्डर गार्नेट और गनीस से बने होते हैं।वाडिया की टीम ने जोशीमठ के सात अलग-अलग जगहों पर इलेक्ट्रॉड के माध्यम से आंकड़े इकट्ठे किए। इनमें परसारी, मनोहर बाग में दो जगह, सिंहधर, जेपी कॉलोनी, सुनील गांव और मारवाड़ी (जेपी कॉलोनी के नीचे) शामिल हैं।
टीम ने पाया कि परसारी में 15 मीटर की गहराई पर एक सुसंगत आधारशिला परत मौजूद है। यहां पानी के रिसाव का कोई नामोनिशान नहीं मिला। सुनील में भी जमीन के नीचे बोल्डर की उपस्थिति देखी गई। यहां भी कोई रिसाव क्षेत्र नहीं मिला। मनोहर बाग की पहली साइट मेंऔली रोड से टॉवर 1 के पास उत्तर-पश्चिम की ओर ढलान के साथ 5 मीटर से 35 मीटर की गहराई पर भारी मात्रा में पानी का क्षेत्र देखा गया।
मनोहर बाग की दूसरी साइट में औली रोड के समानांतर 5 से 10 मीटर की गहराई पर पानी का रिसाव देखा गया। सिंहधार में पानी के रिसाव के अलग-अलग टुकड़े मौजूद थे, जबकि खंड के मध्य में 25 मीटर की गहराई तक एक बड़ा पत्थर मौजूद था। जेपी कॉलोनी में, 10 मीटर की गहराई तक पानी का रिसाव स्पष्ट रूप से देखा गया। जबकि वहां बोल्डर भी था।मारवाड़ी में पानी का रिसाव अलग- अलग हिस्सों में देखा गया, लेकिन 4-5 मीटर की बहुत उथली गहराई तक ही था। इन तथ्यों के आधार पर रिपोर्ट में कहा गया है यह कहा जा सकता है कि रिसाव वाला पानी प्राकृतिक है और मानवजनित गतिविधियों से प्रभावित नहीं है। यहां यह उल्लेखनीय है कि स्थानीय निवासियों का आरोप था कि जगह-जगह से निकल रहा पानी तपोवन-विष्णुगाड़ जल संयंत्र का है, जो पिछले साल आई बाढ़ के कारण सुरंग में घुस गया था।
वाडिया के वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में सलाह दी है कि चूंकि जोशीमठ एक तीव्र ढलान पर स्थित है, जहां काफी सघन कंक्रीट का निर्माण हुआ है, साथ ही कुछ हिस्सों में घने जंगल हैं, इसलिए क्षेत्र के मानचित्रण के लिए ऊंचाई मॉडल की एयरबोर्न लाइडर LiDAR तकनीक सबसे उपयुक्त और व्यवहार्य विकल्प प्रतीत होती है।रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि चूंकि उत्तराखंड एक पर्वतीय राज्य है और अक्सर पर्वतीय आपदाओं का सामना करना पड़ता है, इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि राज्य के लिए लाइडर स्थलाकृतिक मानचित्रण किया जाए। ताकि योजनाकारों और निर्णय निर्माताओं के लिए प्रबंधन और शमन की योजना बनाते वक्तजमीनी स्थलाकृति और सतह मॉडल उपलब्ध हों।
भूधंसाव भूजल की एक आम भूयांत्रिक और बहू-तकनीकी परिणामों में से एक है। यह धंसाव कुछ सेंटीमीटर से लेकर कुछ मीटर तक हो सकता है। इस प्रकरण में यह 14.5 मीटर तक पाया गया है। ऐसी संभावना व्यक्त की गई है कि जमीन के भीतर किसी अवरोध के कारण कहीं पर पानी का अस्थाई भंडार तैयार हो गया। जो किसी दबाव के कारण फट गया और कमजोर सतह वाले भाग से बाहर झरने के रूप में फुट पड़ा।
मोटे तौर पर अनुमान लगाया जा सकता है कि यह भंडारण 10.66 मिलियन लीटर का होगा और इसे जमा होने में 12 से 15 माह का समय लगा होगा।पूर्व के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2022 में 24 घंटे के भीतर जोशीमठ क्षेत्र में 190 मिलीमीटर की वर्षा रिकार्ड की गई थी। यह भी भंडारण का एक कारण हो सकता है।वैज्ञानियों के मुताबिक भूधंसाव भूजल की एक आम भूयांत्रिक और बहू- तकनीकी परिणामों में से एक है। यह धंसाव कुछ सेंटीमीटर से लेकर कुछ मीटर तक हो सकता है। इस प्रकरण में यह 14.5 मीटर तक पाया गया है। क्योंकि, जोशीमठ के भूगोल के साथ अपनी एक खामी पहले से विद्यमान है। क्योंकि, पूरा क्षेत्र पहाड़ी ढलान के बीच एक पुरातन भूस्खलन के भंडार पर बसा है।क्योंकि जोशीमठ के भूगोल के साथ अपनी एक खामी पहले से विद्यमान है। क्योंकि पूरा क्षेत्र पहाड़ी ढलान के बीच एक पुरातन भूस्खलन के भंडार पर बसा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड ही नहीं, हिमालय के अन्य स्थानों पर भी सर्वे ऑफ इंडिया की निगरानी और डेटा को नियमित रूप से अपग्रेड किया जाना चाहिए।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )