महत्वपूर्ण रेल लाइन का निर्माण अधर में लटका , अंग्रेजों ने दिखाया था सपना
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
भारत से अंग्रेजों के जाने के साथ ही कुछ चीजें अधूरी छूट गई थीं जो आजादी के 71 साल बाद भी पूरी नहीं हो सकी हैं। पहाड़ में रेल चलाने का जो काम अंग्रेज कर गए थे, स्वतंत्र भारत की सरकारें उसे बहुत आगे नहीं बढ़ा पाई हैं। परिणाम यह कि आज भी लोग विकास केलिए यातायात के सुगम और सस्ते साधन की आस करते करते पहाड़ छोड़ कहीं सुविधाजनक जगह जाने को विवश हैं। पहाड़ का कठिन भूगोल लंबी सड़क यात्राओं को बेहद तकलीफदेह बना देता है। नतीजतन सड़कें बन जाने के बावजूद ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में विकास की गाड़ी एक स्तर से आगे नहीं बढ़ पाई है। अंग्रेजी राज में उत्तराखंड के जो हिस्से आवागमन केलिहाज से बेहतर स्थिति में थे, वहाँ विकास की किरणें पहले पहुँचीं, मगर दुर्गम इलाकों के बाशिंदे पीछे रह गए।
वर्तमान में उत्तराखंड के कुमाऊं मण्डल के काठगोदाम, रामनगर और टनकपुर और गढ़वाल मण्डल के कोटद्वार और ऋषिकेश तक ही रेलमार्ग पहुंचे हैं। यह सभी स्टेशन मैदानी इलाकों के अन्तिम छोर पर हैं, अर्थात पहाड़ों में एक किलोमीटर का भी रेलमार्ग नही है।आश्चर्यजनक बात यह है कि इन स्थानों तक भी रेलमार्गों का निर्माण आज से लगभग 70-80 साल पहले ब्रिटिश शासन काल में ही हो चुका था। स्वतन्त्र भारत में उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में रेल पहुंचाने की कोशिश के अन्तर्गत एक मीटर भी रेल लाइन नहीं बिछ पाई। टनकपुर बागेश्वर रेललाइन का सर्वे सन् 1912 में ही हो चुका था। पुन: सन् 2006 में इस मार्ग का सर्वे करवाया गया है। वर्ष 1960-70के दशक में पद्मश्री देवकी नंदन पांडे ने पहाड़ों में रेलमार्ग बनाये जाने की मांग पहली बार उठाई थी, उसके बाद अब कई संघर्षसमितियां इस मुद्दे पर सड़क से लेकर संसद तक, हर मंच पर पहाड़ की इस मांग को उठा चुकी हैं, लेकिन कोरे आश्वासनों के सिवा कुछ हाथ में नहीं आया है।
बागेश्वर-टनकपुर रेलमार्ग संघर्ष समिति के सदस्य जन्तर- मन्तर में आमरण अनशन कर चुके हैं। देश के पहाड़ी इलाकों में रेलगाड़ी ले जाने का विचार कोई नया नहीं है। शिमला और दार्जिलिंग में रेल अंग्रेजी शासन में ही आ चुकी थी। हालांकि यह पर्यटन के लिहाज से बनी खिलौना गाड़ी भर हैं। बावजूद इन शुरुआती कोशिशों के, पहाड़ में रेलगाड़ी ले जाने के विचार को खास प्रोत्साहन नहीं मिला। रेलगाड़ी को मैदानों की चीज समझा जाता रहा और इसे दुर्गम पहाड़ों तक लाने की बात को खास तवज्जो नहीं दी गई। टेक्नोलॉजी की अनुपलब्धता भी इसे लगभग असंभव कार्य बना देती थी। लोग सोचते थे यहाँ मोटर गाड़ी ठीक से पहुँच जाए, वहीगनीमत है।लेकिन तकनीकी छलांग का कमाल देखिए, देखते ही देखते देश-दुनिया के कई पहाड़ी इलाकों में रेलगाड़ी की सीटियाँ गूँजने लगीं।
चीन ने तो हिमालय जितनी ऊँची कुनलुन पर्वतमाला को लांघकर तिब्बत की राजधानी ल्हासा तक रेल पहुँचा दी। वह भी रिकार्ड समय में। और अब चीनी रेल भारत की पूर्वोत्तर सीमा और नेपाल की राजधानी काठमांडू में दस्तक देने की तैयारी कर रही है। कहना न होगा रेल ने तिब्बत का कायापलट कर दिया है और वैश्विक मंदी के मौजूदा दौर में भी इस क्षेत्र की विकास दर दो अंकों में बनी हुई है। अपने देश में भी कई पहाड़ी इलाके बीते कुछ वर्षों के दौरान रेल की छुक-छुक से गुलजार हुए। महाराष्ट्र कोंकण रेलवे का बड़ा हिस्सा पहाड़ी इलाकों से गुजरता है। और अब तो हिमालय के ही एक पहलू कश्मीर घाटी में रेलगाड़ी दौड़ने लगी है। जल्द ही देश की राजधानी दिल्ली से धरती के स्वर्ग तक सीधे रेलगाड़ी से सफर संभव होगा !आज की तकनीकी उपलब्धियों को देखते हुए अब पहाड़ी मार्गों पर रेल बिछाना बहुत मुश्किल काम नहीं रहा।
दिल्ली में घनी बस्तियों के बीच जिस तरह पिलर खड़ेकर मेट्रो रेल बिछाई गई है, ठीक इसी तरह उत्तराखंड में नदियों के किनारे पिलरों पर रेल लाइन बिछाई जा सकती है। न सड़क खोदने का झंझट और न पहाड़ खिसकने का खतरा। जहाँ कहीं नदियों में तीखे मोड़ हों वहां छोटी-छोटी सुरंगें बनाई जा सकती हैं। कोंकण रेलवे के लिए देश के इंजीनियर यह काम पहले ही कर चुके हैं। रेलमार्ग बनने पर पहाड़ी जिलों में उद्योग धंधों व पर्यटन के विकास से भारी संख्या में रोजगार के साधन पैदा होने की आशा की जाती रही है। एक तरफ़ जब भारत के मुख्य शहरों में लोग मेट्रो रेल में सफर कर रहे हैं और रेलमन्त्री देश में बुलेट ट्रैन चलाने की बात कह रहे हैं वहीं उत्तराखंड के लोगों के लिये रेल से अपने क्षेत्रों में पहुंचना एक सपना ही रह गया है। एक ऐसा सपना जो लगभग 100 साल पहले अंग्रेजों ने पहाड़ को दिखाया था।
एक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इन मार्गों के निर्माण की योजनाएं भी ब्रिटिश शासन काल में ही बन चुकी थीं और बाकायदा सर्वे भी पूरे कर लिये गये थे। प्रस्तावित टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाईन के मार्ग में धौलीगंगा, टनकपुर और पंचेश्वर जैसी वृहद विद्युत परियोजनायें चल रही हैं। इसके अतिरिक्त इस मार्ग में पड़ने वाले अत्यन्त दुर्गम और पिछड़े इलाके जैसे-बागेश्वर के कत्यूर, दानपुर, कमस्यार, खरही अल्मोड़ा के रीठागाड़ और चौगर्खा, पिथौरागढ़ के घाट, गणाई और गंगोल और चम्पावत के गुमदेश और पंचेश्वर इलाके की लगभग 10 लाख जनता इस सुगम परिवहन से जुड़ सकेगी। लोकसभा चुनाव के पहले कौसानी प्रवास के दौरान तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने ऋषिकेश-कर्णप्रयाग और टनकपुर-बागेश्वर मार्ग का नया सर्वे कराने की बात कहकर पहाड़ के लोगों के मन में कुछ आशा जगाई थी।
कुमाऊं विश्वविद्यालय ने टनकपुर से बागेश्वर तक तीन माह के अथक परिश्रम के बाद भूगर्भीय सर्वेक्षण करते हुए एक रिपोर्ट रेल मंत्रालय को भेजी थी। इस सर्वे में कंप्यूटर, उपग्रह चित्र और भौतिक सर्वेक्षणों को आधार बनाया गया था, लेकिन यूपीए सरकार के अंतिम रेल बजट में प्रधानमन्त्री के आश्वासनों के बावजूद इन योजनाओं के लिये कोई बजट आवंटित नही किया गया, इन योजनाओं का उनके भाषण में कुछ उल्लेख भी नहीं था, इससे उत्तराखंड की जनता को भारी निराशा हुई। टनकपुर-बागेश्वर ब्रॉड गेज रेल लाइन का सर्वे निर्धारित समय पर पूरा नहीं हो पाया है। सर्वे के लिए अब नई तारीख मिली है। आरटीआई से मांगी गई जानकारी में सर्वे पर अब तक खर्च हुई रकम की जानकारी तो दी गई है, लेकिन कितना सर्वे हुआ है, इसका खुलासा नहीं किया गया है।
मुख्यमंत्री के विजन के अनुरूप मानसखण्ड मंदिर माला मिशन के तहत आने वाले मंदिरों से़ अन्य राज्यों के श्रद्धालुओं और पर्यटकों को जोड़ने के लिए 15अप्रैल से एक रेल सेवा मानसखण्ड एक्सप्रेस प्रारम्भ किये जाने पर कार्य चल रहा है। यह रेल सेवा कोलकाता से टनकपुर तक संचालित की जाएगी। श्रद्धालुओं और पर्यटकों की सुविधा के लिए टनकपुर से पूर्णागिरी, हाटकालिका, पाताल भुवनेश्वर, जागेश्वरधाम, गोल्ज्यू देवता मंदिर, नन्दा देवी, कैंची धाम आदि मानसखण्ड मंदिर माला के अन्य मंदिरों तक स्थानीय बस व अन्य परिवहन सेवाओं को संचालित किया जाएगा। केएमवीएन के अतिथि गृह, होम स्टे, स्थानीय होटल आदि तथा हुनर योजना के तहत प्रशिक्षित स्थानीय गाइड्स पर्यटकों के आतिथ्य में सहयोग करेंगे। पर्यटकों की वापसी के लिए काठगोदाम से कलकता के लिए रेल सेवा उपलब्ध रहेगी।
सचिवालय में मानसखण्ड मंदिर माला मिशन के कार्यों की समीक्षा के दौरान सीएस ने लोक निर्माण विभाग को मानसखण्ड मंदिर माला मिशन के तहत मंदिरों को जोड़ने वाली अप्रोच रोड्स के चौड़ीकरण कार्य को जल्द से जल्द पूरा करने के निर्देश दिए हैं। एक बार फिर चुनाव से ठीक पहले टनकपुर से बागेश्वर वाली रेल लाइन को लेकर आवाज़ उठने लगी है। इस संबंध में टनकपुर-बागेश्वर रेल मार्ग संघर्ष समिति से जुड़े लोगों का तो यहां तक कहना है कि चुनाव से पहले हर पार्टी द्वारा इसे चुनावी मुद्दा बनाकर वोट बटोरने की कोशिश की जाती है, लेकिन सत्ता हासिल होते ही सभी दल सबकुछ भूल जाते है।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)