विकास और आस्था के बीच टकराव की स्थिति !
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
नैसर्गिक सौंदर्य से लबरेज देवभूमि वो धरा हैं, जहां में शिवत्व का अहसास होता है। ऐसा ही एक धाम जागेश्वर है। माना जाता है कि ये पहला शिव मंदिर है, जहां से लिंग के रूप में देवों के देव महादेव की सबसे पहले पूजा की परंपरा शुरू हुई थी। यहां पर 124 छोटे बड़े मंदिरों का समूह भी मौजूद है। इसके अलावा जागेश्वर मंदिर समूह अपनी वास्तुकला के लिए भी काफी विख्यात है। मंदिर के पुजारियों के अनुसार यहां छोटे- बड़े 125 मंदिर हैं, जिनमें से 17 अन्य देवी देवताओं के तो 108 भगवान शिव के अलग- अलग नामों के मंदिर मौजूद हैं। इस स्थल के मुख्य मंदिरों में योगेश्वर मंदिर, चंडी का मंदिर, कुबेर मंदिर, मृत्युंजय मंदिर ,नव दुर्गा मंदिर नवाग्रह मंदिर , पिरामिड मंदिर, पुष्टि देवी मंदिर, लकुलीश मंदिर, बालेश्वर मंदिर, केदारेश्वर मंदिर शामिल हैं।
कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं, जिसका भारी दुरुपयोग होने लगा।आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य यहां आए और उन्होंने इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। अब यहां सिर्फ यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं। मंदिर के पुजारियों का कहना है कि पुराणों अनुसार यहां पर भगवान शिव ने हजारों साल तपस्या की। बाद में सप्त ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वह यहां शिवलिंग के रूप में दर्शन दें। जिसके बाद भगवान शिव ने सबसे पहले शिवलिंग के रूप में यहां प्रकट हुए। इस मंदिर की महिमा और मान्यताओं से रूबरू कराएगा। इसी धाम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूजा अर्चना करने पहुंच र हैं। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाने वाला देवदार का पेड़ अपने आप में कई खूबियों को समेटे हुए है।
इसकी धार्मिक, व्यापारिक और औषधीय रूप में काफी मान्यता है। यह पेड़ों के वर्गीकरण में तो महत्वपूर्ण है ही, इसके अलावा यह मानवीय जीवन को भी सुशोभित करता है। इसे सिड्रस देवदार के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा इसे “वुड ऑफ गॉड” यानि “भगवान की लकड़ी” के नाम से भी जाना जाता है। देवदार के पेड़ों की लंबाई 40 से 50 मीटर तक होती है। इनका जीवनकाल 200 साल तक का होता है। यह लार्ज एवरग्रीन कोनिफर ट्री के नाम से भी जाना जाता है। इसकी पत्तियां सुई की तरह नुकीली होती हैं। इसके तने, पत्तियों और बाकी लकड़ी में तमाम तरह के केमिकल पाए जाते हैं, जिनमें टैक्सीफोलिन सिडरिन डिओडेरिन टैक्सीफिनौल लेलोनॉल एंथोल शामिल हैं।
देवदार को विश्व कीसबसे मोटी लकड़ी के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा यह जलवायु को नियंत्रित करने का काम भी करती है। राम राज्य की बात करने वाले आस्था के इतने बड़े पवित्र धाम का इस तरह दोहन किसी भी हद तक बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। जो पेड़ काटे जा रहे हैं वह प्राण वायु के साथ-साथ लोगों की आस्था से भी जुड़ा हुआ है। दारुक वनों को शिव का निवास माना जाता है और उनकी पूजा भी की जाती है। जिन्होंने एक पौधा भी न लगाया हो उन्हैं पेड़ होने का मतलब क्या समझ में आएगा। इन लोगों के लिए पेड़ काटना और लगाना दोनों पैसा कमाने का जरिया है। आज के समय में जब विरोध की संस्कृति मृतप्राय हो गई है, तो क्या बच पाएंगे ये पेड़? यह एक बहुत बड़ा सवाल है पूरे पहाड़ की अस्मिता के लिए है।
तथाकथित विकास के नाम पर विनाश की अवधारणा मानवता के लिए और उत्तराखंड वासियों के लिए बहुत बड़ा संकट बनने जा रहा है। बारिश, आंधी, तूफान, बिजलियां न हिला पाई मेरी जड़ों को, पर मालूम न था यह अंजाम होगा मेरे सफर का उत्तराखंड के “जागेश्वर” में एक हजार पेड़ों के मौत के फरमान पर एक शायर की ये लाइनें सटीक बैठती हैं।”जागेश्वर” में उत्तराखंड सरकार ने देवदार के 1000 पेड़ों को काटने का फरमान जारी किया है। पेड़ों के सीने पर खंजर से मौत का नंबर भी डाल दिया है। पौराणिक पेड़ों की छाती पर मौत का बिल्ला देख स्थानीय लोग और जागेश्वर धाम मंदिर के पुजारी बेहद नाराज और दुखी हैं। सोशल एक्टिविस्ट भी विकास के नाम पर जागेश्वर धाम देवदार के जंगल के बीच स्थित है। इसे दारूक वन के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार यही दारुक वन भगवान शिव का निवास स्थान है। जागेश्वर धाम के विकास के लिए मास्टर प्लान को धरातल पर उतारा जा रहा है। मास्टर प्लान के तहत आरतोला से जागेश्वर तक तीन किमी सड़क का चौड़ीकरण होना है। सरकार की तरफ से एक तरफ जंगल बचाओ अभियान चल रहा है। वहीं जागेश्वर धाम में पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण देवदार के पेड़ों को काटने की तैयारी हो रही है। लोगों का कहना है कि जागेश्वर धाम तक सड़क जरूरी है, इसके लिए सड़क का एलाइनमेंट बदला जा सकता है ताकि पेड़ को कटने से बच सकें। उत्तराखंड के हिमालयी वृक्ष देवदार का पेड़ सिर्फ एक वृक्ष नहीं, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक और पारिस्थितिकी पहचान का अभिन्न अंग है। इसकी ऊंचाई, सुगंधित सुगंध और मजबूत लकड़ी ने इसे सदियों से श्रद्धा और महत्व दिलाया है। उत्तराखंड की पारिस्थितिकी तंत्र की रीढ़ समझा जाने वाला देवदार का संबंध भगवान शिव से है। इसकी सदाबहार प्रकृति अमरता और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
“देवदार” शब्द का शाब्दिक अर्थ ही “देवताओं की लकड़ी” है, जो इस विश्वास को दर्शाता है कि ये वन कभी देवताओं का निवास स्थान थे। देवदार की लकड़ी को पवित्र मानकर विभिन्न धार्मिक कार्यों में भी उपयोग किया जाता है। ग्रामीणों ने सरकार को चेताते हुए कहा कि अगर पेड़ काट कर उनकी आस्था के साथ खिलवाड़ हैं,! अब मुख्यमंत्री ने जागेश्वर धाम में मास्टर प्लान के अंतर्गत सड़क चौड़ीकरण कार्य में पेड़ों के संभावित कटान को लेकर एक बार फिर से सर्वे करने के निर्देश दे दिए हैं। मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि हम इकोलॉजी और इकोनॉमी के बेहतर समन्वय के साथ प्रदेश को विकास के पथ अग्रसर करने हेतु प्रतिबद्ध हैं।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)