जानिए ऋषिकेश-बद्रीनाथ मार्ग पर इस खड़ी चट्टान वाली पहाड़ी का नाम क्यों पड़ा ‘तोताघाटी (Totaghati) ‘!
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
किसी ने क्या खूब कहा है, कोई मांझी यूं ही नहीं बनता, परिस्थितियां बनाती हैं। बिहार के दशरथ मांझी को तो आपने देखा-सुना होगा। और नहीं तो फिल्मों में जरूर।आलवैदर रोड़ बनने के बाद ऋषिकेश से आगे फर्राटे भरते हुए जब आप लोग देवप्रयाग और व्यासी के बीच जाते हैं तब इस राजमार्ग पर जगह आती है तोता घाटी। इस जगह आज भी गाड़ी को संभलकर चलाना पड़ता है।
जानते हैं इस जगह का नाम तोता घाटी क्यों पड़ा? आज से 94 वर्ष पूर्व ठेकेदार तोता सिंह रागड़ ने कठोर चट्टान वाली इस घाटी में 1931 में बदरीनाथ केदारनाथ मार्ग निर्माण कार्य आरम्भ और 1935 में यहां सड़क बन कर पूरी हो सकी। तोता सिंह रांगड़ प्रताप नगर के रहने वाले थे, 94 वर्ष पूर्व यहां अति कठोर चट्टान थी इन कठोर चट्टानों को काटकर सड़क बनाई गई। तब यह कार्य हाथ के उपकरणों से चट्टान तोड़ कर किया गया। आज जब ऑल वेदर रोड बनी तो राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के ठेकेदारों के जो सबसे अधिक तोते उड़े वो इसी जगह पर काल कलवित हुए। कई मशीनें क्षति ग्रस्त हुई और मार्ग चौड़ीकरण में महीनों लग गए। आज इतनी भारी भरकम मशीनें जिस कार्य को कठिनता से कर सकी तो सोचिए जब तोता सिंह नाम के व्यक्ति ने सब्बल गैंती फावड़े कुदाल से सड़क का निर्माण किया होगा तब कितनी कठिनाईयों का सामना किया होगा! क्योंकि तब तो हमारे पास आधुनिक मशीनें नहीं थी लेकिन तब यह तोता सिंह की दृढ इच्छा शक्ति आत्म बल और समर्पण ही था कि उन्होंने सड़क बनाकर दिखाई। टिहरी के राजा नरेंद्र शाह चाहते थे की यहां से सड़क बनाई जाय लेकिन तोता घाटी पर सड़क बनाने के लिए सारे ठेकेदारों ने हाथ खड़े कर दिए थे ऐसे में तोता सिंह रांगड़ ने साहस का परिचय देते हुए सड़क बनाने को हां कर दी। जब सड़क बन कर तैयार हुई तब टिहरी के राजा नरेंद्र शाह ने इस घाटी का नाम तोता घाटी रखने का आदेश जारी किया था इसलिए यह घाटी तोता घाटीके नाम से जानी जाती है।
उत्तराखंड सहित समग्र भारत के लोगों को यह बात अवश्य जाननी चाहिए कि कैसा दृढ़ इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति रहा होगा जिसने सबसे पहले यहां सड़क बनाई होगी क्योंकि बद्रीनाथ और केदार की यात्रा यहीं से होती है। बताया जाता है कि तोता सिंह रांगड़ ने न केवल अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी थी अपितु अपनी धर्म पत्नी के जेवर और सोना बेच कर सब इस सड़क पर लगा दिया था। आज ठेकेदार या अधिकारी यहां तक कि नेता भी काम से पहले अपने लाभ के विषय में विचार करते हैं, लेकिन तोता सिंह रांगड की बात इनसे हटकर है जिन्होंने अपना नहीं सबका हित देखा और केदारनाथ और बद्रीनाथ जाने वाली इस घाटी में मोटर सड़क बना डाली। चट्टान से अधिक सुदृढ़ साहसी तोता सिंह ने अडिग रह कर तनमनधन से असंभव को संभव बना दिया। वहीं पराक्रमी गढ़वाल नरेश जिसनें लोक कल्याण के लिए राजकोष से धन लगाया।
झारखंड के दशरथ माझी ने अपनी पत्नी जिसे नित्य चाड़ा पाहन जाकर पानी लाना पड़ता था उन्होंने चट्टान काट कर समलत मार्ग बनाया और वहां छ माह में कुआं तैयार किया। उन पर फिल्म भी बनी उन्हें दुनियाभर के लोग जानते हैं। लेकिन जिन तोता सिंह रांगड़ ने दशरथ मांझी से बहुत बड़ा कार्य किया पांच वर्ष रात दिन एक कर तोता घाटी की कठोर चट्टान काट कर श्रध्दालुओं के लिए बदरीनाथ केदारनाथ मोटर मार्ग सुलभ किया उन्हें कितने लोग जानते हैं इस पर राजा नरेंद्र शाह ने उनके दादा को न सिर्फ जमीन दान दी, बल्कि घाटी का नामकरण भी उनके नाम पर कर दिया। राजा ने उनके दादा को लाट साहब की उपाधि दी थी। तोता सिंह के स्वजनों का कहना है कि तोताघाटी में तोता सिंह की प्रतिमा लगाई जानी चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी को सड़क निर्माण में उनके योगदान के बारे में पता चल सके। 1 वीं सदी में आधुनिक मशीनों की भी ठीक उसी तरह से परीक्षा ली, जैसे 40 के दशक में ठेकेदार तोता सिंह की परीक्षा ली थी। जब ऋषिकेश से देवप्रयाग मार्ग का निर्माण शुरू हुआ तो इस जगह पर हार्ड रॉक होने के कारण किसी भी ठेकेदार ने उस रेट पर टेंडर लेने से इनकार कर दिया।क्योंकि यहां पर सड़क बनाना आसान नहीं था। तब तोता सिंह नामक ठेकेदार उसी रेट पर इस शर्त पर सड़क बनाने को तैयार हुए कि इस जगह का नामकरण उनके नाम पर किया जाए। शासन-प्रशासन और विभाग को तोता उपाधि विकसित करने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए।