जानिए दूरदर्शन के 64 साल का सफर

जानिए दूरदर्शन के 64 साल का सफर

लोक संस्कृति

आज 15 सितंबर है। 64 साल पहले इसी तारीख को देश में दूरदर्शन की नींव रखी गई थी। आज भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में मोबाइल से लेकर टेलीविजन की दुनिया में तमाम मनोरंजन के साधन उपलब्ध है। लेकिन दूरदर्शन का नाम सुनते ही अतीत की कई गुदगुदाती बातें याद आ जाती हैं। भले ही टीवी चैनल्स पर कार्यक्रमों की बाढ़ आ गई हो, लेकिन दूरदर्शन की पहुंच को टक्कर दे पाना अभी भी किसी के बस की बात नहीं है।

पहले इसका नाम ‘टेलीविजन इंडिया’ दिया गया था, बाद में 1975 में इसका हिन्दी नामकरण ‘दूरदर्शन’ नाम से किया गया। जैसे भारत में दूरदर्शन दिवस हर साल 15 सितंबर को मनाया जाता है ऐसे ही विश्व टेलीविजन दिवस भी मनाया जाता है। ‌

हर साल 21 नवंबर को विश्व टेलीविजन दिवस (World Television Day) सेलिब्रेट किया जाता है। एक दौर ऐसा भी था जब देश भर में दूरदर्शन सबसे बड़ा मनोरंजन का साधन था।

दूरदर्शन पर आने वाले सभी कार्यक्रमों को घरों में लोग एक साथ बैठकर देखते थे। टीवी चैनल के नाम पर इकलौता यही विकल्प लोगों के सामने होता था। इस पर आने वाले सीरियल्स को देखने के लिए लोगों में गजब का उत्साह दिखता था। लोग बेसब्री से अगले एपिसोड का इंतजार करते थे। लोगों के लिए मनोरंजन की पहली खुराक साबित होने वाला दूरदर्शन 1959 को आज ही के दिन यानी 15 सितंबर से शुरू हुआ था। टेलीविजन भारत में तब आया, जब तत्कलीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने नई दिल्ली में ऑल इंडिया रेडियो द्वारा स्थापित भारत के पहले टीवी स्टेशन 15 सितंबर 1959 को का उद्घाटन किया।

सरकार ने लॉन्च के लिए दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर दो दर्जन टीवी सेट लगाए थे। सभी जगहों पर भारी भीड़ देखी गई थी।
भारतीय टेलीविजन के रूप में शुरू हुआ दूरदर्शन पहले आकाशवाणी का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन बाद में उससे अलग हो गया। शुरुआत में यूनेस्को की मदद से दूरदर्शन पर हफ्ते में दो दिन केवल एक-एक घंटे के कार्यक्रम प्रसारित हुआ करते थे। जिनका प्रमुख उद्देश्य लोगों को जागरूक करना था।

दरअसल सरकारी प्रसारक के तौर पर दूरदर्शन की स्थापना हुई थी। लोगों के लिए एक छोटा सा डिब्बा कौतुहल का विषय बन गया। जिस पर चलती बोलती तस्वीरें दिखाई देतीं और जो बिजली से चलता था। ये वो दौर है, जब सबके घरों में टेलीविजन नहीं होता था, बल्कि किसी-किसी के घर में ही होता था। और जिसके घर में होता था, वहां दूर-दूर से लोग उसे देखने के लिए आते थे। छत पर लगने वाला टेलीविजन का एंटीना मानो प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया। इस सरकारी प्रसारण सेवा के महत्वपूर्ण अंग देश की कला और संस्कृति से जुड़े वो कार्यक्रम थे, जो लोगों का दिल जीत लेते थे।

देश में साल 1982 में ब्लैक एंड व्हाइट से दूरदर्शन का स्वरूप रंगीन हो गया

वहीं दूरदर्शन पर नियमित तौर पर दैनिक प्रसारण की शुरुआत 1965 में ऑल इंडिया रेडियो के हिस्से के रूप में हुई। इसके बाद टेलीविजन पर समाचार आने लगे। ये सेवा साल 1982 में मुंबई और अमृतसर तक विस्तारित की गई थी। जो आज के वक्त में दूर दराज के गांवों तक पहुंच गई है। वहीं राष्ट्रीय प्रसारण की बात करें, तो इसकी शुरुआत 1982 में हुई थी। इसी साल दूरदर्शन का स्वरूप रंगीन हो गया। पहले यह ब्लैक एंड व्हाइट हुआ करता था। 80 के दशक में दूरदर्शन लगभग हर घर की रौनक बन गया। इस पर प्रसारित होने वाला पहला सीरियल ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’, ‘नुक्‍कड़’, था। इसके बाद ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे पौराणिक सीरियल आए, जिन्हें खूब लोकप्रियता मिली। जब भी इनका प्रसारण होता था, तो सड़कें वीरान हो जाया करती थीं। वहीं चित्रहार और रंगोली पर फिल्मी गाने प्रसारित हुआ करते थे। अगर विज्ञापनों की बात करें तो ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ जहां लोगों को एकता का संदेश देने में कामयाब रहा, वहीं बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर-हमारा बजाज से अपनी व्यावसायिक क्षमता का लोहा भी मनवाया। धीरे-धीरे समय के साथ दूरदर्शन ने भी कई रूप बदले और अब जमाना डीटीएच का आ गया है।आज बेशक मनोरंजन के तमाम साधन और दुनियाभर के चैनलों की बाढ़ आ गई हो, लेकिन जब भी भारत में टेलीविजन के इतिहास का जिक्र होगा, तब गर्व के साथ दूरदर्शन केंद्र में खड़ा दिखाई देगा। इतिहास के पन्ने में 15 सितंबर सिर्फ दूरदर्शन की यादें ही नहीं, बल्कि कई और ऐतिहासिक यादें सहेजे हुए है।