जानिए उत्तराखंड के जंगलों (Forests of Uttarakhand) को इस साल कैसे मिली राहत

जानिए उत्तराखंड के जंगलों (Forests of Uttarakhand) को इस साल कैसे मिली राहत

798 हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आए

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

जंगल में आग की घटनाओं के मामले में वन विभाग को इस बार पिछले साल के मुकाबले काफी राहत मिली है। इस बार 15 जून तक 798 हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आया, जबकि 2022 में इस अवधि के बीच 3416 हेक्टेयर जंगल राख हुआ था। हालांकि, तापमान में बढ़ोतरी का दौर अभी थमा नहीं है। इसलिए मानसून आने तक वन विभाग के लिए चुनौतियों का समय जारी रहेगा वनसंपदा के लिहाज से उत्तराखंड को समृद्ध माना जाता है। यही वजह है कि गर्मियों में आग लगने की आशंका बढ़ जाती है। मौसम का मिजाज बदलने के कारण पिछले साल फायर सीजन खत्म होने के बाद भी आग के मामले सामने आए थे। इसलिए वन विभाग ने एक नवंबर से छुटमुट घटनाओं के आंकड़े जुटाने शुरू कर दिए थे।

विभागीय वेबसाइट के अनुसार, नवंबर से 15 जून तक 798 हेक्टेयर जंगल को नुकसान पहुंचा, जबकि पिछले साल 15 फरवरी से 15 जून के बीच में ही राज्य में 3416 हेक्टेयर जंगल राख हुआ था, मगर बेहतर तैयारियों और मई तक मौसम का साथ मिलने से इस बार आग की घटनाएं नियंत्रित दिखीं। 15 जून तक राज्य में आग की 674 घटनाएं सामने आईं। गढ़वाल 242.57 हेक्टेयर जंगल जला। वन्यजीव आरक्षित क्षेत्र में 96.97 हेक्टेयर नुकसान हुआ, जबकि कुमाऊं के जंगलों की स्थिति ज्यादा चिंताजनक रही। यहां 459 हेक्टेयर जंगल जला। पिछले साल सिर्फ अप्रैल में ही 2704 हेक्टेयर जंगल उत्तराखंड में जला था। स्थिति नियंत्रण से बाहर होने पर सरकार ने वायुसेना की मदद ली थी, जिसके बाद आग बुझाने के लिए हेलीकाप्टर तक पहुंचे थे।

इस बार उत्‍तराखंड में जंगलों को मिली राहत, 798 हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आए  वन विभाग उत्तराखंड के जंगलों पर निगरानी रख रहा है। सैटेलाइट के जरिए आगजनी की घटनाओं पर विशेष रूप से मॉनिटरिंग की जा रही है। अगर किसी भी इलाके की जंगल में आग लगने की घटना सामने आती है, तो ड्रोन के जरिए क्षेत्र का जायजा लेकर आग पर काबू पाया जाता है।

उन्होंने बताया कि विभाग पूरी तरह से तकनीकों का इस्तेमाल कर रहा है और विभाग के पास मौजूदा वक्त में करीब 20 ड्रोन हैं, जिनसे उत्तराखंड के लगभग हर वन क्षेत्र की मॉनिटरिंग की मदद ली थी। उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में भले ही बारिश और बर्फबारी हो रही हो लेकिन मैदानी जिले सूरज की तपिश से जलने लगे हैं।

(लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)