पहाड़ी किसानों के लिए वरदान बन सकता है कीवी
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
आज यह केंद्र उत्तराखंड की पहाड़ियों में एक बड़ा बदलाव ला रहा है और ग्रामीणों को आजीविका के अवसर भी प्रदान कर रहा है, जिनमें से कई ने विदेशी कीवी फल की खेती की है। भवन सिंह ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, भोवाली में नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज (एनबीपीजीआर) से प्रयोग के तौर पर पहले कुछ कीवी पौधे प्राप्त किए। पहले साल उन्होंने 50 पौधे रोपे। एक साल बाद, 100 और पौधे जोड़े गए। आज, बाग में लगभग 400 कीवी के पेड़ हैं, जिनमें चार किस्में हैं हावर्ड, एलिसन, ब्रूनो और मोंटी।
कीवी के उत्पादन में भवन सिंह के एकमात्र सफल प्रयास के परिणामस्वरूप फल को उत्तराखंड सरकार के’एक जिला, एक उत्पाद’ कार्यक्रम में शामिल किया गया। 73 साल के भवन सिंह कोरंगा उत्तराखंड में कीवी की खेती करने वाले शुरुआती किसानों में से एक हैं, आज यहां पर बहुत से किसानों ने कीवी की खेती शुरू कर दी है। सेवानिवृत्त स्कूल प्रिंसिपल भवन सिंह कोरंगा बागेश्वर जिले के कपकोट ब्लॉक के शामा गाँव के रहने वाले हैं, उन्होंने 2007 में कीवी उगाना शुरू कर दिया था। लेकिन असली बदलाव एक साल बाद शुरू हुआ। साल 2008 में ग्रामीण विकास विभाग, उत्तराखंड सरकार द्वारा आजीविका परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए प्रचारित एक सोसाइटी ग्राम्या, ने भी नाबार्ड के सहयोग से बागेश्वर के शामा गाँव में एक ग्रोथ सेंटर स्थापित किया। इसमें कीवी आधारित जैम, जेली, अचार और स्क्वैश या जूस बनाने के लिए एक प्रसंस्करण इकाई शामिल थी।
वह जिले में कीवी की खेती में व्यावसायिक रूप से उद्यम करने वाले पहले व्यक्ति थे, और 10 साल से भी कम समय में, उनकी कीवी खेती ने उन्हें एक स्वस्थ लाभ कमाना शुरू कर दिया। जब भवन सिंह ने उत्तराखंड में कीवी की खेती शुरू की, तो पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में यह पहले से ही एक बड़ी बात थी। नौणी स्थित औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में वहां के किसानों को फलों की खेती का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस बीच, उत्तराखंड में वापस, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र,भोवाली में नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज, कीवी का पहले परीक्षण किया गया और फिर इस क्षेत्र में पेश किया गया। कीवी की खेती बागेश्वर में गति पकड़ रही है क्योंकि यह पानी की अधिक खपत वाली फसल ही नहीं है, यह औसत समुद्र तल से1,200 मीटर ऊपर की निचली घाटियों में अच्छी तरह से बढ़ सकती है। यह कीट-प्रतिरोधी फसल है, और आमतौर पर बंदरों से बचा जाता है जो आम तौर पर अन्य फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं।
प्रत्येक कीवी का पेड़ कहीं भी 40 से 100 किलोग्राम फल पैदा करता है, जिससे जूस, जैम, जेली, अचार और कैंडी भी बनाई जाती है। कीवी का एक पौधा 4-5 साल में तैयार जाता है और औसतन 40-100 किलोग्राम फल देता है। एक किलो ए ग्रेड कीवी की कीमत करीब 200रुपये होती है; बी ग्रेड 150 रुपये किलो और सी ग्रेड 60 रुपये किलो मिलता है। भारतीय उपभोक्ताओं के बीच सबसे लोकप्रिय कीवी एलिसन है, जिसमें हार्वर्ड अंतरराष्ट्रीय बाजार में लोकप्रिय है। कीवी का मूल्य निर्धारण फल के आकार, उत्पादन और मांग पर आधारित होता है। कीमत में उतार-चढ़ाव होता है और अंतरराष्ट्रीय बाजार के साथ प्रतिस्पर्धा करता है। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चर के
अनुसार, भारत अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड जैसे राज्यों में 4,000 हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 13,000 मीट्रिक टन कीवी फल का उत्पादन करता है (2019-20 का डेटा)। उत्तराखंड में भी यह रफ्तार पकड़ रहा है। भवन सिंह जैसे किसानों का मानना है कि कीवी की खेती को बढ़ावा देने से किसानों की आय बढ़ेगी, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और राज्य से पलायन को रोकने में मदद मिलेगी।
उत्तराखंड में कीवी ब्रिगेड से कई किसान जुड़ रहे हैं। उदाहरण के लिए, 40 वर्षीय कमला देवी, भवन सिंह के बाग में खेतिहर मजदूर ने खुद कुछ कीवी उगाने का फैसला किया। उन्होंने 2016-07 में 20-22 कीवी के पौधे लगाए और उन्हें उपज मिल रही है। इसी तरह राधा देवी ने भी उसी साल 20-25 पौधे रोपे। जबकि पिछले साल, 40 वर्षीय ने अपने खुद के उपयोग के लिए पर्याप्त उपज उगाई, इस वर्ष, उनकी योजना फल बेचने और कुछ अतिरिक्त आय अर्जित करने की है। शोधकर्ताओं ने कहा कि 400-1100 मीटर की ऊंचाई अनुपयुक्त है,1100-1800 मीटर अत्यधिक उपयुक्त है, हालांकि 1800-2500 मीटर कीवी फल के रोपण के लिए उपयुक्त है। इस बीच, 2018 के एक अध्ययन, जीआईएस का उपयोग करके उत्तराखंड में कीवी फलों के रोपण के लिए साइट उपयुक्तता विश्लेषण में पाया गया है कि कीवी फल उत्तराखंड राज्य के बड़े क्षेत्र में उगाया जा सकता है, उत्तराखंड राज्य का अधिकांश क्षेत्र कीवी को उगाने के लिए अत्यधिक उपयुक्त है।
जिला उधमसिंह नगर, हरिद्वार और देहरादून का कुछ भाग जबकि जिला चमोली, टिहरी गढ़वाल का कुछ भाग और नैनीताल का कुछ भाग कीवी उगाने के लिए उपयुक्त है। कीवी फल (चायनीज गूजबैरी) की उत्पति स्थान चीन है , पिछले कुछ दशकों से ये फल विश्व भर में अत्यन्त लोकप्रिय हो गया है। न्यूजीलैण्ड इस फल के लिए प्रसिद्व है, क्योंकि इस देश ने कीवी फल को व्यवसायिक रूप दिया इसका उत्पादन व निर्यात न्यूजीलैंड में बहुत अधिक है। कीवी फल भारत में 1960 में सर्वप्रथम बंगलौर में लगाया गया था लेकिन बंगलौर की जलवायु में प्रर्याप्त शीतकाल ( चिलिंग ) न मिल पाने के कारण सफलता नहीं मिली। बर्ष 1963 में राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो,NBPGR क्षेत्रीय संस्थान के शिमला स्थित केन्द्र फागली में कीवी की सात प्रजातियों के पौधे आयतित कर लगाये गये जहां पर कीवी के इन पौधों से सफल उत्पादन प्राप्त किया गया।कीवी फल (चायनीज गूजबैरी) की उत्पति स्थान चीन है , पिछले कुछ दशकों से ये फल विश्व भर में अत्यन्त लोकप्रिय हो गया है।
न्यूजीलैण्ड इस फल के लिए प्रसिद्व है, क्योंकि इस देश ने कीवी फल को व्यवसायिक रूप दिया इसका उत्पादन व निर्यात न्यूजीलैंड में बहुत अधिक है।किवी फल भारत में 1960 में सर्वप्रथम बंगलौर में लगाया गया था लेकिन बंगलौर की जलवायु में प्रर्याप्त शीतकाल ( चिलिंग ) न मिल पाने के कारण सफलता नहीं मिली। वर्ष 1963 में राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, क्षेत्रीय संस्थान के शिमला स्थित केन्द्र फागली में कीवी की सात प्रजातियों के पौधे आयतित कर लगाये गये जहां पर कीवी के इन पौधों से सफल उत्पादन प्राप्त किया गयाउत्तराखंड में वर्ष 1984-85 में भारत इटली फल विकास परियोजना के तहत राजकीय उद्यान मगरा टेहरी गढ़वाल में इटली के वैज्ञानिकों की देख रेख में इटली से आयतित कीवी की विभिन्न प्रजातियों के 100 पौधो का रोपण किया गया जिनसे कीवी का अच्छा उत्पादन आज भी प्राप्त हो रहा है। वर्ष 1991-92 मेंं तत्कालीन उद्यान निदेशक द्वारा राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन, फागली शिमला हिमाचल प्रदेश से कीवी की विभिन्न प्रजातियों के पौधे मंगा कर प्रयोग हेतु, राज्य के विभिन्न उद्यान शोध केंद्रौ यथा चौवटिया रानीखेत, चकरौता (देहरादून , गैना/अंचोली (पिथौरागढ़) ,डुंण्डा (उत्तरकाशी)आदि स्थानों में लगाये गये जिनसे उत्साहवर्धक कीवी की उपज प्राप्त हुई।
राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो NBPGR क्षेत्रीय केंद्र, निगलाट ,भवाली नैनीताल में भी1991-92 से कीवी उत्पादन पर शोधकार्य हो रहे हैं।यह केन्द्र सीमित संख्या में कीवी फल पौधों का उत्पादन भी करता है, इस केन्द्र के सहयोग से भवाली के आसपास के क्षेत्रों में कीवी के कुछ बाग भी विकसित हुये है।राज्य में कीवी बागवानी की सफलता को देखते हुए कई उद्यान पतियौ ने बागवानी बोर्ड व उद्यान विभाग की सहायता से कीवी के बाग विकसित किए हैं।उद्यान पंडित कुन्दन सिंह पंवार ने १९९८ में राष्ट्रीय बागवानी वोर्ड देहरादून का पहला कीवी प्रोजेक्ट पाव नैनबाग जनपद टेहरी में लगाया।नैबार्ड के सहयोग से ग्राम्या द्वारा जनपद बागेश्वर के शामा व उसके आस पास के गांवों के कृषक कीवी का अच्छा उत्पादन कर रहे हैं।कीवी फल अत्यन्त स्वादिष्ट एवं पौष्टिक है। इस फल में विटामिन सी काफी अधिक मात्रा में होता है तथा इसके अतिरिक्त इस फल में विटामिन बी, फास्फोरस, पौटिशयम व कैल्शियम तत्व भी अधिक मात्रा में पाये जाते हैं डैगू बुखार होने पर कीवी खाने की कई लोग सलाह देते हैं। कीवी फल से जैम,जैली स्क्वैश व जूस भी बनता है।
किवी एक पर्णपाती ( पतझड़ ) पौधा है तथा इसे लगभग 600-800 द्रूतिशीतन घण्टे ( चिलिंग ) सुषुप्तावस्था को तोड़ने के लिए चाहिए। राज्य में यह मध्यवर्ती क्षेत्रों में 1200 से 2000 मी॰ की उँचाई तक सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। कीवी में फूल अप्रैल माह में आते हैं और उस समय पाले का प्रकोप फल बनने में बाधक होता है। अतः जिन क्षेत्रों में पाले की समस्या है वहां इस फल की बागबानी सफलतापूर्वक नही हो सकती, वे क्षेत्र जिनका तापमान गर्मियों में 35 डिग्री से कम रहता है तथा तेज हवायें चलती हो, लगाने के लिए उपयुक्त हैं। कीवी के लिए सूखे महिनों मई- जून और सितम्बर अक्टूबर में सिंचाई का पूरा प्रबन्ध होना चाहिए। जिस समय किवी फल तैयार होता है, उन दिनो बाजार में ताजे फलों के अभाव के कारण किसान काफी आर्थिक लाभ उठा सकता है। इसे शीतगृहों मे चार महीने तक आसानी से सुरक्षित रखा जा सकता है। फलो को दूर भेजने में भी कोई हानि नही होती, क्योंकि कीवी के फल अधिक टिकाऊ है कमरे के तापमान पर इसे एक माह तक रखा जा सकता है इन्ही कारणों से बाजार में इसको लम्बे समय तक बेच कर अधिक लाभ कमाया जा सकता है। इसके विपणन के लिए गते के3 से 5 किलो के डिब्बे प्रयोग में लाने चाहिए।विदेशी पर्यटकों में यह फल अधिक लोकप्रिय होने के कारण दिल्ली व अन्य बड़े शहरों मे इसे आसानी से अच्छे दामों पर बेचा जा सकता है।
राज्य के आमजन में कीवी फल की स्वीकार्यता अभी नहीं बन पायी है जिस कारण स्थानीय बाजार में यह फल कम ही बिक पाता है वाहर भेजने के लिए इतना उत्पादन नहीं हो पाता कि उत्पादन वाहर भेजा जा सके या वाहर का आढ़ती यहां पर आये।उत्तराखंड में कीवी फल उत्पादन का भविष्य दिखाई देता है, किन्तु राज्य बने 23बरसों बाद भी उद्यान विभाग द्वारा समय पर अच्छी गुणवत्ता वाली कीवी फल पौध उपलब्ध न करा पाने ( प्रगतिशील उद्यान पति कीवी की पौध हेतु डाक्टर वाई.एस.परमार औद्यानिक एवं वानिकी विश्व विद्यालय नौणी (सोलन) हिमाचल प्रदेश से लाइन में खड़े हो कर ले रहे हैं ) तथा तकनीकी जानकारी का अभाव व स्थानीय बाजार में कीवी फलौ के उचित दाम न मिल पाने तथा उचित विपणन व्यवस्था न होने के कारण आज भी राज्य में कीवी फल उत्पादन व्यवसायिक रूप नहीं ले पाया। उत्तराखंड को कीवी प्रदेश बनाने की चर्चाएं हो रही है, कुछ प्रगतिशील उद्यान पतियों ने इस दिशा में प्रयास भी शुरू किए हैं।
राज्य सैक्टर के अन्तर्गत उद्यान विभाग ने बर्ष 2022-23 से कीवी मिशन योजना शुरू की है जिसके अन्तर्गत कृषकों को 80%अनुदान का प्रावधान रखा गया है। दस नाली (0.02 हैक्टेयर) भूमि पर कीवी का बाग लगाने हेतु कुल खर्चा पांच लाख याने सरकार किसानों को चार लाख अस्सी हज़ार रुपए का अनुदान देगी शेष एक लाख बीस हजार रुपए कृषक अंश होगा।कीवी प्रदेश बनाने की दिशा में सरकार की सकारात्मक पहल उत्तराखंड में कीवी फल पौध उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं कई कृषक इस दिशा में प्रयास भी कर रहे हैं योजनाओं में इनका समुचित उपयोग कर राज्य के उद्यानपतियों को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास होने चाहिए। कीवी एक ऐसा फल है, जिसकी विश्वभर में मांग है। साथ ही किसानों की झोलियां भरने में भी कीवी सक्षम है। हिमाचल, जम्मू-कश्मीर की भांति उत्तराखंड में भी कीवी उत्पादन के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं और सरकार कीवी मिशन की घोषणा कर चुकी है। अब असली चुनौती इसे धरातल पर मूर्त रूप देने की है। इसी में उद्यान विभाग के कौशल की परीक्षा होनी है। निश्चित रूप से सरकार की पहल बेहतर है, लेकिन औद्यानिकी के क्षेत्र में अब तक के अनुभवों को देखते हुए किंतु-परंतु भी कम नहीं हैं।
यद्यपि कुछ जिलों में कीवी उत्पादन के प्रयास हुए हैं, के उत्तराखंड कुछ चुनिंदा हिस्सों में शुरू हुआ है। लेकिन ये अभी औपचारिकता तक ही सीमित हैं। कीवी पौध की रियायती दर पर आसानी से उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती है। साथ ही किसानों को प्रेरित करना और फिर उत्पादित फलों के विपणन के लिए भी गंभीरता की दरकार है। बागेश्वर जिले के सामा गाँव के भवान सिंह ने भी कुछ ऐसा ही किया। साल 2009 में एक सरकारी स्कूल के हेड मास्टर की पोस्ट से रिटायर हुए, भवान सिंह ने रिटायरमेंट के बाद कीवी की खेती शुरू की और एक किसान के तौर पर अपनी नयी पहचान बनायी। निश्चित रूप से सरकार की पहल बेहतर है, लेकिन औद्यानिकी के क्षेत्र में अब तक के अनुभवों को देखते हुए किंतु-परंतु भी कम नहीं हैं। यद्यपि कुछ जिलों में कीवी उत्पादन के प्रयास हुए हैं, लेकिन ये अभी औपचारिकता तक ही सीमित हैं। कीवी पौध की रियायती दर पर आसानी से उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती है। साथ ही किसानों को प्रेरित करना और फिर उत्पादित फलों के विपणन के लिए भी गंभीरता की दरकार है।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)