उत्तराखंड: बेरोजगारी की समस्या (unemployment problem) का समाधान खोजना बहुत जरूरी
दीप चंद्र पंत
पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में बेरोजगारी बहुत बड़ी समस्या है। पलायन का प्रमुख कारण भी काम का अभाव है। खेतों से जो उत्पादन है, वह परिवार के भरण पोषण के लिए कम पड़ने पर मनुष्य को पेट भरने के लिए अन्यत्र जाकर समाधान तलाशने को विवश होना पड़ा है और पलायन का सबसे बड़ा कारण भी यही है।
पृथक राज्य के पीछे सोच भी यही रही थी कि स्थानीय समस्याओं को समझने वाली सरकार होने पर यहां के समस्याओं के अनुकूल वातावरण तैयार करेगी, क्योंकि किसी भी लोकतंत्र में राज्य या सरकार की कल्पना लोगों के भले और स्थानीय आवश्यकता अनुरूप समाधान के लिए ही होती है।
बढ़ती जनसंख्या के कारण उत्पादन लोगों की आवश्यकता पूर्ति नहीं कर पाता। भूगर्भीय कारणों से भूमि में आय के अन्य साधन भी विकसित नहीं किए जा सकते। भूमि के पोषक तत्वों में भी कमी होते जाने के कारण उत्पादन में भी गिरावट होती जाती है।
प्रारंभ में जब खेती का काम शुरू हुआ होगा तो वनों को काटकर बनाए गए खेतों में पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा रही होगी, परंतु साल दर साल फसलों के उत्पादन से भूमि में भी पोषक तत्वों की अनुपस्थिति बढ़ती गई। जंगलों की जैव विविधता भी बढ़ते दबाव के कारण समाप्त होती गई, जिसका प्रभाव खेती और पेयजल के लिए आवश्यक पानी तथा आवश्यकता की अन्य वस्तुओं पर भी पड़ा। वनों में भोजन की कमी के कारण वन्य जीव आवश्यकता और अस्तित्व के लिए कृषक की बोई फसल से उदर पूर्ति करने लगे और मनुष्य अपने अस्तित्व के लिए पलायन को मजबूर होता रहा।
शिक्षा व्यवस्था नौकरी आधारित होने पर उसे लगने लगा कि शिक्षा प्राप्त कर लेने पर उसे नौकरी मिल जायेगी तो निश्चित आय का साधन मिल जायेगा। बढ़ती जनसंख्या, नौकरी की कमी और आरक्षण आदि व्यवस्था के कारण पढ़ने के बाद भी उसे दर दर भटकना पड़ता है। गांव खाली हो जाने के कारण जो भी रोजगार स्थानीय रूप से विकसित थे, वे भी प्रभावित हुए हैं। हर हाथ के लिए स्वरोजगार का दृष्टिकोण तथा प्रत्येक गांव में जरूरत के भिन्न भिन्न स्वरोजगार उत्पादित सामग्री की बिक्री सुनिश्चित कर सकते हैं।
भूमि की उर्वरा शक्ति बनाए रखना भी सतत उत्पादन के लिए आवश्यक है। स्वराज आधारित दृष्टिकोण होने पर स्थानीय लोग अपनी आवश्यकता के अनुरूप साधन विकसित कर सकते हैं, क्योंकि सरकार या किसी भी व्यक्ति के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है कि वह हर क्षेत्र की समस्या, आवश्यकता और समाधान को समझ सके। संभवत: सर्वोदय, स्वराज और स्वरोजगार का दृष्टिकोण बेरोजगारी की समस्या का एकमात्र और सबसे सरल तरीका हो सकता है।
(लेखक भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं)