देश की राजधानी में हवा के रूप में जहर खींचने की विवशता कब तक
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
देश की राजधानी दिल्ली की हवा लगातार बद से बदतर होती जा रही है। हवा में धुंध की चादर छा गई है। दिवाली से पहले वायु गुणवत्ता सूचकांक कई जगहों पर 400 के पार पहुंच गया है। यह प्रदूषण का सबसे खतरनाक स्तर है। राजधानी मे सुबह-सुबह धुंध की चादर छाई है। लोग जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर है। एक रिपोट के अनुसार बीते पांच सालों से दिल्ली देश का सबसे प्रदूषित शहर बना हुआ है। देश की राजधानी दिल्ली में हवा लगातार जहरीली होती जा रही है। लोगों को सांस लेने में समस्या हो रही है। हर साल की तरह इस साल भी दिवाली से पहले ही एक्यूआई 400 के पार जा पहुंचा है। हवा की गति कम होने की वजह से वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। प्रदूषण को लेकर दिल्ली सरकार ने आज बैठक बुलाई है। जिसमें ग्रैप का तीसरा चरण को कड़ाई से लागू कराने को लेकर चर्चा होगी।बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली सरकार ने दो दिनों तक स्कूलों को बंद करने का आदेश जारी किया।
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर जानकारी दी। मुख्यमंत्री ने एक्स पर पोस्ट साझा कर बताया कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है। जिसे देखते हुए दिल्ली में सभी सरकारी और प्राइवेट स्कूल अगले दो दिनों तक बंद रहेंगे।दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 के पार चला गया है। ग्रैप का तीसरा चरण भी लागू हो गया है, जिसके कारण वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए छोटे बच्चों के स्कूल बंद करने का सुझाव दिया। इस सुझाव को गंभीरता से लेते हुए दिल्ली सरकार ने स्कूल बंद करने का फैसला किया। सीएम ने इसकी जानकारी दी। दिल्ली सरकार के साथ-साथ दिल्ली नगर निगम के सभी प्राइमरी स्कूल भी दो दिन बंद रहेंगे। दिल्ली नगरनिगम के शिक्षा विभाग के निदेशक विकास त्रिपाठी ने बताया कि सभी जोनों के डीडीई और स्कूल प्रिंसिपल को इसकी सूचना दे दी गई है।गुरुवार को दिल्ली में हवा की क्वालिटी बेहद खराब श्रेणी में रही।
दिल्ली के अलावा नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हवा बेहद खराब कैटेगरी में दर्ज की गई। ग्रैप-३ लागू होने के साथ सभी गैर- आवश्यक निर्माण और तोड़फोड़ के कार्यों पर रोक लग गई है। इसके अलावा दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाजियाबाद और गौतम बुद्ध नगर में पेट्रोल से चलने वाले बीएस-3 इंजन और डीजल से चलने वाले बीएस-4 चार पहिया वाहनों के इस्तेमाल पर रोक लग गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक के अनुसार, शुक्रवार सुबह आठ बजे तक दिल्ली के मुंडका इलाके का औसत एक्यूआई500,आईटीओ में 451, नजफगढ़ में472, आईजीआई एयरपोर्ट में 500, नरेला में 500 दर्ज किया गया। वहीं नोएडा के सेक्टर-125में एक्यूआई 400 पर ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंच गया है। सेक्टर-62 में 483, सेक्टर-1 में 413 और सेक्टर-116 में 415 पर ‘गंभीर’ श्रेणी में एक्यूआई रहा। पिछले पांच सालों से दिल्ली देश का सबसे प्रदूषित शहर बना हुआ है। रेस्पिरर रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर में राजधानी में पार्टिकुलेट मैटर 2.3 यानी हवाओं में अभिकरण का लेवल देश में सबसे ज्यादा दर्ज किया गया है। साल 2021 से इसमें लगातार वृद्धि हो रही है।
रेस्पिरर रिपोर्ट के अनुसार, देश के चार प्रमुख शहरों में एयर पोल्यूशन में हुई है। दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और कोलकाता में अक्टूबर 2023 में PM 2.5 में बीते साल की तुलना में वृद्धि देखी गई है। वहीं, लखनऊ और पटना में गिरावट दर्ज की गई। जब सर्दियों में वायु-प्रदूषण के स्तर में ज्यादा वृद्धि हो जाती है तो लोगों को घर के अंदर रहने की सलाह दी जाती है और बाहर निकलने से मना किया जाता है। सुबह या शाम में बाहरी क्रियाकलापों को करने की बात कही जाती है। स्मोकिंग से बचाव एवं कचरे को जलाने से बचने को कहा जाता है। खूब पानी पीने की सलाह दी जाती है ताकि शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाए। विटामिन मैगनीशियम एवं ओमेगा फैटी एसिड से भरपूर फलों के सेवन की हिदायद दी जाती है ताकि रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हो। मुख्य सड़कों के इस्तेाल को मना किया जाता है ताकि लोग प्रदूषण कणों से दूर रह सकें।
उपर्युक्त सभी चिंताओं के मद्देनजर उम्मीद की जा रही है कि नया आयोग वायु गुणवत्ता पर निरंतर ध्यान रखते हुए अंतर-विभागीय समन्वय संबंधी समस्याओं का हल करने में मदद कर सकता है। परंतु समान रूप से यह भी तय है कि विकास के स्पष्ट मापदंड और समाधान के रचनात्मक तरीकों के बिना यह पुराने गतिरोधों को पुन: उत्पन्न कर सकता है। नया आयोग एक नौकरशाही पतीले के समान है, जिसका प्रभाव इसमें डाली गई सामग्री पर निर्भर करेगा और साथ ही उसे कैसे चलाया जा रहा है, इस पर निर्भर करेगा। देखा जाए तो यह एक बहुत ही स्वागत योग्य कदम है, जिसकी बहुत ज्यादा आवश्यकता थी। क्योंकि मुख्य समस्या यह थी कि दिल्ली से सटे विभिन्न राज्यों के मध्य समन्वय कैसे किया जाए। वर्तमान में कोई भी निकाय, प्राधिकरण, मंत्रालय था राज्य नहीं था जो ऐसा करने में सशक्त या उसके प्रति समर्पित हो। यह अध्यादेश अमेरिका द्वारा कैलिफोर्निया में उठाए गए कदम से सीखने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
वायु प्रदूषण से निपटने हेतु राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है जिसकी अक्सर कमी देखने को मिली है। फिलहाल यह नहीं देखना है कि नया आयोग EPCA, CBCB जैसे मौजूदा निकायों से कैसे अलग है? जरूरत यह है कि सभी राज्यों के मुख्यमंत्री के प्रतिनिधित्व के साथ केंद्रीय पर्यावरण मंत्री की अध्यक्षता में एक निकाय हो जो नियमित रूप से बैठकें करे और समयबद्ध कार्य योजना पर सहमत हो। लक्ष्य को तय करते हुए जिम्मेदारियों का निर्वहन आवश्यक है अन्यथा एक कमीशन से दूसरे कमीशन तक सिर्फ आरोप और जिम्मेदारियाँ स्थानांतरित किये जाएंगे एवं परिणाम समान होंगे। पर्यावरण मंत्री के अनुसार केंद्र ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने हेतु कई कदम उठाए हैं, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी के आसपास पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे को खोलना भी शामिल है। गैर-दिल्ली में यातायात के भीड़ को कम करने और निर्माण एवं विध्वंस से उत्पन्न मलबे के प्रबंधन संबंधी नियमों को भी लाया जा रहा है जिसका प्रबंधन अगर सही से न किया गया तो वे धूल-कण के स्रोत भी बन सकते हैं।
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की लगतार बढ़ती समस्या से निपटने के लिये केंद्र ने एक अध्यादेश के माध्यम से एक नया कानून पेश किया है जो तत्काल प्रभाव से लागू होगा। प्रावधानों का उल्लंघन करने पर पाँच साल जेल की सजा या एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान किया गया है। इस अध्यादेश को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एवं संलग्न क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु आयोग अध्यादेश, 2020 का नाम दिया जा सकता है। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आस-पास के क्षेत्रों में भी लागू होगा जहाँ के मामले वायुप्रदूषण से संबंधित होंगे।ऐसे में दिल्ली एवं इसके आस-पास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के स्तर में पुन: वृद्धि होना स्वाभाविक है। साथ ही ठंड के मौसम के आते ही इसके गंभीरता में और वृद्धि हो जाती है। दिल्ली और उसके आसपास वायु प्रदूषण के विषाक्तता का उच्च स्तर काफी गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है। इस गंभीरता को मौसम की बदलती परिस्थितियों ने और भी बदत्तर बना दिया है।बदलते मौसम ने प्रदूषकों को हवा के घेरे में कैद कर स्थिति को और खराब कर दिया है। वैज्ञानिकों ने बढ़ते पॉल्यूशन को लेकर चिंता जताई है। कम बारिश होना प्रदूषण बढ़ने की बड़ी वजह बताई जा रही है।
दिल्ली के पड़ोस के प्रदेशों में पराली जलाने को भी पॉल्यूशन बढ़ने में सहायक माना जाता रहा है। हरियाणा, पंजाब समेत देश के उत्तरी हिस्सों में पराली जलाने की क्रिया अभी भी खत्म नहीं हुई है। इसके कारण दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम और आस-पास के इलाकों में सर्दी बढ़ने के साथ ही गुरुवार को अब धुंध भी बढ़ गई है। इससे सुबह में टहलने वाले या काम पर निकलने वालों को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। मौसम विभाग के मुताबिक अगले तीन चार दिनों तक यही स्थिति बनी रहेगी। हालांकि हवा के रुख बदलने के बाद धुंध में थोड़ी कमी आने की उम्मीद जताई गई है। दिल्ली के आसपास के राज्यों में पराली जलाने को भी प्रदूषण बढ़ने का एक मुख्य कारण माना जा रहा है।हरियाणा, पंजाब समेत देश के उत्तरी हिस्से में पराली जलाना अभी भी जारी है। इसके कारण दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम और आस-पास के इलाकों में हवा में धुंध बढ़ रही है।
इस साल अब तक 2500 से ज्यादा पराली जलाने के मामले सामने आ चुके हैं। हालांकि, खेत में आग लगने की संख्या पिछले दो सालों की तुलना में बेहतर है।दिल्ली के पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक, दिल्ली- NCR में GRAP-2 के तहत कोयला और लकड़ी के उपयोग पर बैन है। साथ ही CNG और इलेक्ट्रिक बसों की ज्यादा ट्रिप, सड़कों की नियमित सफाई और पानी का छिड़काव और ट्रैफिक जाम लगने से रोकने से प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहने वाले सांस के रूप में जहर खींचने को क्यों विवश है, इसके कारणों पर इतनी बार चर्चा हो चुकी है कि उन्हें दोहराने की आवश्यकता नहीं। प्रश्न है कि पिछले कुछ सालों से लगातार इस महासंकट से जूझ रही दिल्ली-एनसीआर को कोई स्थायी समाधान की रोशनी क्यों नहीं मिलती? सरकारें एवं राजनेता एक दूसरे पर जिम्मेदारी ठहराने की बजाय समाधान के लिये तत्पर क्यों नहीं होते ? इस विषम एवं ज्वलंत समस्या से मुक्ति के लिये हर राजनीतिक दल एवं सरकारों को संवेदनशील एवं अन्तर्दृष्टि-सम्पन्न बनना होगा। क्या हमें किसी चाणक्य के पैदा होने तक इन्तजार करना पड़ेगा, जो जड़ों में मठ्ठा डाल सके। नहीं, अब तो प्रत्येक राजनीतिक मन को चाणक्य बनना होगा। तभी विकराल होती वायु प्रदूषण की समस्या से मुक्ति मिलेगी।
उत्तर भारत के बड़े इलाके में रहने वाले जनजीवन के लिए यह एक स्थायी समस्या एवं जीवन संकट बनती जा रही है, जो बच्चों, बुजुर्गों और सांस की बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए बेहद खतरनाक एवं जानलेवा साबित हो रही है। सरकारें भले ही इस मुद्दे को लेकर गंभीर नजर आने लगती हैं, भले ही इस जटिल से जटिलतर होती समस्या के समाधान का पूरा एक्शन प्लान तैयार भी है लेकिन इसके प्रभावी परिणाम देखने को नहीं मिलना, कहीं-ना-कहीं सरकार की नाकामी को ही दर्शा रहा है। सरकार ने अनेक लुभावने तर्क एवं तथ्य दिये, सरकारें जो भी तर्क दें, पर हकीकत यही है कि लोगों का दम घुट रहा है। अगर वे सचमुच इससे पार पाने को लेकर गंभीर हैं, तो वह व्यावहारिक धरातल पर दिखना चाहिए। वायु की गुणवत्ता को बढ़ाने एवं प्रदूषण कम करने और दिल्ली सहित देश के अन्य महानगरों-नगरों को रहने लायक बनाने की जिम्मेदारी केवल सरकारों की नहीं है, बल्कि हम सबकी है। हालांकि लोगों को सिर्फ एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभानी है। उसका पुराना अतीत वापस मिलेगा।!
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )