हिंदी दिवस : देश की राजभाषा हिंदी आज मना रही हीरक जयंती, 75 साल की गौरवशाली यात्रा में मातृभाषा ने किए कई अहम पड़ाव पार
लोक संस्कृति
आज 14 सितंबर है। हर साल इस तारीख को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर इन चंद लाइनों के साथ बात आगे बढ़ाते हैं। हिंदी भाषा में प्यार है, विश्वास है, अपनेपन का एहसास है। हम सभी के दिल के करीब है हिंदी, हमें अपनों सी अजीज है हिंदी।
हिंदी में स्नेह है, हिंदी में दुलार है। हिंदी हमारा अभिमान है, हमारा शृंगार है। यह दिन हिंदी के प्रचार-प्रसार को बढ़ाने और इसके महत्व को बताने का दिन है।
हिंदी आज दुनिया में सबसे ज्यादा बोली और समझी जाने वाली भाषाओं में शुमार है। हिंदी दिवस पर पूरे देश भर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। हिंदी देश की राजभाषा है। 75 साल पहले 14 सितंबर, 1949 के दिन की हिंदी को भारत की राजभाषा का दर्जा दिया गया है।
इसी उपलक्ष्य में हर साल 14 सितंबर का दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं। हालांकि, पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया। हिंदी के राजभाषा बनने की 75 वर्ष की यात्रा ने न केवल कई महत्वपूर्ण पड़ाव पार किए हैं बल्कि तकनीक के क्षेत्र में उत्तरोत्तर प्रगति भी की है।
राजभाषा विभाग इस अवसर को हीरक जयंती के रूप में मना रहा है। हर साल की तरह इस साल भी हिंदी दिवस पर एक खास थीम तैयार की गई है, जिसके माध्यम से हिंदी भाषा के किसी न किसी पहलू को उजागर किया जाता है। इस साल की थीम है ‘हिंदी पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम बुद्धिमत्ता तक जिसका मलतब है जहां पारंपरिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग करने के लिए हम पूर्व निर्धारित माध्यमों (कीबोर्ड, माउस, टचस्क्रीन, ग्राफिकल यूजर इंटरफेस, मेनू आदि) का प्रयोग करते हैं वहीं कृत्रिम बुद्धिमत्ता इनके साथ-साथ हमारी भाषा को समझने में भी सक्षम है और उससे संवाद किया जा सकता है।
हिंदी भारत में सबसे ज्यादा और दुनिया में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। यह सिर्फ एक भाषा नहीं बल्कि भाव और विचार है । जिसके जरिए पूरा देश एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। इसकी वजह से पूरा भारत एक सूत्र में बंधा हुआ है। भारत में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं, जो देश की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करती हैं। लेकिन हिंदी वह भाषा है जो देश के आधे से ज्यादा हिस्से को आपस में जोड़ती है। हालांकि दक्षिण के राज्यों खासतौर पर तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में हिंदी भाषा को लेकर राजनीति भी होती रही है, जिसकी वजह से हिंदी का विरोध भी देखने को मिलता है। लेकिन विदेशों में हिंदी भाषा खूब फल-फूल रही है। दुनिया के तमाम देशों में हिंदी खूब सराही जाती है। यह नहीं कई देशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई भी जा रही है।
75 साल के बाद भी हिंदी को देश में राष्ट्रभाषा का आधिकारिक दर्जा नहीं मिल सका
हिंदी अधिकतर भारतीयों की मातृभाषा है और यद्यपि इसे राष्ट्रभाषा का आधिकारिक दर्जा नहीं मिला है, लेकिन हिंदी को संविधान में राजभाषा के रूप में मान्यता दी गई है। हिंदी की व्यापकता और इसकी उपयोगिता को बनाए रखने के लिए सरकारी दफ्तरों में कामकाज अधिकतर हिंदी में ही होता है। देश की 125 करोड़ आबादी में से 53 करोड़ लोग हिंदी में बातचीत करना, बोलना, पढ़ना और लिखना जानते हैं। संविधान सभा में हुई लंबी चर्चा के बाद इस बात पर सहमति बनी कि हिंदी को राजभाषा बनाया जाएगा।
इसके बाद संविधान के अनुच्छेद 343(1) में हिंदी को देवनागरी लिपि के रूप में राजभाषा का दर्जा दिया गया। वहीं 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया। अगर आप भी राजभाषा और राष्ट्रभाषा के बीच अंतर नहीं जानते हैं तो बता दें कि राष्ट्रभाषा वह है, जिसका इस्तेमाल राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यों के लिए किया जाता है। वहीं, राजभाषा वह है जिसका उपयोग सरकारी कामकाज के लिए किया जाता है। इसमें राष्ट्रीय अदालत, संसद या व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए आदि शामिल हैं । केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शनिवार को राजधानी दिल्ली स्थित भारत मंडपम में राजभाषा हीरक जयंती समारोह और चौथे अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करेंगे।
हिंदी के राजभाषा बनने के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 14-15 सितंबर को भारत मंडपम में यह सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, शाह इस अवसर पर एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने के अलावा ‘राजभाषा भारती’ पत्रिका के हीरक जयंती विशेषांक का भी लोकार्पण करेंगे। गृह मंत्री राजभाषा गौरव और राजभाषा कीर्ति पुरस्कार भी प्रदान करेंगे। दो दिवसीय चौथे अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में, 75 वर्षों में राजभाषा, जनभाषा और संपर्क भाषा के रूप में हिंदी की प्रगति पर गहन मंथन किया जाएगा।उल्लेखनीय है कि गृह मंत्री अमित शाह ने वर्ष 2019 में देश के विभिन्न शहरों में बृहद स्तर पर हिंदी दिवस आयोजित करने की संकल्पना की थी। इसी संकल्पना को साकार करते हुए 2021 में वाराणसी में हिंदी दिवस और पहला अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन आयोजित किया गया। उसके बाद, 2022 में सूरत और 2023 में पुणे में हिंदी दिवस और क्रमश: दूसरा एवं तीसरा अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन आयोजित किया गया।