गणेश उत्सव : गणेश चतुर्थी पर चित्रा नक्षत्र और बुधवार का बन रहा शुभ संयोग, सिद्धि विनायक रूप में होंगे बप्पा विराजमान
देहरादून/लोक संस्कृति
कल यानी 27 अगस्त को गणेश चतुर्थी है। इसी दिन से गणेश उत्सव की भी शुरुआत होती है। मुंबई, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में यह उत्सव 10 दिनों तक धूमधाम के साथ मनाया जाता है। भादौ महीने में यह सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव होता है। कल गणेश चतुर्थी के दिन चित्रा नक्षत्र, बुधवार और भाद्रपद महीने की चतुर्थी तिथि से शुभ संयोग बन रहा है। गणेश पुराण में बताया गया है कि ऐसे ही संयोग में देवी पार्वती ने दोपहर के समय गणपति की मूर्ति बनाई थी, जिसमें भगवान शिव ने प्राण डाले थे। भादौ महीने की इस गणेश चतुर्थी पर गणपति को सिद्धि विनायक रूप में पूजने का विधान है। इस रूप की पूजा भगवान विष्णु ने की थी और ये नाम भी दिया।
गणेश जी के सिद्धि विनायक रूप की पूजा हर मांगलिक काम से पहले होती है। माना जाता है गणेश जी का ये रूप सुख और समृद्धि देने वाला होता है। इनकी पूजा से हर काम में सफलता मिलती है। इसलिए इन्हें सिद्धि विनायक कहते हैं। इस पावन अवसर पर गणपति को सिद्धि विनायक रूप में पूजने की परंपरा है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने स्वयं गणेश जी के इस स्वरूप की आराधना की थी और उन्हें सिद्धि विनायक नाम दिया था। इसी कारण हर मांगलिक कार्य की शुरुआत गणेश पूजा से करने की परंपरा आज भी निभाई जाती है। भक्तों का विश्वास है कि सिद्धि विनायक गणपति की आराधना से सुख, समृद्धि और हर कार्य में सफलता मिलती है।
गणेश चतुर्थी का नाम आते ही सबसे पहले मुंबई और महाराष्ट्र का जिक्र होता है। यहां यह पर्व महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। कल से शुरू होकर 10 दिनों तक मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में गणपति बप्पा मोरया के जयकारे गूंजेंगे। मुंबई पुलिस और प्रशासन ने सुरक्षा और व्यवस्था के विशेष इंतजाम किए हैं। ट्रैफिक कंट्रोल से लेकर भीड़ प्रबंधन तक, हर स्तर पर तैयारी की गई है। महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि गुजरात, गोवा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उत्तर भारत के कई हिस्सों में भी गणेश उत्सव की विशेष रौनक देखने को मिलेगी। घर-घर और पंडालों में गणपति की प्रतिमाएं स्थापित होंगी, भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा। धार्मिक आचार्यों का कहना है कि इस बार बन रहा शुभ संयोग भक्तों के लिए अत्यंत मंगलकारी है। जो लोग सच्चे मन से सिद्धि विनायक गणपति की आराधना करेंगे, उनकी हर मनोकामना पूरी होगी और जीवन में नई ऊर्जा तथा समृद्धि का संचार होगा।
साल 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव की शुरुआत की थी
आज भले ही गणेश उत्सव पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन इसकी शुरुआत साल 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी। अंग्रेजी हुकूमत के समय तिलक ने इस पर्व को सार्वजनिक रूप देकर समाज को जोड़ने का काम किया। उन्होंने घरों तक सीमित गणेश पूजा को पंडालों और सामूहिक आयोजनों तक पहुंचाया। इससे लोगों में एकता, राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता संग्राम के प्रति चेतना आई। तब से लेकर आज तक यह परंपरा लगातार जारी है और साल दर साल और भी भव्य होती चली गई है। गणेश उत्सव का सबसे बड़ा रंग आज भी मुंबई और महाराष्ट्र में देखने को मिलता है। यहां गणेश चतुर्थी पर हर गली, हर मोहल्ला और हर पंडाल बप्पा के स्वागत के लिए सज-धज जाता है।लालबाग का राजा, सिद्धिविनायक मंदिर, गिरगांव चौपाटी, अंधेरीचा राजा और कई बड़े गणपति पंडाल देशभर में प्रसिद्ध हैं, जहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु बप्पा के दर्शन के लिए आते हैं। इस बार भी पंडालों को विशेष थीम पर सजाया गया है। कहीं धार्मिक कथाओं की झलक दिखाई जाएगी तो कहीं सामाजिक संदेशों पर आधारित आकर्षक सजावट देखने को मिलेगी। केवल महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गोवा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली तक में गणेश उत्सव की रौनक फैल चुकी है। हर जगह भक्त गणपति बप्पा की प्रतिमाएं स्थापित करेंगे और 10 दिनों तक भजन-कीर्तन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और सेवा कार्यों के जरिए बप्पा का स्वागत करेंगे।