उत्तराखंड की पहली महिला संपादक
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में पत्रकारिता का बहुत ही समृद्ध इतिहास रहा है। खासकर स्वतंत्रता से पूर्व देश के अन्य भागों की तरह यहां भी पत्रकारों का स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा। स्वतंत्रता से पूर्व उत्तराखंड के गढ़वाल के प्रखर पत्रकार ‘गढ़वाली’ के संपादक विशंभर दत्त चंदोला को रवाईं कांड की रिपोर्टिंग में सरकार की ओर से जेल भेज देने पर उनकी पुत्रियों ललिता, शांति, कुसुम और बिमला ने कुछ समय गढ़वाली की बागडोर संभाली थी जबकि लक्ष्मी देवी टम्टा उत्तराखंड की पहली एससी महिला संपादक रहीं। लक्ष्मी उत्तराखंड की पहली एससी स्नातक भी बनीं।
हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में लक्ष्मी देवी का महत्वपूर्ण योगदान है। लक्ष्मी देवी ने ‘समता’ अखबार के माध्यम से सामाजिक समस्याओं और अनुसूचित जाति के लोगों की आवाज को बुलंद किया। वे दलित वर्ग की शिक्षा और उनके समानता के दर्जे को लेकर सतत संघर्ष करती रहीं।16 फरवरी 1912 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में जन्मीं लक्ष्मी गुलाब राम टम्टा कमला देवी की पुत्री थीं। उन्होंने तत्कालीन नंदन मिशन स्कूल, वर्तमान में एडम्स गर्ल्स इंटर काॅलेज, अल्मोड़ा से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। उस दौर में अनुसूचित जाति की महिला के हिसाब से यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। बाद में लक्ष्मी 1934 में बनारस हिंदू विश्व विद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल कर उत्तराखंड की प्रथम दलित स्नातक बनीं विवाह के बाद भी शिक्षा के प्रति उनका लगाव बना रहा और उन्होंने बीएचयू से ही मनोविज्ञान विषय में स्नातकोत्तर की डिग्री भी प्राप्त की।
लक्ष्मी देवी टम्टा अल्मोड़ा के प्रख्यात समाजसेवी मुंशी हरिप्रसाद टम्टा की भांजी थीं। हरिप्रसाद अल्मोड़ा पालिका के अध्यक्ष और एमएलसी भी रहे। महिपत राय हरिप्रसाद टम्टा के पत्र समता का संपादन करते थे। 1931 में लक्ष्मी देवी का अंतरजातीय विवाह महिपत राय नागर के साथ हुआ। महीपत एक गुजराती ब्राह्मण राष्ट्रीय पत्रक संपादक मुद्रक और प्रकाशक मदन मोहन नागर के पुत्र थे। उस दौर में जाति प्रथा और छुआछूत बहुत थी। हरिप्रसाद टम्टा समता अखबार के माध्यम से दलित, पिछड़े, अनुसूचितजाति के लोगों को समानता और शिक्षा के अधिकार के लिए आवाज उठाते थे। 1935 में हरिप्रसाद टम्टा ने अपनी भांजी लक्ष्मी को समता पत्रिका का विशेष संपादक नियुक्त किया और लक्ष्मी देवी उत्तराखंड की पहली अनुसूचित जाति की महिला संपादक बनीं।
लक्ष्मी देवी ने भी अपनी लेखनी से पिछड़ों और अनुसूचित वर्ग की समानता का संघर्ष जारी रखा। बाद में लक्ष्मी देवी कुछ समय के लिए कन्या इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्या भी रहीं पुराने समय में स्त्रियों की दशा शिक्षा और सामाजिक समानता में सोचनीय थी। लक्ष्मी देवी टम्टा ने उस समय सामाजिक विरोध और सामाजिक संघर्षो को सह कर या उच्च शिक्षा प्राप्त की।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )