देवउठनी एकादशी : आज से शुरू हुआ शादी-विवाह का सीजन, उत्तराखंड में इगास लोकपर्व धूमधाम के साथ मनाया जा रहा
देहरादून/लोक संस्कृति
आज देवउठनी एकादशी है। भगवान विष्णु को समर्पित देवउठनी एकादशी आज मनाई जा रही है।
यह कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है। इस दिन घरों में भगवान विष्णु की भव्य पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसे देवोत्थान भी कहते हैं। हिंदू धर्म में इस तिथि को नई शुरुआत, सुख-सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना गया है। ज्योतिषी इस दिन को अबूझ मुहूर्त मानते हैं, इसलिए ये सीजन का पहला विवाह मुहूर्त होता है। देवउठनी एकादशी पर बिना मुहूर्त देखे भी शादी कर सकते हैं। पुराणों में लिखा है कि इस दिन तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह हुआ था। ये ही वजह है कि इस दिन से शादियों का सीजन भी शुरू हो जाता है।

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में बूढ़ी दिवाली या इगास बग्वाल का त्योहार मनाया जाता है। आज यानी कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन देव जगाने की परंपरा है। यानी पिछले चार महीने से योग निद्रा में सोए भगवान विष्णु को शंख बजाकर जगाया जाता है। दिनभर महापूजा चलती है और आरती होती है। शाम को शालग्राम रूप में भगवान विष्णु और तुलसी रूप में लक्ष्मी जी का विवाह होता है। घर और मंदिरों को सजाकर दीपक जलाए जाते हैं।
तुलसी-शालग्राम विवाह नहीं करवा सकते तो सिर्फ इनकी पूजा भी कर सकते हैं। माना जाता है भगवान विष्णु चार महीने योगनिद्रा में रहते है और इसी दिन जागते हैं, इसलिए इसे देव प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। गृह प्रवेश और बाकी मांगलिक काम भी इसी दिन से शुरू होते हैं। 2 नवंबर से शादियां शुरू होंगी और सीजन का आखिरी मुहूर्त 6 दिसंबर रहेगा। शुक्र ग्रह अस्त होने के कारण दिसंबर में ज्यादा मुहूर्त नहीं होंगे। आमतौर पर 15 दिसंबर तक तो शादियों के मुहूर्त रहते ही हैं। इसके बाद धनुर्मास शुरू हो जाता है। जिसमें शादियां नहीं होती।
देवउठनी एकादशी (या तुलसी विवाह) के दिन पीपल वृक्ष के नीचे दीपक जलाना और भगवान विष्णु को पांच पीपल के पत्ते अर्पित करना बहुत पुण्यदायी माना गया है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि पीपल में स्वयं विष्णु, ब्रह्मा और शिव तीनों देवताओं का वास होता है, इसलिए यह उपाय अत्यंत शुभ और प्रभावकारी माना गया है। शाम को दीपक में तिल का तेल भरकर किसी नदी, तालाब या कुंड में प्रवाहित करें। यह उपाय करने से पितृ शांति, कर्ज मुक्ति की मान्यता है।
वहीं उत्तराखंड में दिवाली के दिन को बग्वाल के रूप में मनाया जाता है। जबकि कुमाऊं में दिवाली से 11 दिन बाद इगास यानी बूढ़ी दीपावली के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व के दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते हैं। रात में स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के बाद भैला एक प्रकार की मशाल जलाकर उसे घुमाया जाता है और ढोल-नगाड़ों के साथ आग के चारों ओर लोक नृत्य किया जाता है।
इगास’ का अर्थ ‘एकादशी’ भी है, जो कार्तिक माह के ग्यारहवें दिन मनाई जाती है। इगास को भगवान विष्णु के चार महीने के विश्राम काल के अंत का प्रतीक माना जाता है, जो नए कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ समय होता है। इसी दिन से शुभ मांगलिक कार्य शादी ब्याह भी शुरू होंगे। इगास जिसे हरिबोधिनी एकादशी, बूढ़ी दिवाली या इगास बग्वाल भी कहते हैं।
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