उत्तराखंड में शिक्षा (Education) का हाल
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
पृथक उत्तराखंड राज्य गठन के 21 सालों बाद भी शिक्षा में कोई विशेष सुधार नहीं आ पाया है। हालत यह है कि स्कूलों को जरूरी संसाधनों से लैस करने के बजाय ऐतिहासिक जिले के 207 राजकीय व प्राथमिक स्कूलों को बंद कर दिया गया। यह स्कूल अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं।जबकि ग्रामीण अंचलों में गरीब अभिभावकों के पाल्यों के लिए यह स्कूल शिक्षार्जन का माध्यम बने हुए थे। इन्हीं विद्यालयों में पढ़कर वर्तमान में पूर्व छात्र विभिन्न विभागों में सेवाएं दे रहे हैं।एक ओर राज्य में आती-जाती सरकारें शिक्षा का उजियारा कोने-कोने में फैलाने की बात करती है। वहीं जिले के विभिन्न विकास खंडों के 207 स्कूलों को वहां संसाधन बढ़ाने के बजाय उन्हें बंद कर दिया गया।
अभिभावकों का कहना है कि इन विद्यालयों में घटते संसाधनों के चलते ही छात्र संख्या में गिरावट आई। यदि समय पर विभाग व शासन इन विद्यालयों में सभी जरूरी संसाधन बढ़ाने का प्रयास करता तो विद्यालयों में छात्र संख्या नहीं घटती। एक दौर था जब इन्हीं प्राथमिक स्कूलों में शिक्षार्जन कर आज अनेक पूर्व छात्र विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। राज्य गठन के दौरान जिले में 1470 स्कूल थे, जो अब घटकर 1263 रह गए हैं।अभिभावकों का कहना है कि राजकीय बेसिक स्कूलों में पढ़ाई के लिए सभी बेहतर संसाधन मुहैया कराने के प्रयास विभाग व शासन को करने चाहिए। ताकि इन विद्यालयों में छात्र संख्या लगातार बढ़ती रहे। जिससे घटती छात्र संख्या के कारण विद्यालय बंद न होने पाएं। इस दिशा में शासन को गंभीरतापूर्वक कारगर उपाय करने चाहिए।
शिक्षक संगठनों ने भी प्राथमिक स्कूलों में हर कक्षा के लिए एक शिक्षक की तैनानी किए जाने पर जोर दिया है शिक्षा क्षेत्र में व्यापक बदलावों के लिए केंद्र सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी है। करीब तीन दशक के बाद देश में नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी गई है। इससे पूर्व 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाई गई थी और 1992 में इसमें संशोधन किया गया था। एक लंबा वक्त बीत चुका है। उम्मीद की जा रही है कि यह देश के शिक्षा क्षेत्र में नए और बेहतर परिवर्तनों की शुरुआत करेगी। आइए जानते हैं कि आखिर देश की शिक्षा प्रणाली को बदलने के लिए इस नीति की जरूरत क्यों पड़ी और इससे पूर्व की नीतियों में किन बातों परध्यान केंद्रित किया गया शिक्षा क्षेत्र में व्यापक बदलावों के लिए केंद्र सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी है। करीब तीन दशक के बाद देश में नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी गई है। इससे पूर्व 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाई गई थी और 1992 में इसमें संशोधन किया गया था। एक लंबा वक्त बीत चुका है।
उम्मीद की जा रही है कि यह देश के शिक्षा क्षेत्र में नए और बेहतर परिवर्तनों की शुरुआत करेगी इस देश में उच्च शिक्षा के संस्थानों की बहुत कमी है. जहां हमारे देश में लगभग 650 विश्वविद्यालय राजकीय और निजी दोनों मिलाकर वहीं हमारी आबादी के के 10वें हिस्से के बराबर आबादी वाले देश जापान में 800 से अधिक विश्वविद्यालय है। भर्तियों में अनियमितता व विभिन्न निर्माण कार्यो की गुणवत्ता में समझौता करने के लिए हुआ है। मानो विकास का मतलब विद्यालय व महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, अस्पतालों व मेडिकल कालेजों के ज्यादा से ज्यादा भवन बनाना भर है, न कि उनके बेहतर संचालन की व्यवस्था करना। हर साल सड़कें बनाना मकसद है, पर हर साल ये क्यों उखड़ रही हैं, उच्च शिक्षा महकमे ने पहले प्रदेश के सभी राजकीय और अशासकीय कॉलेजों परिसर को वाई-फाई से लैस करने की मुहिम शुरू की। प्रदेश के सबसे बड़े डीएवी कॉलेज के छात्रों को पहली बार मुफ्त वाई-फाई का लाभ उठाने का मौका मिलना शुरू हुआ था, लेकिन अब ‘मंत्री महोदय’ के एक फरमान ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है इंजीनियरिंग के क्षेत्र में छात्र-छात्राओं की साल-दर साल घटती दिलचस्पी के बीच अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद की घोषणा ‘ नई उम्मीद’ लेकर आई है।
परिषद ने नए शिक्षकों के लिए आठ मॉड्यूल का प्रशिक्षण लेने के बाद ही इंजीनियरिंग का नियमित शिक्षक प्रमाण पत्र देने की घोषणा की है। ऐसा इसलिए किया गया कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई की गुणवत्ता बेहतर हो सके। छात्रों में इंजीनियरिंग के प्रति दोबारा रुझान बढ़ेगा, यह उम्मीद की जा रही है। उत्तराखंड के 89 निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में इस वर्ष 65 फीसद तक सीटें रिक्त रह गई थीं।
(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)