छठ महापर्व : नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ छठ महापर्व, चार दिन तक चलने वाले इस पर्व पर सूर्य देव और छठी मैया की होती है पूजा-अर्चना

छठ महापर्व : नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ छठ महापर्व, चार दिन तक चलने वाले इस पर्व पर सूर्य देव और छठी मैया की होती है पूजा-अर्चना

लोक संस्कृति

छठ महापर्व आज से शुरू हो चुका है। इस महापर्व में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का विधान है। दिवाली के बाद आने वाला ये पर्व सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित होता है जिसकी शुरुआत नहाय-खाय के साथ देशभर में हुई। ये त्योहार चार दिनों तक चलने वाला पर्व है जिसकी शुरुआत नहाय खाय से होती है। फिर आते हैं खरना, संध्या अर्घ्य और प्रातः अर्घ्य जिससे छठ का पर्व खत्म हो जाता है।

छठ का यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पूर्वी भारत के अन्य हिस्सों में मनाया जाता है। इस पर्व को सूर्य षष्ठी, डाला छठ, छठी माई पूजा और प्रतिहार जैसे नामों से भी जाना जाता है। महिलाएं मुख्य रूप से यह व्रत अपने परिवार की सुख-समृद्धि और पुत्रों की दीर्घायु के लिए रखती हैं।

रविवार को खरना पूजन के साथ 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाएगा। सोमवार की शाम अस्ताचलगामी सूर्य और मंगलवार को सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। राजधानी समेत प्रदेश भर में छठ महापर्व को लेकर उल्लास है।

25 अक्टूबर : नहाय-खाय,
26 अक्टूबर : खरना पूजन,
27 अक्टूबर : शाम का अर्घ्य और
28 अक्टूबर : सुबह का अर्घ्य के साथ छठ पर्व खत्म हो जाएगा।

पटना के गंगा घाटों पर तैयारियां अंतिम चरण में हैं। प्रदेश के प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों में देव, बडगांव, उलार, पुण्यार्क आदि जगहों पर छठ व्रती भगवान सूर्य की उपासना में लीन रहेंगे। छठ व्रती गंगा और तालाबों से जल ले जाकर मिट्टी के बने चूल्हे पर शुद्ध वातावरण में प्रसाद तैयार करेंगे।

छठ महापर्व के दौरान व्रती पर छठी मैया की कृपा बरसती है

छठ महापर्व के दौरान व्रती पर छठी मैया की कृपा बरसती है। छठ महापर्व खासकर शरीर, मन तथा आत्मा की शुद्धि का पर्व है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार नहाय-खाय से छठ के पारण सप्तमी तिथि तक भक्तों पर छठी मैया की विशेष कृपा बरसती है। प्रत्यक्ष देवता सूर्य को पीतल या तांबे के पात्र से अर्घ्य देने से आरोग्यता का वरदान मिलता है। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है।

छठ महापर्व के पहले दिन में आज नहाय-खाय में लौकी की सब्जी, अरवा चावल, चने की दाल, आंवला की चासनी के सेवन का खास महत्व है। वैदिक मान्यता है कि इससे संतान प्राप्ति को लेकर व्रती पर छठी मैया की कृपा बरसती है। खरना के प्रसाद में ईख के कच्चे रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग, आंख की पीड़ा समाप्त हो जाते है। इसके प्रसाद से तेजस्विता, निरोगिता व बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है। मौसम में फास्फोरस की कमी होने के कारण शरीर में रोग (कफ, सर्दी, जुकाम) के लक्षण परिलक्षित होने लगते हैं।

प्रकृति में फास्फोरस सबसे ज्यादा गुड़ में पाया जाता है। जिस दिन से छठ शुरू होता है उसी दिन से गुड़ वाले पदार्थ का सेवन शुरू हो जाता है, खरना में चीनी की जगह गुड़ का ही प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही ईख, गागर एवं अन्य मौसमी फल प्रसाद के रूप प्रयोग किया जाता है। छठ पूजा को आत्म-अनुशासन, शुद्धता और भक्ति का पर्व माना जाता है। माना जाता है कि इस व्रत से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और सेहत की प्राप्ति होती है.

मान्यता है कि सूर्य देव और छठी मैया की आराधना से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और भक्तों को आत्मिक शांति का अनुभव होता है।

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