अवैध खनन का काला कारोबार
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में सरकार को नदियों, जंगलों और तमाम दूसरे स्थलों से अवैध खनन का वह सब कुछ दृश्य नजर नहीं आता, जिसकी शिकायत लगातार पर्यावरण प्रेमी और खनन स्थल के आसपास रहने वाले लोग करते रहते हैं। मोटर मार्गों के निर्माण कार्य में लगी जेसीबी मशीनें कई जगहों पर धड़ल्ले से अवैध खनन में लगी हुई हैं। मोटर मार्गों का निर्माण कार्य तो एक बहाना है। इससे जहां हर साल सरकार कोकरोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है, वहीं अवैध खनन के चलते पर्यावरण और हरे पेड़ों को भी हानि पहुंच रही है।मोटर मार्गों के निर्माण कार्य में बिना नंबर की ट्रैक्टर-ट्राली और जेसीबी मशीनों का उपयोग कियाजा रहा है।
इससे सरकार को राजस्व की हानि हो रही है। जेसीबी मशीनें धड़ल्ले से अवैध खनन में लगी हुई हैं। ऐसा नहीं है कि अधिकारियों को प्राकृतिक संपदा की इस लूट के बारे में मालूम नहीं है। बस, वे अपनी आंखें मूंदे हुए हैं। अगर किसी ओर से कोई दबाव पड़ता है, तो छोटे खनन माफियाओं पर मामूली कार्रवाई करके खानापूर्ति कर ली जाती है।
अवैध कारोबार रोकने के लिए शासन स्तर पर जिले से लेकर तहसील व थाना पर डटे अफसरों का ध्यान इन घाटों पर अवैध खनन रोकने के बजाय नजरअंदाज कर रहे हैं। खनन माफियाओं का हौसला बुलंद होकर दिन दुगुना चार चौगुना होता चला आ रहा है। लेकिन खनन माफिया पर कोई कार्रवाई नहीं होने से अवैध कारोबार पर लगाम नहीं लग रहा है । नदी में इन दिनों शासन की नियमावली व मानक को ताक पर रख कर अवैध घाटों का संचालन किया जा रहा है। खनन विभाग व उच्च अधिकारियों एवं स्थानीय पुलिस द्वारा आज तक इन क्षेत्रों में न तो जांच किया गया न कोई कार्रवाई की गई। थाना क्षेत्र में इस समय पहले से और ज्यादा जगहों में तेजी से अवैध खनन शुरू हो गया है।
शासन प्रशासन इसे देखकर भी नजरअंदाज किया जा रहा है।सत्यता यह है कि प्रशासन इस मामले में अवैध खनन माफियाओं के आगे नतमस्तक है। अवैध खनन के काले कारोबार ने उत्तराखण्ड राज्य के शहीदों और आंदोलनकारियों के सपनों को चकनाचूर किया है तथा भ्रष्टाचार ने उत्तराखण्ड के स्वर्णिम इतिहास को कलंकित करने का काम किया है। उन्होंने कहा कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि उत्तराखंड में अवैध खनन जुर्माना की 1386 करोड़ की वसूली सरकार नहीं कर पाई। इस रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि सरकारी एजेंसियों ने ही अवैध खनन कराया है तथा खनन विभाग,जिला कलेक्टर, पुलिस विभाग,वन विभाग,गढ़वाल मंडल विकास निगम जैसी संस्थाए अवैध खनन को रोकने और उसका पता लगाने में विफल रही हैं।
उत्तराखण्ड सरकार द्वारा 2 मई 2023 को उद्योग निदेशालय उत्तराखण्ड के निदेशक,भूतत्व एवं खनिकर्म इकाई द्वारा समस्त जिला खान अधिकारियों को प्रेषित आदेश में राज्य सरकार के द्वारा उच्च न्यायालय, नैनीताल द्वारा पारित रिट याचिका संख्या 169/2022 के आदेश के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली मे विशेष अनुज्ञा याचिका योजित करने का निर्णय लेने का उल्लेख किया गया है,जिसमें ऐसे नदी तल क्षेत्रों को चिन्हित करने का आदेश दिया गया है जिनमें ड्रेजिंग कार्य मशीनों द्वारा किया जाना हो। इससे पता चलता है कि सरकार की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है।
उन्होने कहा कि उत्तराखंड राज्य की नदियों में बड़े पैमाने पर अवैज्ञानिक और अनियमित मशीनीकृत रिवर बेड खनन गम्भीर चिंता का विषय है और इसे तत्काल रोका जाना चाहिए। लक्सर तहसील प्रशासन की नाक के नीचे अवैध खनन का खेल चल रहा है। लक्सर क्षेत्र में हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों के खनन माफिया इस क्षेत्र में रहकर खनन का काला कारोबार कर लंबे समय से अपना सिक्का जमा हुए हैं। यह खनन माफिया दिन-रात क्षेत्र में अवैध खनन कर राजस्व विभाग को अब तक लाखों रुपये का चूना लगा चुके हैं और तहसील प्रशासन पूरी तरह से मुक दर्शक बना हुआ है। यही कारण है कि अवैध खनन माफियाओं का हौसला बुलन्द होता जा रहा है। देखना यह है कि अवैध खनन माफियाओं पर शासन प्रशासन का अंकुश लग पाता है या नहीं?
(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)