अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है राज्य पक्षी मोनाल
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
हिमालय के मोर नाम से प्रसिद्ध मोनाल उत्तराखंड ही नहीं अपितु विश्व के सुन्दरतम पक्षियों में से एक है। यह उत्तराखण्ड का राज्य पक्षी व नेपाल का राष्ट्रीय पक्षी भी है। मोनाल को स्थानीय भाषा में ‘मन्याल’ व ‘मुनाल’ भी कहा जाता है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाला पक्षी मोनाल ‘लेफोफोरस इंपेजिनस’ है। मोनाल नर का रंग नीला भूरा होता है एवं सिर पर तार जैसी कलगी होती है। मादा भूरे रंग की होती है। यह भोजन की खोज में पंजों से भूमि अथवा बर्फ खोदता हुआ दिखाई देता है। कंद, तने, फल-फूल के बीज तथा कीड़े-मकोड़े इसका भोजन है। मोनाल एक पहाड़ी पक्षी है और यह हिमालय के 8 से 15 हजार फिट की ऊँचाई पर पाया जाता है। मादा मोनाल एक बार में लगभग 6 अंडे देती है, जिन्हें लगभग चार हफ्ते सेकने के बाद उसमें से बच्चे निकलते हैं।
हिमालयन मोनाल एक उच्च ऊंचाई वाली प्रजाति है जो अफ़ग़ानिस्तान से भूटान, भारत और तिब्बत के माध्यम से हिमालय में पायी जा सकती है। गर्मियों के दौरान, ये तीतर, घास वाले इलाकों में घूमते हैं, लेकिन सर्दियों के महीने के दौरान, वे जंगली जगहों में शरण लेते हैं। बताया जाता है की एक समय में इसकी संख्या इतनी ज्यादा हुआ करती थी की यह सहज ही देखा जा सकता था लेकिन अब इनकी गणना दुर्लभ प्रजातियों में होती है। मोनाल को उत्तराखंड गठन के बाद वर्ष 2000 में राज्य पक्षी का दर्जा तो दिया गया, लेकिन इसके बाद इसे भुला दिया गया। हालांकि 2008 में इसके संरक्षण की ओर सरकार का ध्यान गया और राज्यपक्षी की गणना कराई गई, लेकिन इसके बाद से इस प्रजाति की गणना नहीं हुई। इन 10 वर्षों के दौरान मोनाल की संख्या में अप्रत्याशित कमी आई है। इसके पीछे जलवायु परिवर्तन, अवैध शिकार से लेकर मांसाहारी पक्षी तक वजह हैं।
राज्य पक्षी का दर्जा देने के बावजूद सरकार और वन विभाग ने इस पक्षी को बचाने के लिए किसी तरह की रुचि नहीं दिखाई। वन महकमे ने 2008 की गणना से सबक लेते हुए इसके बसेरों को विकसित करने का निर्णय जरूर लिया था लेकिन इस दिशा में अब तक कोई काम नहीं हुआ है।हिमालय की तलहटी में समुद्री सतह से 13 हजार फुट की ऊंचाई पर जिस जगह यह पक्षी अपना बसेरा बनाता है, वहां पर जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फबारी में कमी आ रही है। इसीलिए इस पक्षी की संख्या में गिरावट आई है। यदा कदा मोनाल के पीछे जब शिकारी बाज पड़ता है तो वह अपनी जान बचाने के लिए घाटियों की ओर बस्तियों की तरफ उड़ के आ जाता है। ये कभी कभार ही होता है जब शिकार अपनी जान शिकारी से बचा लेता है और खबर बन जाती है। ऐसे प्रकरण पहले भी घटित होते आए हैं लेकिन तब शिकारी बाज से अपनी जान बचाने बस्ती में मोनाल आ तो जाता थी लेकिन इंसान भी घर आए इस असहाय मोनाल को चट कर जाते थे।
यहां आपको बताते चलें कि आज भी इस राज्य पक्षी मोनाल का अवैध शिकार बदस्तूर जारी है। इसका मांस लोगों के बीच काफी प्रिय है। साथी मोनाल की तस्करी भी बड़ी मात्रा में की जाती है। इसकी खूबसूरती ही इसके जान की दुश्मन है। अमूमन शिकारी बाज से जान बचाना कोई बच्चों का खेल भी नहीं है। बच गया तो इंसान की दावत बन जाता है न बचे तो शिकारी बाज का शिकार तो होना ही है। हिमालयन मोनाल को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची एक के तहत रखा गया है। इसलिए, इसकी सुरक्षा के लिए बहुत अधिक ध्यान और देखभाल की आवश्यकता है। चिड़ियाघर राज्य पक्षी के अस्तित्व के लिए अनुकूल ऊंचाई पर स्थित है, डीएफओ, नैनीताल ने कहा। अपनी सुंदरता और पंख में सभी सात रंगों की मौजूदगी के कारण, नर मोनाल हमेशा शिकारियों और ग्रामीणों के निशाने पर रहा है। नर मोनालों के पंखों का उपयोग पारंपरिक पहाड़ी टोपियों में अधिकार के प्रतीक के रूप में किया जाता है।
मोनाल ‘खेल पक्षियों’ में से हैं (अवैध शिकार के लिए उपयोग किए जाते हैं) और पहाड़ियों में मुख्य रूप से भोजन और सजावट की वस्तुओं के लिए इनका शिकार किया जाता है।उच्च हिमालयी इलाकों में बर्फबारी होने के बाद ये पक्षी निचली घाटियों में आता है, जहां शिकारी मांस के लिए इसका शिकार करते हैं। अप्रैल में मोनाल वापस हिमालयी इलाकों में चले जाते हैं। पर यहां पर भी इनका शिकार हो रहा है। यारसा गंबू के दोहन के लिए आने वाले लोग मांस के लिए मोनाल को मार देते हैं। मोनाल के आवास में आए बदलाव पर विस्तृत अध्ययन की जरूरत है, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी इस खूबसूरत पक्षी को देख सकें। 2018 में राज्य में आयोजित होने वाले 38 वेे राष्ट्रीय खेल के लिए उत्तराखंड के राज्य पक्षी मोनाल को सीएम ने शुभंकर घोषित किया राज्य पक्षी मोनाल को दर्शाया गया है।
गणतंत्र दिवस 2024 उत्तराखंड के राज्य पक्षी मोनाल के झांकी के मध्य भाग में होम स्टे को प्रदर्शित किया गया। उतराखण्ड में मिश्रित वनों के संरक्षक और पर्यावरणविद, रक्षासूत्र आन्दोलन के प्रणेता और पर्यावरण के जानकार का मानना है कि पक्षियों का संसार इसलिये जिन्दा है कि यहाँ के लोग प्रकृति संरक्षण के प्रति संवेदनशील हैं। वे कहते हैं कि सरकार के हिमालय की प्राकृतिक सुन्दरता को व्यावसायिक रूप से दोहन करने की नीति संकट को बढ़ा दिया है। इसीलिये पक्षी प्रेमियों को राज्य के लोगों के साथ जल, जंगल, जमीन के आन्दोलनों में सरीक होना पड़ेगा। उनका यह भी मानना है कि पक्षी, स्वच्छता के अवैतनिक कार्यकर्ता हैं इसलिये उनका जीवित रहना अति आवश्यक है। मोनाल को सुरखाब नाम से भी जाना जाता है। सुरखाब के पर वाली कहावत इसी पक्षी पर आधारित है।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )