सुमित्रानंदन पंत: करते मधु के वन में गुंजन
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखण्ड में कुमायूँ की पहाड़ियों पर बसे कौसानी गांव में, जहाँ उनका बचपन बीता था, वहां का उनका घर आज ‘सुमित्रा नंदन पंत साहित्यिक वीथिका’ नामक संग्रहालय बन चुका है। इस में उनके कपड़े, चश्मा, कलम आदि व्यक्तिगत वस्तुएं सुरक्षित रखी गई हैं। संग्रहालय में उनको मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रशस्तिपत्र, हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा मिला साहित्य वाचस्पति का प्रशस्तिपत्र भी मौजूद है। साथ ही उनकी रचनाएं लोकायतन, आस्था आदि कविता संग्रह की पांडुलिपियां भी सुरक्षित रखी हैं। कालाकांकर के कुंवर सुरेश सिंह और हरिवंश राय बच्चन से किये गये उनके पत्र व्यवहार की प्रतिलिपियां भी यहां मौजूद हैं।
संग्रहालय में उनकी स्मृति में प्रत्येक वर्ष पंत व्याख्यान माला का आयोजन होता है। यहाँ से ‘सुमित्रानंदन पंत व्यक्तित्व और कृतित्व’ नामक पुस्तक भी प्रकाशित की गई है। उनके नाम पर इलाहाबाद शहर में स्थित हाथी पार्क का नाम ‘सुमित्रानंदन पंत बाल उद्यान’ कर दिया गया है।हिन्दी भाषा के सर्वश्रेष्ठ ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित महान हिन्दी कवि पंत की प्रारंभिक शिक्षा कौसानी गांव के एक स्कूल में हुई उसके बाद वह वाराणसी आ गए और जयनारायण हाई स्कूल से अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की। सुमित्रानंदन पंत ने म्योर सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया लेकिन इंटरमीडिएट की परीक्षा से पहले ही 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। असहयोग आन्दोलन के समय महात्मा गांधी के सम्मुख शिक्षा-संस्थान छोड़ने की प्रतिज्ञा करने के कारण फिर पंत ने विधिवत शिक्षा ग्रहण नहीं की, लेकिन साहित्य की ओर उनका रुझान लगातार रहा। उन्होंने अनेक विषयों का और विशेषकर साहित्य का गम्भीर अध्ययन किया।
सुमित्रानंदन पंत आधुनिक हिन्दी साहित्य के एक युग प्रवर्तक कवि हैं, जिन्होंने भाषा को निखार और संस्कार देने के अलावा उसके प्रभाव को भी सामने लाने का प्रयत्न किया। उन्होंने भाषा से जुड़े नवीन विचारों के प्रति भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया। सुमित्रानंदन पंत को मुख्यत: प्रकृति का कवि माना जाने लगा, लेकिन वास्तव में वह मानव-सौंदर्य और आध्यात्मिक चेतना के भी कुशल कवि थे। अपनी रचनाओं में उन्होंने किसी आध्यात्मिक या दार्शनिक सत्य को स्थान ना देकर व्यापक मानवीय सांस्कृतिक तत्त्व को अभिव्यक्ति देने की कोशिश की। महात्मा गांधी, कार्ल मार्क्स और अनेक विकासवादी-आशावादी दार्शनिकों से प्रभावित और प्रेरित सुमित्रानंदन पंत एक सर्वसमन्वयवादी, लोक-पक्षधर दृष्टि रखते थे।
कहा जाता है कि अपने समकालीन हिन्दी कवियों की तुलना में पंत अधिक पंथ-निरपेक्ष थे। वीणा (1919), ग्रंथि (1920), पल्लव (1926), गुंजन (1932), युगांत (1937), युगवाणी (1938), ग्राम्या (1940), स्वर्णकिरण (1947), स्वर्णधूलि (1947), युगांतर (1948), उत्तरा (1949), युगपथ (1949), चिदंबरा (1958), कला और बूढ़ा चांद (1959), लोकायतन (1964), गीतहंस (1969)। महात्मा गांधी के प्रभाव में आकर वह पूरी तरह गांधीवादी हो गए थे। पंत ने गांधी की अगुवाई में चले असहयोग आंदोलन में सक्रिय योगदान दिया और इसका खामियाजा भी भुगता। हालात यहां तक आ गए कि उन्हें अल्मोड़ा की अपनी जायदाद बेचनी पड़ी।आर्थिक बदहाली के चलते उनकी शादी नहीं हुई।ताउम्र अविवाहित रहे। नारी उनके समूचे काव्य में विविध रूपों–मां,पत्नी, प्रेमिका और सखी–मैं मौजूद है। नारीत्व उनके वजूद-व्यवहार का स्थायी हिस्सा था।
महाकवि सुमित्रानंदन पन्त का महाकाव्य लोकायतन उनकी विचारधारा और लोक-जीवन के प्रति उनकी सोच को दर्शाता है। इस रचना के लिए पंत को सोवियत रूस तथा उत्तर- प्रदेश सरकार से पुरस्कार भी मिला था। सुमित्रानंदन पंत को पद्म भूषण (1961) और ज्ञानपीठ पुरस्कार (1968) से सम्मानित किया गया। अपनी रचना बूढ़ा चांद के लिए सुमित्रानंदन को साहित्य अकादमी पुरस्कार, लोकायतन पर सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार और चिदंबरा पर इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। 28 दिसम्बर, 1977 को इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में सुमित्रानंदन पंत का देहांत हो गया। उनकी मृत्यु के पश्चात उत्तराखंड राज्य के कौसानी में महाकवि की जन्म स्थली को सरकारी तौर पर अधिग्रहीत कर उनके नाम पर एक राजकीय संग्रहालय बनाया गया है।
छायावादी स्तंभ कवि सुमित्रानंदन पंत छायावाद के चार प्रमुख हस्ताक्षरों में से सिरमौर थे। सौंदर्य के अप्रतीम कवि। प्रकृति उनके विशाल शब्द -संसार की आत्मा है एक, भारत में जब टेलीविजन प्रसारण शुरू हुआ तो उसका भारतीय नामकरण दूरदर्शन पंत ने किया था। दूसरा, सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का नामकरण भी उन्होंने किया था। हरिवंश राय बच्चन उनके सबसे करीबी और अच्छे दोस्तों में शुमार थे। अमिताभ आज भी सुमित्रानंदन पंत को पिता तुल्य मानते हैं। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि पंत की एक-एक काव्य पंक्ति उन्होंने पढ़ी है और कभी-कभी वह उन्हें अपने पिता (बच्चन जी) से बड़े कवि लगते हैं। 28 दिसंबर, 1977 को घातक दिल के दौरे से हुआ। तब अंग्रेजी-हिंदी के तमाम बड़े अखबारों ने उनके अवसान पर संपादकीय लिखे थे।
डॉ हरिवंश राय बच्चन का कथन था कि सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु से छायावाद के एक युग का अंत हो गया है। 2015 को उनकी पुण्यतिथि उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप च्स्मारक डाक टिकटज्जारी किया था।
लेखक उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर कार्य कर चुके हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।