आखिर बिना सेफ्टी ऑडिट के कैसे निर्मित हो रही हैं उत्तराखंड में सुरंगें?
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
चारधाम रोड परियोजना की टनल में भू धंसाव से फंसे श्रमिकों को बचाने की जद्दोजहद जारी है समय रहते संवेदनशील हिस्से का स्थायी उपचार किया जाता तो शायद आज सुरंग के अंदर 40 मजदूर नहीं फंसते। यमुनोत्री हाईवे पर निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में मलबा गिरने की यह कोई पहली घटना नहीं है। इसी संवेदनशील हिस्से में पूर्व में भी कई बार मलबा गिर चुका है। इसका स्थायी उपचार सुरंग आरपार करने के बाद किया जाना था। चारधाम सड़क परियोजना के तहत सिलक्यारा से पोलगांव के बीच करीब 4.5 किमी लंबी सुरंग बनाई जा रही है। बीते रविवार को सुरंग के सिलक्यारा वाले मुहाने से करीब 230 मीटर अंदर 35 मीटर हिस्से में भारी भूस्खलन हुआ जिसका मलबा करीब 60 मीटर दायरे में फैलने से सुरंग बंद हो गई। इससे सुरंग में काम कर रहे 40 मजदूर फंस गए।निर्माण कार्य से जुड़े मजदूरों ने बताया कि जिस जगह भूस्खलन हुआ है वह सुरंग का काफी संवेदनशील हिस्सा है।
पहले भी कई बार उक्त जगह पर मलबा गिरा है। यहां सुरक्षा के लिए इंतजाम किए गए थे लेकिन स्थायी उपचार सुरंग के आरपार करने के बाद किया जाना था। बताया कि यदि इस हिस्से का स्थायी उपचार करते हुए आगे निर्माण किया गया होता तो इस तरह की घटना नहीं होती। प्रख्यात पर्यावरणविद् ने कहा कि अगर पारिस्थितिक चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया गया तो उत्तरकाशी के सिल्क्यारा में चार धाम मार्ग पर एक निर्माणाधीन सुरंग के आंशिक रूप से ढहने जैसी भयावह घटनाएं होती रहेंगी। चोपड़ा ने पिछले साल ‘चारधाम ऑल वेदर रोड’ पर सुप्रीम कोट द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने समिति के अधिकार क्षेत्र को परियोजना के केवल दो गैर-रक्षा’ हिस्सों तक सीमित करने संबंधी शीर्ष अदालत के आदेश पर निराशा व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था कि आधुनिक तकनीकी हथियारों से युक्त इंजीनियर हिमालय पर हमला कर रहे हैं अपने पत्र में उन्होंने यह भी कहा था कि समिति की भूमिका परियोजना के ‘गैर रक्षा’ राजमार्गों तक सीमित कर दी गयी है।
चारधाम यात्रा मार्ग पर उत्तरकाशी में सिलक्यारा-डंडालगांव के बीच निर्माणाधीन सुरंग के एक हिस्से के ढहने से उसके अंदर ४० श्रमिकों के फंसने के एक दिन बाद चोपड़ा ने कहा कि अगर पारिस्थितिकीय चिंताओं को दूर नहीं किया गया तो ऐसी भयावह घटनाएं होती रहेंगी। ‘चारधाम ऑल वेदर रोड’के निर्माण खासतौर से सड़कों को चौड़ीकरण के लिए अपनाए जा रहे तरीकों पर अन्य विशेषज्ञ भी नाखुश हैं। राज्य योजना आयोग के पूर्व सलाहकार हर्षपति उनियाल ने कहा, उत्तराखंड के लिए ये ऑल वेदर सड़कें खास तौर से उनके चौड़ीकरण के लिए उपयोग में लाई जा रही गलत तकनीकों के कारण एक त्रासदी बन गई हैं। नदी घाटी संरेखण को सुरक्षित नहीं माना जा सकता। अगर आप ढलानों को छेड़ेंगे तो भूस्खलन जैसी आपदाएं अवश्यंभावी हैं। उत्तराखंड गठन के पहले दशक में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बहुत कम थी। वर्ष 2002 में टिहरी जिले के घनसाली क्षेत्र में बादल फटने की एक घटना में 36 व्यक्तियों की मृत्यु हई थी, जबकि 2003 में उत्तरकाशी शहर में वरूणावर्त पहाड़ से हुए भूस्खलन ने भारी तबाही मचाई थी।
2010 के बाद प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में बहुत इजाफा हुआ और उसके बाद 2013 में आई केदारनाथ आपदा ने तो मौत और तबाही की विनाश लीला दिखाई। मानसून के दौरान तो प्रदेश में छोटी- बड़ी आपदाएं जब-तब आती रहती हैं। इस साल भी मानसून के दौरान भारी बारिश और उसके कारण आई आपदाओं ने जमकर कहर बरपाया। इस दौरान केदारनाथ और बदरीनाथ राजमार्गों पर दरारें भी आईं जिनके कारण यातायात भी बाधित रहा। चारधाम ऑल वेदर सड़क परियोजना को भी गढ़वाल क्षेत्र में कई जगह नुकसान हुआ। मुख्यमंत्री के अनुसार, इस मानसून में प्रदेश में करीब 1000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इसरो द्वारा पेश किए गए भूस्खलन-क्षेत्र मानचित्र में रूद्रप्रयाग जिले को आपदाओं की दृष्टि से बहुत संवेदनशील दर्शाया गया है। लेकिन सरकार ने इन्हें कम करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाए हैं।
केदारनाथ धाम रूद्रप्रयाग जिले में है। साल की शुरुआत में जोशीमठ में भूधंसाव का मामला भी सामने आया था, जहां कुछ निवासियों ने इस समस्या के लिए एनटीपीसी की 520 मेगावाट तपोवन विष्णुगाड पनबिजली परियोजना को जिम्मेदार ठहराया था। उनका कहना था कि इस शहर के पास से गुजर रही परियोजना की हेड रेस भूमिगत सुरंग के कारण शहर के भवनों और रास्तों में दरारें आयीं। इन मुददों को लेकर मुखर रहे सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि हिमालय की संवेदनशीलता को देखते हुए विकास परियोजनाओं को अनुमति दिए जाने से पहले उनकी हर पहलु से जांच की जानी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘जल्दबाजी में बेतरतीब विकास किया जाएगा, तो आपदाएं तो आएंगी हीं।’ उत्तराखंड के लिए ये ऑल वेदर सड़कें खास तौर से उनके चौड़ीकरण के लिए उपयोग में लाई जा रही गलत तकनीकों के कारण एक त्रासदी बन गई हैं। नदी घाटी संरेखण को सुरक्षित नहीं माना जा सकता। अगर आप ढलानों को छेड़ेंगे तो भूस्खलन जैसी आपदाएं अवश्यंभावी हैं।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हम लगातार हिमालय पर हमला कर रहे हैं। जिसकी वजह से भूस्खलन की घटनाएं बढ़ गई हैं। उत्तराखंड में निर्माणाधीन चार धाम परियोजना और अन्य सड़क निर्माण कार्यों की सुरक्षा मानकों को सवालों के घेरे में ला दिया है। इसको लेकर शासन भी उलझन में दिखाई दे रहा है। एक ओर निर्माण कार्यों में सुरक्षा की अनदेखी हो रही है तो दूसरी ओर यह तथ्य भी सामने आया है कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में निर्माण कार्य शुरू करने से पहले आवश्यक तकनीकी और भूगर्भीय सर्वे नहीं किया जा रहा है या फिर सुरंग निर्माण की गुणवत्ता को परखा नहीं जाता है, जिससे इस तरह की दुर्घटनाएं हो रही हैं सिलक्यारा टनल धंसने की घटना पर बताया कि कम्पनी ने सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं किये थे। इस मशीन को निकालने के लिए दूसरी टनल बनाई गई तो उसमें अवैज्ञानिक तरीके अपनाए गए।
बताया जाता है कि टनल के अवैज्ञानिक तरीके से निर्माण के कारण ही जोशीमठ दरकने लगा और जमीन धंसने लगी थी। इस घटना के बाद धामी सरकार ने हिमालय क्षेत्र के सभी शहरों की कैरिंग कैपेसिटी की जांच के आदेश दिये थे, लेकिन भूस्खलन के लिए जिम्मेदार सबसे बड़ी वजह यानी टनल निर्माण को लेकर किसी तरह के जांच की बात नहीं की गई। सरकार के पास इसका भी आकड़ा नहीं है कि टनल के निर्माण से पहले संबंधित क्षेत्र का सेफ्टी ऑडिट होता है या नहीं। हिमालय के पहाड़ कच्चे हैं और यहां मामूली भूगर्भीय हलचल भी भूस्खलन पैदा कर सकता है। इस कारण टनल जैसे निर्माण कार्यों से पहले यह जांचना जरूरी होता है कि संबंधित क्षेत्र की भूगर्भीय संरचना टनल के निर्माण के लायक है या नहीं। यदि विपक्ष के आरोपों को नजरअंदाज भी कर दिया जाए तो यह सच है कि उत्तराखंड में सुरंगों के लगातार धंसने की घटनाएं हो रही हैं। इसी वर्ष जनवरी में जब जोशीमठ के धंसने का मामला सामने आया तो तपोवन विष्णुगाड पावर प्रोजेक्ट के लिए निर्माणाधीन टनल को इसका जिम्मेदार माना गया। दरअसल, इस टनल में बोरिंग किया गया है। जांच में सब कुछ साफ हो जाएगा।
कुल मिलाकर यदि टनल के निर्माण के साथ ही ह्यूम पाइप भी साथ चलती है। यदि भूस्खलन जैसी कोई स्थिति पैदा होती है तो मजदूर उसके माध्यम से सुरक्षित बाहर निकल जाते हैं। उन्होंने कम्पनी पर आरोप लगाया है कि मजदूरों की सुरक्षा की अनदेखी की गई है। आपदा प्रबंधन सचिव ने भी माना है कि सेफ्टी ऑडिट जरूर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि चारधाम परियोजना से जुड़े निर्माण कार्यों में ऐसा हुआ है या नहीं, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। जहां तक यमुनोत्री मार्ग पर सुरंग धंसने का मामला है तो इसके लिए तकनीकी समिति को मौके पर भेजा गया है।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )