नशा मुक्ति केंद्रों में अव्यवस्थाओं का अंबार
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
प्रदेश में नौजवानों में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति पर चिंता जताते हुए मुख्यमंत्री ने दो नशा मुक्ति केंद्र खोलने की घोषणा की है। ये केंद्र सरकारी की निगरानी में चलेंगे। वर्तमान में हर जिले में बड़ी संख्या में नशा मुक्ति केंद्र तो खुले हुए हैं, लेकिन इनका नियंत्रण अभी किसी भी विभाग के पास नहीं हैं। मनमाने ढंग से खोले गए नशा मुक्ति केंद्रों में मारपीट, दुष्कर्म व नशे के साधनों की आपूर्ति जैसी घटनाएं बढ़ी हैं। पिछले तीन महीनों की ही बात करें तो राजधानी दून के एक नशा मुक्ति केंद्र में युवती के साथ दुष्कर्म व एक नशा मुक्ति केंद्र में युवक की मौत का मामला सामने आ चुका है। वहीं, कई नशा मुक्ति केंद्र ऐसे हैं, जहां पर नशा छोड़ने के लिए आने वाले युवक- युवतियों के साथ गलत व्यवहार किया किया गया। जिसके कारण वह अपनी जान जोखिम में डालकर केंद्र से ही फरार होने को विवश हो गए।
अधिकतर नशा मुक्ति केंद्र नियमों का पालन नहीं करते, लेकिन इसके बावजूद इन पर कोई भी विभाग शिकंजा नहीं कस पा रहा है। पुलिस, जिला प्रशासन, समाज कल्याण विभाग और स्वास्थ्य विभाग केंद्रों की जिम्मेदारी अब तक एक दूसरे पर डाल रहे हैं। अब मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुरूप सरकारी स्तर पर देहरादून व हल्द्वानी में खोले जाने वाले नशा मुक्ति केंद्र पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में रहेंगे। इनके माध्यम से नशा मुक्ति केंद्रों की गाइडलाइन भी स्पष्ट हो पाएगी और निजी नशामुक्ति केंद्रों के लिए भी मानक तय हो पाएंगे। पिछले तीन महीनों की ही बात करें तो राजधानी दून के एक नशा मुक्ति केंद्र में युवती के साथ दुष्कर्म व एक नशा मुक्ति केंद्र में युवक की मौत का मामला सामने आ चुका है।
वहीं, कई नशा मुक्ति केंद्र ऐसे हैं, जहां पर नशा छोड़ने के लिए आने वाले युवक-युवतियों के साथ गलत व्यवहार किया किया गया। जिसके कारण वह अपनी जान जोखिम में डालकर केंद्र से ही फरार होने को विवश हो गए। ये केंद्र सरकारी की निगरानी में चलेंगे। वर्तमान में हर जिले में बड़ी संख्या में नशा मुक्ति केंद्र तो खुले हुए हैं, लेकिन इनका नियंत्रण अभी किसी भी विभाग के पास नहीं हैं। मनमाने ढंग से खोले गए नशा मुक्ति केंद्रों में मारपीट, दुष्कर्म व नशे के साधनों की आपूर्ति जैसी घटनाएं बढ़ी हैं। विडंबना यह है कि राज्य गठन के21 साल बाद भी सरकार ने इन नशा मुक्ति केंद्रों के पंजीकरण और लाइसेंस की व्यवस्था तक नहीं की। निदेशक समाज कल्याण कहते हैं,नशे के खिलाफ जन जागरूकता को लेकर एक विस्तृत कार्ययोजना तैयार की गई है, जिसमें नशामुक्ति केंद्रों के लाइसेंस का प्रावधान रखा गया है। यह तथ्य भी सामने आया है कि प्रदेश में जहां तहां चल रहे नशामुक्ति केंद्रों के बारे में नशा विरोधी अभियान की नोडल एजेंसी समाज कल्याण विभाग को कोई जानकारी नहीं है।
विभागीय रिकार्ड के हिसाब से प्रदेश में नैनीताल, हरिद्वार, पिथौरागढ़ व चमोली में चार नशा मुक्ति केंद्र संचालित हो रहे हैं और इन सभी के संचालक गैर सरकारी संगठन हैं। यह जानकारी भी विभाग के पास इसलिए उपलब्ध है, क्योंकि इन चारों संगठनों को केंद्रीय अनुदान लेने की प्रक्रिया पूरी करने के लिए विभाग से संस्तुति करानी होती है। एनजीओ और निजी क्षेत्र द्वारा संचालित केंद्रों के अपने नियम कायदे हैं। चूंकि इन पर निगाह रखने के लिए सरकार का कोई प्रभावी तंत्र नहीं है, लिहाजा इनके भीतर चल रही गतिविधियों को लेकर उठने वाले सवालों के जवाब भी नहीं मिल पाते हैं। उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन की पहल पर उत्तराखंड राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने राज्य में नशे के बढ़ते चलन के खिलाफ ‘संकल्प नशामुक्त देवभूमि अभियान’ के तहत व्यापक स्तर पर कार्यक्रम चलाए हैं। इसके तहत सभी 13 जिलों में जिलों और तहसील स्तर पर समितियों का गठन किया गया है। ये समितियां नशे के आदी बच्चों के इलाज, काउंसलिंग, पुनर्वास सहित भांग, डोडा इत्यादि की खेती और दुकानों में प्रतिबंधित नशे की दवाओं की बिक्री पर अंकुश लगाने सहित कई कार्य करा रही हैं।
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की पहल और दिशा-निर्देश में यह कार्यक्रम चल रहा है। इसकी शुरुआत सितंबर में देहरादून में की गई, जहां मुख्य न्यायाधीश एवं हाईकोर्ट के अन्य न्यायाधीशों सहित प्रदेश के मुख्य सचिव, डीजीपी और वरिष्ठ अधिकारियों ने इसे लांच किया था। इसके तहत सभी जिलों में जिला एवं तहसील स्तर पर स्पेशल टीम गठित की गईं हैं, जिनमें न्यायिक अधिकारियों सहित तहसीलदार, पुलिस इंस्पेक्टर, एसडीएम, पैरा लीगल वॉलेंटियर्स, एनजीओ आदि शामिल हैं। राजधानी की गली-गली में खुले नशामुक्ति केंद्रों में नशा करने वालों की भरमार है। दून के करीब 35-40 नशा मुक्ति केंद्रों में दो से ढाई हजार मरीज भर्ती हैं। इनमें 50 प्रतिशत मरीज स्मैक की लत के शिकार हैं।20 प्रतिशत शराब के आदी है। वहीं, 30 प्रतिशत मरीज अन्य नशे का सेवन करते हैं। दून में नशे करने वाले लोगों की तादात कम नहीं है।
दून में 35-40 नशा मुक्ति केंद्र खुले हैं। इन केंद्रों के लिए प्रदेश सरकार की ओर से कोई गाइडलाइन नहीं बनाई है। इसलिए नशे की लत के आदी लोगों के परिजनों से इन केंद्रों पर मनमाफिक फीस वसूली जाती है। यहां पांच माह के कोर्स की एवज में 50 से 60 हजार रुपये वसूले जाते है। यह चिंता का विषय है कि दून में नशा मुक्ति केंद्रों में भर्ती 50 प्रतिशत लोग स्मैक के आदि है। इसके अलावा 30 प्रतिशत लोग दवाई, कैप्सूल आदि नशे का सेवन करते है। वहीं, 20 प्रतिशत लोग इनमें शराब के आदि है। सूत्रों की माने तो देहरादून के नशा मुक्ति केंद्रों में दो से ढाई हजार मरीज भर्ती है।
स्वास्थ्य विभाग या जिला प्रशासन के पास इनका कोई प्रमाणिक आंकड़ा नहीं है। क्योंकि इन केंद्रों के लिए कोई गाइडलाइन नहीं बनी है। इनमें से कई केंद्र सामाजिक संस्थाओं के नाम पर चलते हैं। विगत दिनों नशा मुक्ति केंद्रों पर मरीजों के साथ उत्पीड़न की बात सामने आने के बाद सरकार ने पंजाब की तर्ज पर प्रदेश में नशा विरोधी नीति बनाने की कवायद शुरू की थी। इसमें नशा मुक्ति केंद्रों को स्वास्थ्य विभाग के अंडर में संचालन करने की योजना थी। जिसके लिए एक स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया गया था। जो पंजाब से समन्वय स्थापित कर नशा विरोधी नीति का प्रस्ताव बनाएगी। सरकार की इस कवायद का अभी कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया है।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )