खूबसूरत पहाड़ पर गंदगी का दाग
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हमेशा स्वच्छता पर ज़ोर देते रहे। बापू का एक ही सपना था कि ‘स्वच्छ हो भारत अपना।’ वर्तमान की केंद्र सरकार भी ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के तहत राष्ट्रपिता के इस ख्वाब को आगे बढ़ाते हुए स्वच्छता पर विशेष ज़ोर देती रही है। इसके बावजूद देश के कई ऐसे इलाके हैं, जहां स्वच्छता दम तोड़ती नज़र आती है। चिंता की बात यह है कि आज गंदगी से न केवल मैदानी इलाके बल्कि पर्वतीय क्षेत्र भी अछूते नहीं हैं। पहाड़, जिसे साफ़ वातावरण के लिए जाना जाता था, आज वहां कचरे के ढेर ने जगह ले ली है। जिसमें 80 प्रतिशत गंदगी प्लास्टिक की है, जो पर्यावरण की दृष्टि में सबसे अधिक घातक है।
पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के गंगोत्री से नामिक व पिंडारी ग्लेशियर तक बढ़ते प्लास्टिक के ढेर न केवल दूषित वातावरण बल्कि बढ़ते तापमान के लिए भी जिम्मेदार हैं। इसके चलते पर्वतों से निकलने वाली अधिकांश नदियों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। कभी जो नदियाँ उफानों पर रहा करती थीं, वह आज सूख के सिमटने लगी हैं। इन बातों को ध्यान में रखते हुए लोगों में प्लास्टिक के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस की थीम ‘बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन’ भी रखा गया था।
पर्यटन किसी भी राज्य के राजस्व के साथ आजीविका का संसाधन भी होता है, लेकिन इसकी वजह से पर्वतीय क्षेत्रों में कूड़े का ढेर भी काफी अधिक देखने को मिल रहा है। आज पर्यटक पहाड़ों पर मौज-मस्ती करने आते हैं, जिसमें जंगलों का प्रयोग सबसे अधिक किया जा रहा है। इस दौरान सारा कूड़ा, पानी-शराब की बोतलें, प्लास्टिक इत्यादि कचरे को वहीं फेंक दिया जाता है, जो आस-पास के पारिस्थितिक तंत्र, नदियों और नालों में जमा हो रहा है। उत्तरकाशी में गोविन्द पशु विहार वन्यजीव अभयारण्य में आने वाले 5000 से अधिक परिवार के साथ पर्यटकों के द्वारा प्रतिमाह 15 मिट्रिक टन से अधिक सूखा कूड़ा उत्पन्न किया जाता है। इसके अतिरिक्त गांव-गांव तक प्लास्टिक पहुंच गया है, लेकिन प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट एक्ट 2013 में उपलब्ध कराई गई व्यवस्था के तहत गांवों मे इसका निस्तारण नहीं हो पा रहा है। फिलहाल, तैयार कार्य योजना के तहत कचरे को एकत्रीकरण कर उसे रोड हेड तक पहुँचाया जाएगा।
राज्य की 7791 ग्राम सभाओं को प्लास्टिक मुक्त किया जाएगा, जिसके लिए राज्य में उत्तराखंड प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट 2013 लागू किया गया है। उत्तराखण्ड प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट योजना तभी संभव है, जब लोग स्वयं पर्यावरण के प्रति गंभीर और जागरूक हों। फिर समाज को इसके प्रति जागरूक किया जाना चाहिए। सिर्फ कूड़ेदान लगाना या वितरित करने से कार्य नहीं चलेगा। इनका प्रयोग व कूड़े का निस्तारण आवश्यक है, वरन् एक ढेर को हटाकर कहीं दूसरी जगह ढेर बनाना व्यर्थ है। ‘दरअसल, पहाड़ों में लगाये गये कूड़ेदान आज भी उतने ही साफ दिखायी दे रहे हैं, जितने लगाते समय थे। मनुष्य को भी स्वच्छता व स्वास्थ्य के प्रति गंभीर होने की जरूरत है। पॉलिथीन मिट्टी में अघुलनशील होती जो भूमि की उर्वरक क्षमता को कम कर पैदावार में प्रभाव डालती है। अज्ञानतावश इसको जानवर भी खा जाते हैं, जो बहुत ही खतरनाक और शोचनीय विषय है।
सरकार द्वारा पहाड़ को पॉलिथीन मुक्त किये जाने हेतु जुर्माना व्यवस्था लागू की गयी है, पर यह क्या सिर्फ फुटपाथ पर बेचने वाले दुकानदारों पर लागू करना सही है? यदि वास्तव में पहाड़ को पॉलिथीन मुक्त बनाना है, तो पहले उन कंपनियों पर अंकुश लगाने की जरूरत है, जहां यह यह बनायी जाती है, क्योंकि बाजार में आने वाली अधिकांश खाद्य सामग्री पॉलिथीन में पैक होती है। हालांकि, अब प्लास्टिक को रिसायकल कर पुनः उपयोग में लाए जाने की प्रक्रिया भी तेज़ी से शुरू हो गई है। देश के कई शहरों में प्लास्टिक को रिसायकल कर उसका उपयोग किया जाने लगा है।
उत्तराखंड में भी इसी प्रक्रिया के तहत कुछ कंपनियों द्वारा बैठने वाली कुर्सियों का निर्माण किया जा रहा है, जो काफी सुंदर और आकर्षक हैं। इस प्रकार की कम्पनी को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इसके अलावा कई सामाजिक संगठन भी अपने स्तर पर क्षेत्र को प्लास्टिक मुक्त बनाने और स्वछता पर तेज़ी से कार्य कर रहे हैं। जिसके तहत शहर व आस-पास के कूड़े को एकत्रित कर उसके सही निस्तारण पर कार्य कर स्वच्छ भारत मिशन में अपना बहुमूल्य योगदान दिया जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सरकार की ओर से स्वच्छता के संबंध में योजनाएं चलाई जा रही हैं। लेकिन वह धरातल पर तभी सफल हो सकेंगी, जब उसके निस्तारण के लिए ठोस प्लान हो अन्यथा कूड़े के ढेर में वृद्धि होती रहेगी और जल्द ही पहाड़ भी कूड़े के ढेर में तब्दील हो जायेगा।
हिमालय क्षेत्र से प्रतिवर्ष 8.4 मिलीयन मेट्रिक टन कूड़ा उत्पन्न होता है लेकिन इनमें सुधार की जरूरत काफी कम लोगों को दिखाई देती है और ऐसे लोग जो पहाड़ों पर गंदगी कल आकर जाते हैं उन्हें भी अपने आप में कुछ सीख लेनी चाहिए। एक रिपोर्ट के मुताबिक मनुष्य के फेंके प्लास्टिक कचरे से हर साल पानी में रहने वाले 10करोड़ से अधिक जीव मारे जाते हैं। बड़े आकार के समुद्री जीव अक्सर इस कचरे को शिकार समझ निगल जाते हैं और दम घुटकर उनकी मौत हो जाती है। हाल ही में दो विडियो काफी वायरल हुए जिनमें एक में शार्क मछली और दूसरे में कछुआ प्लास्टिक के तार में बुरी तरह उलझे नज़र आ रहे हैं। बड़ी मशक्कत के बाद कुछ लोग उन्हें उससे आज़ाद करते हैं। हमारी लापरवाही की कीमत ये बेज़ुबान चुका रहे हैं।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )