कई मुकाम ईमानदारी और समर्पण की मिसाल रहे आडवाणी 

कई मुकाम ईमानदारी और समर्पण की मिसाल रहे आडवाणी 

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

8 नवंबर, 1927 को कराची में जन्मे आडवाणी 1998 से 2004  तक भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में गृह मामलों के मंत्री थे। उन्होंने 2002 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी के तहत उप प्रधानमंत्री के रूप में भी कार्य किया। आडवाणी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवक के रूप में की थी। 2015 में आडवाणी को भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उन्हें व्यापक रूप से महान बौद्धिक क्षमता, मजबूत सिद्धांतों और एक मजबूत और समृद्ध भारत के विचार के प्रति अटूट समर्थन वाले व्यक्ति के रूप में माना जाता है।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनके बारे में कहा था, “आडवाणी ने राष्ट्रवाद में अपने मूल विश्वास से कभी समझौता नहीं किया है, और फिर भी जब भी स्थिति की मांग हुई, उन्होंने राजनीतिक प्रतिक्रियाओं में लचीलापन दिखाया है।”भारतीय जनता पार्टी आज जिस सर्वोच्च स्थान पर है उस स्थान पर इस पार्टी को पहुंचाने में हज़ारों लाखों कार्यकर्ताओं की मेहनत शामिल है। लेकिन इन सब के बीच दो नाम जो सबसे महत्वपूर्ण हैं वो हैं अटल बिहारी वाजपेयी और पार्टी के ‘आयरन मैन’ कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी हर बार के लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी चुनाव का अहम मुद्दा राम मंदिर के इर्द-गिर्द ही घूम रहा है, अदालत ने इस मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थों की एक टीम भी गठित कर दी हैलेकिन यह पहली बार नहीं है जब मंदिर मस्जिद विवाद को सुलझाने के लिए इस तरह की बात की गई हो।

वीपी सिंह जब प्रधानमंत्री थे तब भी मध्यस्थों के ज़रिए इस मामले को सुलझाने के प्रयास किए गए थे। बस फर्क इतना था कि उस समय मोदी और शाह की जोड़ी नहीं आडवाणी और वाजपेयी की जोड़ी हुआ करती थी। वो पाकिस्तान में पैदा हुए लेकिन उनका दिल आज भी भारत के लिए धड़कता है। अच्छे लेखक हैं, पत्रकारिता उनका पेशा था। राम मंदिर आंदोलन के अगुवा थे आज मंदिर बन रहा है वे एक कुशल राजनेता हैं। भ्रष्टाचार का आरोप लगा तो लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और घोषणा कर दी जब तक दाग नहीं धुलेगा चुनाव नहीं लड़ूंगा। वे आज भी कई के आदर्श हैं। इसके साथ ही छह बार जिताकर लोकसभा में भेजने और प्यार व समर्थन देने के लिए गांधीनगर के लोगों का आभार जताया है।आडवाणी के अनुसार उन्हें अपने राजनीतिक जीवन में दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी और कई अन्य महान, प्रेरणादायक व दिग्गजों के साथ काम करने का सौभाग्य मिला।

इस दौरान उनका मार्गदर्शक सिद्धांत पहले देश, उसके बाद पार्टी और सबसे अंत में अपने बारे में सोचना रहा है। उन्होंने कहा कि भाजपा हमेशा मीडिया सहित सभी लोकतांत्रिक संस्थानों की स्वतंत्रता, अखंडता, निष्पक्षता और मजबूती की मांग करने में सबसे आगे रही है। यही कारण है कि चुनावी सुधार, राजनीतिक व चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता भाजपा के लिए प्राथमिकता में रही है। आडवाणी ने बताया कि भाजपा ने अपनी स्थापना के बाद से ही कभी भी राजनीतिक रूप से अलग विचार रखने वालों को अपना दुश्मन नहीं माना। इसी तरह राष्ट्रवाद की अवधारणा में हमने कभी भी अपने राजनीति विरोधियों को देश विरोधी नहीं माना।भाजपा ने हमेशा हर नागरिक की व्यक्तिगत आजादी का सम्मान किया है और इसका राजनीति में ख्याल रखा है।

चुनाव को लोकतंत्र का त्योहार बताते हुए आडवाणी ने कहा कि इस अवसर पर लोकतांत्रिक प्रणाली से जुड़े सभी पक्षों, राजनीतिक दलों, चुनाव से जुड़ी संस्थाओं और सबसे ऊपर मतदाताओं को आत्मचिंतन करने की जरूरत है। आडवाणी ने कहा कि 90 के दशक के अंत से ही पार्टी ने अच्छी सरकार के लिए वोट मांगा और उसे सत्ता मिली भी। उन्होंने कहा कि बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार ने गुड गवर्नेंस लोगों को दिया। अब, पार्टी का लक्ष्य भारत को 21वीं शताब्दी में सबसे ताकतवर देश बनाने का है। स्वतंत्र होने के बाद, लाल कृष्ण अडवाणी और उनका परिवार विभाजन के बाद भारत आया। भारतीय राजनीति में लगभग 60 वर्षों तक अपना योगदान देने वाले,भारत के तीन बार के उपप्रधानमंत्री रहने वाले लाल कृष्ण अडवाणी द्वारा लिखी गईं पुस्तकों से प्रेरणा पा सकते हैं। यह भाजपा के पुरोधा की ख्वाहिशों का अंत था या फिर पार्टी की रणनीति का हिस्सा, इसका पता करना तो मुश्किल है, लेकिन गुरु द्रोण की नगरी देहरादून में में भाजपा के भीष्म व पूर्व उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी अकेले पड़ गए।

आडवाणी ने खुद भी कभी ऐसी सियासी तनहाई की उम्मीद नहीं की होगी। उनके करीब ढाई घंटे के दून प्रवास के दौरान पार्टी का कोई बड़ा नेता नहीं दिखा। शादी समारोह से जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर आगवानी व विदा करने केसमय भी प्रदेश भाजपा का कोई रथी महारथी नहीं आया।उत्तराखंड के निर्माण में लाल कृष्ण आडवाणी की बड़ी भूमिका थी। आज से पहले जब भी आडवाणी ने देवभूमि में कदम रखा, पूरी भाजपा अभिनंदन करने पहुंची, मगर आज कोई नहीं आया। रायवाला में चल रही भाजपा-आरएसएस की संयुक्त बैठक पार्टी के इस संस्थापक सदस्य से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई।आडवाणी ने पार्टी की आंतरिक राजनीति में पिछले दो सालों में इतने उतार चढ़ाव देखे, लेकिन मौजूदा समय में पार्टी के मार्गदर्शक की भूमिका में होना भी उन्हें सालता है।

बिहार चुनाव में हार केबाद उन्होंने समीक्षा को जरूरी बताते हुए हार के जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय करने को कहा तो पार्टी में भूचाल आ गया। इसके बाद स्थिति बदली और आडवाणी फिर खामोश हो गए। पार्टी को सींचकर वटवृक्ष बनाने वाले इस महारथी को गुरु द्रोण की नगरी देहरादून में आगमन पर कुछ पीड़ा जरूर हुई होगी, क्योंकि जिस शहर में नवनियुक्त महानगर के समारोह में दो पूर्व सीएम समेत तीन सांसद, नेता प्रतिपक्ष और तमाम नेता जुटे थे, लेकिन एक ही दिन बाद आडवाणी की आगवानी करने के लिए कोई नहीं आया। पार्टी के नेता आरएसएस की बैठक में होने का बहाना भले ही बना ले, लेकिन आडवाणी को भी भाजपा का भीष्म ऐसे ही नहीं कहा जाता।

अपने सतत परिश्रम और संघर्ष से पार्टी की विचारधारा को देश भर में विस्तारित कर सांस्कृतिक एकता के सूत्र में पिरोने वाले आदरणीय  लालकृष्ण आडवाणी को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ। राष्ट्र व संगठन को समर्पित आपके कार्य हम सभी कार्यकर्ताओं की प्रेरणा है। ईश्वर से आपके उत्तम स्वास्थ्य व सुदीर्घ जीवन के लिए प्रार्थना करता हूँ।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )