अवैध निर्माण से बन रहे नए डेंजर जोन
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड की सरोवर नगरी में अवैध निर्माण से नए डेंजर जोन बन रहे हैं। चार्टन लाज क्षेत्र में शनिवार को भरभराकर गिरे भवन और भूस्खलन के बाद अब प्रशासन की नजर बिल्डरों पर है। जो जिला विकास प्राधिकरण के दिशा निर्देशों को ताक पर रखकर संवेदनशील पहाड़ियों पर निर्माण कर रहे हैं। यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है। उत्तराखंड की सरोवर नगरी में अवैध निर्माण से नए डेंजर जोन बन रहे हैं। चार्टन लाज क्षेत्र में शनिवार को भरभराकर गिरे भवन और भूस्खलन के बाद अब प्रशासन की नजर बिल्डरों पर है। जो जिला विकास प्राधिकरण के दिशा निर्देशों को ताक पर रखकर संवेदनशील पहाड़ियों पर निर्माण कर रहे हैं। यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है।
भूगर्भीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील शहर में ब्रिटिशकाल में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी तो निर्माण सहित शहर को सुरक्षित व खूबसूरत बनाए रखने के लिए सख्त नियम बनाने के साथ ही अनुपालन सुनिश्चित कराया। शहर के चारों ओर नाले-नालियां बनाई। पहाड़ियों से गिरने वाले नालों से बरसात का पानी झील सहित अन्य नालों में ऐसे जोड़ा गया। यही वजह है कि आज भी नैनीताल का ड्रेनेज सिस्टम पूरे भारत के पहाड़ी शहरों के लिए एक माडल है। जिला विकास प्राधिकरण के सचिव के अनुसार, 1989 से अब तक चार्टन लाज से ही सात नंबर तक के इलाके में प्राधिकरण ने एक हजार से अधिक अवैध निर्माणों पर कार्रवाई की। पिछले दो साल में ही शहर में करीब तीन सौ अवैध निर्माण ध्वस्त किए गए। हाल ही में मेट्रोपोल सहित अन्य इलाकों से बड़े पैमाने पर अतिक्रमण ध्वस्त किए गए। प्राधिकरण की कोशिश हर हाल में अवैध निर्माण रोकना है।
सरोवर नगरी में हालिया वर्ष में जिला विकास प्राधिकरण ने अवैध निर्माण पर बेहद सख्त कार्रवाई की, लेकिन पिछले तीन दशक से प्राधिकरण के अफसरों, गश्ती दलों की दरियादिली से अवैध निर्माणों पर चालान व सीलिंग तक कार्रवाई सीमित रहीऐसे में अवैध भवन भी वैध श्रेणी में आ गए। नैनीताल के ग्रीन बेल्ट में निर्माण प्रतिबंधित है, लेकिन इस पर अंकुश नहीं लग पाया। अवैध निर्माण के विरुद्ध लगातार आवाज बुलंद कर रहे पर्यावरणविद के अनुसार, जिन अधिकारियों के कार्यकाल में नैनीताल में निर्माण की बेरोकटोक अनुमति दी गई, उन अधिकारियों को कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए। नैनीताल खतरे में है पहाड़ियां दरक रही हैं. गिर रही हैं. बड़े चूना पत्थर झील में समा रहे हैं. पहाड़ियों की भार क्षमता खत्म हो चुकी है. पहाड़ तो खत्म ह.. नैनीताल खतरे में है. पहाड़ियां दरक रही हैं. गिर रही हैं. बड़े चूना पत्थर झील में समा रहे हैं. पहाड़ियों की भार क्षमता खत्म हो चुकी है।
अदालत ने भारत संघ और याचिकाकर्ता से सुझाव देने को कहा कि समिति का दायरा क्या होना चाहिए। हम पैनल का काम हिमालयी राज्यों तक ही सीमित रखेंगे। हमें मसौदा सुझाव दें और शीर्ष अदालत का कहना है कि केंद्र के खाके पर सभी राज्यों की प्रतिक्रिया का इंतजार नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के इस सुझाव पर प्रतिक्रिया देते हुए कि हिल स्टेशनों की वहन क्षमता का आकलन करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति बनाई जानी चाहिए, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पीठ को सूचित किया कि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के कई निर्देशों के आधार पर एक योजना तैयार की है। सभी राज्यों में हिल स्टेशनों के लिए टेम्पलेट और उनकी प्रतिक्रियाएँ मांगी क्योंकि “भूमि” राज्यों के संवैधानिक अधिकार क्षेत्र में आती है।
नैनीताल चाइनापीक कि पहाड़ी में 1880 के दशक से चाइना पीक की पहाड़ी पर लगातार भूस्खलन हो रहा है। 18 सितंबर 1888 को चाइनापीक की पहाड़ी में हुए विनाशकारी भूस्खलन में 151 भारतीय और ब्रिटिश नागरिकों कि मौत हो गई। जिसके बाद से लगातार समय समय पर पहाड़ी से भूस्खलन हो रहा हैं। लेकिन अब तक पहाड़ी ट्रीटमेंट के लिए अब तक कोई बड़ी कार्य योजना नहीं बनी और ना ही पहाड़ी के ट्रीटमेंट के लिए अब तक कोई कार्य किए गए जिसके चलते लगातार समय-समय पर चाइना पीक की पहाड़ी पर पड़ा भूस्खलन हो रहा है। जिससे पहाड़ी की तलहटी पर रहने वाले लोगों की जान पर खतरा मंडरा रहा है। भूगर्भ शास्त्री बताते हैं कि नैनी पीक की पहाड़ी पर समय-समय पर हो रहा भूस्खलन आने वाले समय में एक बड़ा खतरा नैनीताल के लिए बन सकता है। पहाड़ी पर हो रहे भूस्खलन को रोकने के लिए उन्होंने अध्ययन रिपोर्ट पूर्व में शासन को भेजी है। जिस पर सरकार ने आज तक कोई अमल में नहीं किया जिसके चलते समय समय पर भूस्खलन हो रहे हैं। अगर समय रहते भूस्खलन को रोकने के लिए ठोस नीति बनाकर कार्य शुरू नहीं किए तो जल्द ही पहाड़ी में बड़ा भूस्खलन देखने को मिल सकता है।
क्षेत्रीय निवासी बताते हैं कि इससे पूर्व 1984 में भी पहाड़ियों में बड़ा भूस्खलन हुआ था। जिसमें कई घर, घोड़े मलबे में दब गए। जिसके बाद प्रशासन ने क्षेत्र में रहने वाले लोगों को सूखाताल,आयरपटा,यूथ हॉस्टल, प्राइमरी स्कूल समेत आसपास के क्षेत्रों में विस्थापित किया। जिसके बाद प्रशासन ने भूस्खलन को रोकने के लिए अस्थाई निर्माण कार्य किए उसके बाद से क्षेत्र में कोई कार्य नहीं हुआ। यदि भू-जलवायु स्थितियों को ध्यान में रखकर नियामक तंत्र द्वारा लाई गई जागरूकता के साथ बेहतर भवन निर्माण सामग्री व तकनीक का प्रयोग किया जाएगा, तो ऐसी आपदाएं टाली जा सकती हैं।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )