पहाड़ी राज्यों में अभी जारी रहेगी मौसम (weather) की बेरुखी
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तर भारत के पहाड़ी राज्यों में भारी बारिश का कहर अभी थमने का आशंका नहीं है। मौसम विभाग की मानें तो हिमाचल प्रदेश में अगले तीन दिनों तक भारी बारिश का सिलसिला देखने को मिलेगा। उत्तराखंड में अगले चार से पांच दिनों तक भारी बारिश का अलर्ट है। इन दोनों राज्यों में लगातार बारिश मुसीबत बनती जा रही उत्तराखंड में हाल ही में जानमाल के भारी नुकसान के लिए जिम्मेदारी भारी बारिश का कारण मानसून गर्त का उत्तर की ओर बढ़ना और कमजोर पश्चिमी विक्षोभ के साथ उसका टकराना माना जा रहा ह। राज्य में अति वृष्टि के कारण भूस्खलन, इमारत ढहने और सड़कें बहने की घटनायें सामने आयी हैं।
भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, मानसून गर्त, एक कम दबाव वाला क्षेत्र है जो पाकिस्तान से बंगाल की खाड़ी तक फैला है। यह मानसून परिसंचरण की एक अर्ध-स्थायी विशेषता है। यह आमतौर पर सिंधु-गंगा के मैदानों के ऊपर से गुजरता है, लेकिन इसके उत्तर की ओर बढ़ने से यह हिमालय की तलहटी की ओर स्थानांतरित हो गया, जिससे क्षेत्र में भारी वर्षा हुई.विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालय और पूर्वोत्तर राज्यों में अगस्त से भारी बारिश हुई है, जिससे उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में मिट्टी ढीली हो गई, कटाव हुआ और अचानक बाढ़ आ गई मानसून अभी सक्रिय है और क्षति का आकलन भी चल रहा है। वहीं अगर आज की मौसम की बात करें तो प्रदेश के ज्यादातर क्षेत्रों में आंशिक बादल छाए रह सकते हैं। आज भी देहरादून समेत आठ जिलों में गरज-चमक के साथ तीव्रबौछारों के एक से दो दौर हो सकते हैं। इसे लेकर येलो अलर्ट जारी किया गया है।
मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक के अनुसार आज प्रदेश के ज्यादातर क्षेत्रों में आंशिक बादल छाये रह सकते हैं। देहरादून, पौड़ी, टिहरी, नैनीताल, चंपावत, बागेश्वर, ऊधमसिंह नगर और पिथौरागढ़ में गरज-चमक के साथ तीव्र बौछारों के एक से दो दौर होसकते हैं। इसे लेकर यलो अलर्ट जारी किया गया है। वहीं विकासनगर तहसील के जाखन गांव में लगातार भूधंसाव हो रहा है। इसके अलावा गांव के ऊपर लांघा-मटोगी मोटर मार्ग के धंसने का क्रम भी जारी है। इससे बिन्हार क्षेत्र के ग्रामीणों का संपर्क अन्य जगह से कट गया है। सबसे ज्यादा समस्या उन ग्रामीणों को आ रही है, जिन्होंने दरार आए मकानों से सामान तो निकाल लिया, लेकिन अब वे इस सामान को कहां रखें। हालांकि, प्रशासन ने पष्टा कैंप व लांघा इंटर कालेज में सामान रखवाने की वैकेल्पिक व्यवस्था बनाई है, लेकिन दो स्कूलों में इससे बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है। बच्चों की पढ़ाई के लिए शिक्षा विभाग वैकल्पिक व्यवस्था बनाने को कवायद कर रहा है। जाखन गांव के ग्रामीणों का जनजीवन पूरी तरह से पटरी से उतरा हुआ है।
अतिवृष्टि के कारण समूचा उत्तराखंड आपदा की स्थिति से जूझ रहा है। नदी-नालों का वेग भयभीत कर रहा है तो भूस्खलन, भूधंसाव के कारण सार्वजनिक व निजी संपत्ति को भारी नुकसान पहुंच रहा है। आपदा ने सर्वाधिक क्षति पहाड़ की जीवन रेखा कही जाने वाली सड़कों को पहुंचाई है। चारधाम को जोड़ने वाली आल वेदर रोड समेत अन्य राजमार्ग हों या फिर राज्य राजमार्ग, जिला व संपर्क और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) की सड़कें, सभी छलनी हुई हैं। ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रों में कठिनाइयां भी बढ़ गई हैं। आपदा ने सर्वाधिक क्षति पहाड़ की जीवन रेखा कही जाने वाली सड़कों को पहुंचाई जब हम पर्यावरण पर विकास के खतरों की बात करते हैं तो सवाल उठता है कि क्या सड़क, फ्लाय ओवर, ब्रिज, बांध न बनाएं? क्या बड़ी आबादी को बिना बिजली, बिना घर, बिना पानी रहने और मरने दें? क्या अच्छी सड़कों, चमकदान रोड के अभाव में वाहनों में ईंधन के अधिक उपयोग से होने वाले नुकसान की अनदेखी कर दी जाए? ऐसे तमाम तर्कों का उत्तर है- नहीं।
सुनियोजित और सोचे समझें विकास से आपत्ति नहीं है। मगर समूचा मानव समाज ही प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग और दोहन के अंतर को भूल गया है। परमाणु ऊर्जा के उपयोग और इससे जुड़े खतरों के प्रति हमेशा ही आगाह किया जाता रहा है मगर हमने विकास के नाम पर खतरनाक परियोजनाओं को अपनाया उनके खतरों से बचाव का कोई प्रबंधन नहीं किया। जैसे,सड़क बनाने के लिए पेड़ तो काटे, उनके विस्थापन या नए पौधरोपण के लिए धन खर्च तो किया मगर जितने पेड़ काटें उनके आधे भी पौधे पनपे ही नहीं। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने भी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान केंद्रित किया है मगर विनाश की तुलना में यह भरपाई बहुत ही कम है।
सरकार, समाज और व्यक्तिगत स्तर पर भी यह कभी नहीं सोचा जाता है कि जितना पानी, रेत, हवा, ऊर्जा हमने प्रकृति से ली है, उसे लौटाने का ईमानदार जतन किया गया है कभी? प्रकृति के प्रति चिंता की बातें बहुत हुईं, अब भी इन वैज्ञानिकों की चेतावनियों पर अमल नहीं हुआ तो आपदा के कई ग्लेशियर पिघलने को तैयार हैं। उत्तराखंड में हाल ही में जानमाल के भारी नुकसान के लिए जिम्मेदारी भारी बारिश का कारण मानसून गर्त का उत्तर की ओर बढ़ना और कमजोर पश्चिमी विक्षोभ के साथ उसका टकरानामाना जा रहा है।
राज्य में अति वृष्टि के कारण भूस्खलन, इमारत ढहने और सड़कें बहने की घटनायें सामने आई हैं। ढ्ढरूष्ठ के अनुसार, मानसून गर्त, एक कम दबाव वाला क्षेत्र है जो पाकिस्तान से बंगाल की खाड़ी तक फैला है।यह मानसून परिसंचरण की एक अर्ध-स्थायी विशेषता है. यह आमतौर पर सिंधु-गंगा के मैदानों के ऊपर से गुजरता है, लेकिन इसके उत्तर की ओर बढ़ने से यह हिमालय की तलहटी की ओर स्थानांतरित हो गया, जिससे क्षेत्र में भारी वर्षा हुई।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )