देवभूमि उत्तराखंड में शारदीय नवरात्रि पर मातारानी के शक्तिपीठ हुए जगमग। सच्ची भति से होती है मनोकामना पूरी

लोक संस्कृति/देहरादून

शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर देवभूमि उत्तराखंड में शक्तिस्वरूपा मां देवी की विशेष पूजा अर्चना शुरू हो गई है। इसी के साथ उत्तराखंड के गढ़वाल एवं कुमाऊं क्षेत्र के विभिन्न शक्तिपीठों में पूजा-अर्चना के लिए भक्तों की आवक भी बढ़ गई है। देवों की भूमि उत्तराखंड में कई शक्तिपीठ स्थित हैं। कहते हैं पूर्ण श्रद्धा के साथ यदि भक्तिमय होकर भक्त इन शक्तिपीठों में मां के दरबार में हाजिरी लगाते हैं तो उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।

आइए उत्तराखंड में स्थित कुछ प्राचीन शक्तिपीठों को आपसे भी रूबरू करवाते हैंः-

  • कालीमठ मंदिर, रुद्रप्रयाग

रुद्रप्रयाग जिले में स्थित कालीमठ मंदिर को महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली को सिद्धपीठ के रूप में जाना जाता है। इस स्थान का वर्णन दुर्गा सप्तशती में भी किया गया है।

  • हरियाली देवी मंदिर, जसोली, रुद्रप्रयाग

रुद्रप्रयाग का मां हरियाली देवी मंदिर विशाल हिमालयन श्रेणियों के बीच स्थित है। प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक इस मंदिर की देवी को सीता माता, बाला देवी और वैष्णों देवी के नाम से भी जाना जाता है।

  • कलिंका माता, वीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल

पौड़ी गढ़वाल में स्थित कालिंका माता मंदिर को मां काली का स्वरूप् माना जाता है। यहां हर तीन साल में सर्दियों के मौसम में प्रसिद्ध मेला लगता है।

  • ज्वालपा देवी मंदिर, सतपुली, पौड़ी गढ़वाल

नबालिका नदी के किनारे स्थित ज्वालपा देवी मंदिर लगभग 350 मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में विशेष उत्सव का आयोजन होता है।

  • धारी देवी मंदिर, श्रीनगर

टलकनंदा नदी के तट पर स्थित मां धारी देवी मंदिर एक प्राचीन सिद्धपीठ है। माता धारी देवी को देवभूमि उत्तराखंड की रक्षक देवी के रूप में जाना जाता है।

  • मनसा देवी मंदिर, हरिद्वार

मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है। इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी पूजा जाता है।

  • चण्डी देवी, हरिद्वार

देश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में शामिल चण्डी देवी मंदिर नील पर्वत के शिखर पर स्थित है। यह प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि इस मंदिर की मूर्ति को महान संत आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में स्थापित किया था।

  • कुन्जापुरी देवी मंदिर, नरेंद्रनगर

ऋषिकेश से लगभग 25 किमी. की दूरी पर स्थित कुन्जापुरी देवी मंदिर महत्वपूर्ण्हा देवी सती को समर्पित है। मान्यता है कि यहां माता सती के शरीर का ऊपरी भाग गिरा था।

  • सुरकंडा देवी मंदिर, कद्दूखाल, टिहरी

सुरकंडा देवी मंदिर टिहरी क्षेत्र में सुरकुट पर्वत पर लगभग 2757 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है।

  • चन्द्रबदनी मंदिर, देवप्रयाग

देवप्रयाग से 33 किमी. और कन्डीखाल से 10 किमी. दूर स्थित मां चंद्रबदनी मंदिर शक्तिपीठों और माता सती के पवित्र स्थलों में से एक है। यह शक्तिपीठ चंद्रकूट पर्वत के ऊपर स्थित है।

  • नागणी देवी, उत्तरकाशी

बालखिला पर्वत पर बसे नागणी देवी मंदिर का विशेष धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि मां नागणी के दर्शन से मनुष्य को सात जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। नवरात्र के दिनों में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

  • नंदा देवी मंदिर, कुरुड़, चमोली

कुरुड़ में नंदा देवी का मंदिर गांव के शीर्ष पर देवसरि तोक पर स्थित है। कुरुड़ नंदा को राजराजेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है।

  • हाटकालिका मंदिर, गंगोलीहाट, पिथौरागढ़

माता भगवती महाकालिका का यह दरबार दिव्य चमत्कारों से भरा पड़ा है। कहा जाता है कि जो भी भक्तजन श्रद्धापूर्वक महाकाली के चरणों में आराधना के पुष्प अर्पित करता है, उसके रोग, शोक, दरिद्रता एवं विपदाएं दूर हो जाती हैं।

  • पूर्णागिरी मंदिर, टनकपुर

प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक मां पूर्णागिरी मंदिर टनकपुर से लगभग 21 किमी. की दूरी पर स्थित है। चैत्र नवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं।

  • वाराही मंदिर, देवीधुरा

चंपावत जिले के देवीधुरा में मां वाराही देवी के मंदिर के प्रांगण में हर साल रक्षाबंधन के अवसर पर श्रावणी पूर्णिमा को बग्वाल खेली जाती है।

  • नैना देवी मंदिर, नैनीताल

नैना देवी मंदिर नैनीताल में नैनी झील के उत्तरी किनारे पर स्थित है। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं, जो नैना देवी को दर्शाते हैं।

  • गर्जिया देवी मंदिर, गर्जिया, नैनीताल

गर्जिया देवी मंदिर माता पार्वती के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भक्तों की श्रद्धा एवं विश्वास के साथ खूबसूरत वातावरण, शांति एवं रमणीयता के लिए जाना जाता है।

  • कोटगाड़ी (कोकिला) देवी मंदिर, पिथौरागढ़

थल से 9 किमी. की दूरी पर स्थित कोटगाड़ी देवी मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। इस मंदिर की मान्यता अंतिम दिव्य अदालत के रूप में है। जहां वंचित भक्त भगवान से अपनी इच्छाओं को पूरा करने की प्रार्थना करने आते हैं।

  • कोट भ्रामरी मंदिर, बागेश्वर

कोट भ्रामरी मंदिर को भ्रामरी देवी मंदिर और कोट माई के नाम से भी जाना जाता है। यह बैजनाथ से तीन किमी. की दूरी पर डंगोली के समीप स्थित है।

  • चैती (बाल सुंदरी) मंदिर, काशीपुर

माता चैती (बाल सुंदरी) मंदिर काशीपुर में स्थित है। यहां चैती मेला के नाम से चैत्र मास में प्रसिद्ध मेला लगता है। आदिशक्ति की बाल रूप में पूजा होने के कारण इसे बाल सुंदरी मंदिरकहा जाता है।

  • नंदा देवी मंदिर, अल्मोड़ा

कुमाऊं क्षेत्र के पवित्र स्थलों में से एक नंदा देवी मंदिर का विशेष धार्मिक महत्व है। इसका इतिहास एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। कुमाऊंनी शिल्पविधा शौली से निर्मित यह मंदिर चंद्र वंश की ईष्ट देवी को समर्पित है।

  • कसार देवी मंदिर, अल्मोड़ा

अल्मोड़ा में कसार पर्वत पर स्थित कसार देवी मंदिर अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति का केंद्र है। कहा जाता है कि इस शक्ति पीठ में मां दुर्गा साक्षात प्रकट हुई थी।

  • दूनागिरी मंदिर, द्वाराहाट

मां दूनागिरी मंदिर द्वाराहाट से करीब 14 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस भव्य मंदिर में मां दूनागिरी वैष्णवी रूप में पूजी जाती है।

  • अखिलतारणी मंदिर, लोहाघाट, चंपावत

मांग अखिलतारणी मंदिर को उप शक्तिपीठ माना जाता है, जो घने हरे देवदार वनों के बीच में स्थित है। मान्यता है कि यहां पांडवों ने घटोत्कच का सिर पाने के लिए मां भगवती की प्रार्थना की थी।