Kafal: किसी दवा से कम नहीं है काफल
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल के पारंपरिक खानपान में जितनी विविधता एवं विशिष्टता है, उतनी ही यहां के फल-फूलों में भी। खासकर जंगली फलों का तो यहां समृद्ध संसार है। यह फल कभी मुसाफिरों और चरवाहों की क्षुधा शांत किया करते थे, लेकिन धीरे-धीरे लोगों को इनका महत्व समझ में आया तो लोक जीवन का हिस्सा बन गए। औषधीय गुणों से भरपूर जंगली फलों का लाजवाब जायका हर किसी को इनका दीवाना बना देता हैl
काफल एक ऐसा फल है, जो गर्मियों में खाने से शरीर को ठंडाई देता है। अब पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों का खट्टा-मीठा रसीला फल काफल बाजार में उतर आया है. अभी काफल की कीमत 400 से 500 रुपये प्रति किलो है।
बता दें कि इसके पेड़ ठंडी जलवायु में पाए जाते हैं. जबकि इसका लुभावना गुठली युक्त फल गुच्छों में लगता है और गर्मी के मौसम में यह फल थकान दूर करता है। इसके साथ यह तमाम औषधीय गुणों से भी भरपूर है।
काफल का वैज्ञानिक नाम माइरिका एसकुलेंटा है. यही नहीं इसके निरंतर सेवन से कैंसर एवं स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है। एंटी-ऑक्सीडेंट तत्व होने के कारण इसे खाने से पेट संबंधित रोगों से भी निजात मिलती है.यह फल स्थानीय लोगों को के लिए रोजगार का साधन भी बनता है। स्थानीय लोग का फल को पेड़ से तोड़कर मंडी तक लाते हैं और मंडी में इस फल को बेचते हैं। प्रारंभिक अवस्था में काफल का रंग हरा होता है और अप्रैल माह के आखिर में यह पककर तैयार हो जाता है। तब इसका रंग बेहद लाल हो जाता है, लेकिन इस बार यह फल मार्च में ही पककर तैयार हो गया है.स्थानीय दुकानदार ने बताया कि इन दिनों काफल 400 से 500 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा है. आमपड़ाव, बसगांव, चोपड़ा, बलियाखान, कूड़, खुरपाताल रामगढ़ और भवाली क्षेत्र के विभिन्न गांवों के ग्रामीण इन दिनों शहर में काफल बेचने आते हैं।
वैसे तो काफल अप्रैल के महीने में बाजारों में आता था, लेकिन इस बार मार्च में ही काफल पककर तैयार हो गया था। काफल के अनेक औषधीय गुण हैं। यह फल अपने आप में एक जड़ी-बूटी है। चरक संहिता में भी इसके अनेक गुणकारी लाभों के बारे में वर्णन किया गया है. काफल के छाल, फल, बीज, फूल सभी का इस्तेमाल आयुर्विज्ञान में किया जाता है।
काफल सांस संबंधी समस्याओं, डायबिटीज, पाइल्स, मोटापा, सूजन, जलन, मुंह में छाले, मूत्रदोष, बुखार, अपच और शुक्राणु के लिए फायदेमंद होने के साथ ही दर्द निवारण में उत्तम है. बाजार में पहुंचा पहाड़ी फलों का राजा काफल औषधीय गुणों से भरपूर इसके फायदे। बाजार में पहुंचा पहाड़ी फलों का राजा काफल औषधीय गुणों से भरपूर इसके फायदे आपको हैरान कर देंगे उत्तराखंड के ऐसे फल के जिसके औषधीय गुणों उसे पहाड़ों में फलों का राजा कहा जाता है. उस फल का नाम है काफल है. उत्तराखंड के पहाड़ी और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में गर्मी के मौसम में हर साल उगने वाला फल काफल इस साल भी हरे भरे काफल के पेड़ों में उग आये हैं। ये फल पहाड़ी क्षेत्रो के सुंदरता में चार चाँद तो लगा ही रहा है साथ ही लोग भी इस फल को खाने के लिए काफी बेताब नजर आते हैं। फल खाने में मीठा होता है जो कि ये फल 4000 से 6000 फ़ीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मार्च माह में काफल के पेड़ में उग आते हैं, लेकिन इस वक्त ये फल हरा और खट्टा होता है, लेकिन एक माह बीते जाने के बाद ये फल लाल हो जाता है जिसका स्वाद भी मीठा होता है। इस फल का वैज्ञानिक नाम “मिरिका एस्कुलेंटा” है, जिसे भूख बढ़ाने के औषधि के तौर पर भी लिया जाता है उत्तराखण्ड राज्य के साथ ही ये स्वादिष्ट और फल नेपाल और हिमांचल में भी पाया जाता है काफल फल के पौधे को कहीं भी उगाया नहीं जा सकता है। यह स्वयं उगने वाला पौधा है, जो कि 4000 फ़ीट से 6000 फ़ीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में खुद ही उग जाता है।
काफल पर लोककथाएं भी काफी प्रचलित है। बड़े बुजुर्गो की माने तो एक लोककथा के अनुसार एक छोटी सी पहाड़ी पर एक घना जंगल हुआ करता था। जहाँ पहाड़ी के पास गांव में एक औरत अपनी बेटी के साथ रहती थी। ये महिला काफी गरीब थी, जो कि कड़ी धूप से लेकर बारिश या सर्दी जैसे मौसम में भी अपनी आर्थिकी को चलाने के लिए काफी मेहनत किया करती थी। एक दिन महिला जंगल से रसीले काफल के फल टोकरी में तोड़कर लाई और उसने काफलों से भरी टोकरी अपने बेटीे को सौंपी और कहा कि वो उसकी देख रेख करे। ये कहकर महिला स्वयं जंगल में मवेशी के लिए चारा अर्जित करने चली गई। वहीँ काफल की देखरेख कर रही बिटिया का मन काफल खाने को भी ललचाया, लेकिन अपनी मां की बात सुनकर उसने एक भी दाना काफल का नहीं खाया। काफल के कड़ी धूप में देखरेख कर रही बिटिया इसकी हिफाजत करते करते भूखे पेट ही सो गई। वहीँ कड़ी धूप में टोकरी में रखे काफल काफी हद तक सूख भी चुके थे तो इनकी इनकी संख्या भी टोकरी में काफी कम लगने लगी थी। अब शाम हो चुकी थी तो महिला जंगल से चारा इकट्ठा कर वापस लौटी। घर पहुंची तो उसने देखा कि काफल काफी कम हो गया। महिला ने सोचा की उसकी बिटिया ने ही काफल टोकरी में से निकालकर खाये होंगे, गुस्से में महिला ने घास का गट्ठर एक ओर फेंका और अपने हाथों से अपनी बेटी के सर में जोरदार प्रहार किया। बेटी जिस प्रकार सोई थी, उस प्रकार ही वह शांत रही। बेटी के द्वारा कोई हलचल न करने पर बेटी की मां ने घबरा कर जोर-जोर से बेटी को हिलाया, लेकिन बेटी ने तो उस समय ही दम तोड़ दिया था ! कुछ देर बाद शाम होने पर काफल की टोकरी दोबारा से फिर उसी तरह लबालब भर गयी, तब जाकर महिला ने सोचा यह काफल तो धूप के कारण सूख गए थे। महिला को इसका काफी अफ़सोस हुआ और इस गम में मां ने भी दम तोड़ दिया।
कहते हैं कि वो बच्ची आज भी एक पक्षी बन कर अमर है। ये पक्षी आज भी झुंडों में घूमते हैं और आवाज़ लगाते हैं और पहाड़ी में एक पंक्ति दोहराते हैं काफल पाको, मैल नि चाखो अर्थात काफल का फल पका, लेकिन मैंने उसे नहीं चखा और मां के रूप में एक पक्षी यह बोलती है पुर पुतई पुरै पुर अर्थात् पूरे हैं बेटी पूरे हैं।
इस फल को इंद्रलोक का फल भी माना जाता है। कुमाउनी बोली के लोक गीत में काफल अपना दर्द बयाँ करते हुए कहते हैं “खाण लायक इंद्र का हम छी भूलोक आप पण" अर्थात हम स्वर्ग लोक में इंद्रा देवता के खाने योग्य थे और अब भू लोक में आ गए”। काफल साल में एक बार पकने वाला फल होता है। यह फल पहाड़ों में काफी लोकप्रिय है, जिसका अंदाजा इसकी कीमत से ही लगाया जा सकता है। जंगली फल यानी कि काफल जिसकी बाज़ार में कीमत लगभग 500 रुपये प्रति किलो है। इस हिसाब से यह पहाड़ों में बिकने वाला सबसे महंगा फल है, जो सिर्फ जंगलों में ही उगता है।
काफल खाने में बेहतरीन खट्टा मीठा स्वाद के साथ साथ कई औषधीय गुणों से भी भरपूर होता है, जो मनुष्य के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का कार्य भी करता है।
काफल अनेक औषधीय गुणों से भरपूर है। इसकी छाल का उपयोग जहां चर्मशोधन (टैनिंग) में किया जाता है, वहीं इसे भूख और मधुमेह की अचूक दवा भी माना गया है। फलों में एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होने के कारण कैंसर व स्ट्रोक के होने की आशंका भी कम हो जाती है। काफल ज्यादा देर तक नहीं रखा जा सकता। यही वजह है उत्तराखंड के अन्य फल जहां आसानी से दूसरे राज्यों में भेजे जाते हैं, वहीं काफल खाने के लिए लोगों को देवभूमि ही आना पड़ता है।
काफल के पेड़ काफी बड़े और ठंडे छायादार स्थानों में होते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में मजबूत अर्थतंत्र दे सकने की क्षमता रखने वाले काफल को आयुर्वेद में कायफल नाम से जाना जाता है। इसकी छाल में मायरीसीटीन, माइरीसीट्रिन व ग्लाइकोसाइड पाया जाता है। इसके फलों में पाए जाने वाले फाइटोकेमिकल पॉलीफेनोल सूजन कम करने सहित जीवाणु एवं विषाणुरोधी प्रभाव के लिए जाने जाते हैं।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।)