फूलों की घाटी (Valley of flowers) में 500 से अधिक प्रजाति के फूलों के होते हैं दीदार
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में स्थित धार्मिक रुप से महत्वपूर्ण चार धाम गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ विश्व धार्मिक पटल पर अपनी अलग पहचान रखते हैं। यहां हिमालय मनुष्य को जीवन की नयी परिभाषा समझाता है। कल-कल छल-छल बहती नदियां जीवन को नयी ऊर्जा प्रदान करती हैं, तो यहां की प्रकृति संपदाओं में कई तरह की जड़ी-बूटियां और फल-फूल पाए जाते है। जिन्हें देखने-समझने के लिए देश-विदेश से पर्यटक यहां आते हैं।
विश्व धरोहर नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के अंतर्गत 1982 में 87.5 वर्ग किमी क्षेत्रफल को नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क से अलग कर फूलों की घाटी बनाया गया। 2005 में इसको विश्व प्राकृतिक धरोहर घोषित किया गया। यहां पर दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीव पाए जाते हैं. यहां पर 500 से अधिक प्रजाति के फूल खिलने के साथ 700 से अधिक वनस्पतियों की प्रजातियां पाई जाती हैं।
विश्व धरोहर फूलों की घाटी 1 जून को पर्यटकों के लिए खोल दी गई है। जिसको लेकर पार्क प्रशासन एक माह पूर्व से तैयारियों में जुटा हुआ था। आज हरी झंडी दिखाकर पर्यटकों को घांघरिया स्थित वन विभाग की चौकी से फूलों की घाटी के लिए रवाना किया गया।
इस साल फूलों की घाटी में भारी बर्फबारी के चलते कई जगह बड़े-बड़े हिमखंड राह में रोड़ा बने हुए थे, जिनको काटकर पैदल मार्ग बनाया गया है। पैदल मार्ग पर बने कई पैदल पुल भी टूटे हुए थे। इन दिनों फूलों की घाटी में धीरे धीरे बर्फ पिघलने लग गई है. जैसे-जैसे बर्फ पिघल रही है, धीरे-धीरे फूलों की प्रजातियां भी खिलने के साथ घाटी के सौंदर्य को निखार रही हैं।
फूलों की घाटी में अभी तक 6 प्रजाति के फूल खिलने के साथ बुरांश की कई प्रजातियां खिली हुई हैं। विश्व धरोहर फूलों की घाटी दुनिया की इकलौती जगह है, जहां प्राकृतिक रूप से 500 से अधिक प्रजाति के फूल खिलते हैं।
फूलों की घाटी की खोज ब्रिटिश पर्वतारोही ने फ्रैंक स्मिथ ने 1932 में की थी। जब वो कामेट पर्वत फतह कर वापस लौट रहे थे तो वे रास्ता भटक गए और फूलों की घाटी पहुंच गए थे। यहां सैकड़ों प्रजाति के प्राकृतिक रूप से खिले फूलों को देख वे मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने इस जगह को वैली ऑफ फ्लावर के नाम से याद रखा और अपने वतन फूलों के सैंपल लेकर लौट गये।
प्रभागीय वनाधिकारी ने बताया कि बिगड़ते मौसम को देखते हुए एसडीआरएफ, प्रशासन व वन विभाग द्वारा घाटी का निरीक्षण करने के बाद ही फूलों की घाटी में जाने की इजाजत दी जाती है। कहा कि वन विभाग की टीम घांघरिया में ही यह घाटी जैव विविधता का अनुपम खजाना है। प्रकृति प्रेमियों और साहसिक गतिविधियों के शौकीनों के लिए फूलों की घाटी पसंदीदा जगहों में से एक है।
घाटी में आने वाले पर्यटकों का स्वागत करने के लिए राज्य पूरी तरह से तैयार है। दो सालों बाद यह घाटी पर्यटकों के लिए फिर खुली है। यह एक राष्ट्रीय उद्यान है, जिसे फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान भी कहा जाता है। पूरी घाटी दुर्लभ और विदेशी हिमालयी वनस्पतियों से समृद्ध है। यहां फूलों की 300 से अधिक प्रजातियां पाईं जाती हैं, जिनमें एनीमोन, जेरेनियम, प्राइमुलस, ब्लू पोस्पी और ब्लूबेल शामिल हैं। यहां देखने के लिए सबसे खूबसूरत फूल ब्रह्म कमल है, जिसे उत्तराखंड का राज्य फूल भी कहा जाता है।
पर्यटकों को घाटी के बेस कैंप घांघरिया तक 14 किमी पैदल दूरी तय करनी पड़ती है। प्रवेश के लिए दोपहर तक ही पर्यटकों के लिए इजाजत होती है। फूलों की घाटी में प्रवेश करने के लिए पर्यटकों को घांघरिया से परमिट लेना पड़ता है। फूलों की घाटी गढ़वाल क्षेत्र में जोशीमठ के पास भुइंदर गंगा के ऊपरी विस्तार में स्थित है। गोबिंदघाट के पास भुइंदर गंगा की निचली पहुंच को भुइंदर घाटी के नाम से जाना जाता है। फूलों की घाटी नंदादेवी पार्क से 23
किमी उत्तर-उत्तर पश्चिम में पुष्पवती घाटी में है, संपूर्ण नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व पश्चिमी हिमालय एंडेमिक बर्ड एरिया के भीतर स्थित है।
वैली ऑफ फ्लावर्स नेशनल पार्क नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व का दूसरा मुख्य क्षेत्र है, श्वक्च्र के इस हिस्से में सात प्रतिबंधित-रेंज पक्षी प्रजातियां स्थानिक हैं। घाटी में पिछले कुछ वर्षों में गोल्डन फर्न का बहुत तेजी से फैलाव हुआ है। इसके बीज हल्के होने के कारण ये हवा में उड़कर दूसरे स्थान पर पहुंच जाते हैं। इसकी जड़ें घनी होती हैं, ऐसे में अन्य प्रजातियां इसके आसपास नहीं उग पातीं। यदि इसकी रोकथाम के लिए जल्द ही प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो घाटी के लिए विकट स्थिति पैदा हो सकती है।
गोल्डन फर्न जैसी प्रजातियों के कारण फूलों की घाटी में क्या-क्या प्रभाव पड़ रहे हैं, इसका अध्ययन किया जाएगा। प्रयोग के तौर पर घाटी के एक छोटे से हिस्से से गोल्डन फर्न को निकालकर स्थानीय पुष्प रोपित किया जाएंगे। इन सब बिंदुओं के अध्ययन के आधार पर कदम उठाए जाएंगे।
नन्दा देवी पार्क के अन्तर्गत हेमकुण्ड साहिब, वैली ऑफ़ फ्लावर्स और बद्रीनाथ धाम में धार्मिक और प्राकृतिक पर्यटन के लिये लाखों पर्यटक आते हैं और उनके साथ ही आता है पानी की खाली बोतलें, चिप्स, बिस्किट और अन्य कई प्रकार का प्लास्टिक कचरा। यहाँ के जलस्रोतों को तो दूषित कर रहा है पर्यटकों के लिये खुलने के बाद, पर्यटको की आवाजाही से ये उच्च हिमालयी इलाका गुलजार हो उठता है, फिर चाहे वो प्रकृति प्रेमी पर्यटक हो जो फूलो की घाटी घूमने पहुंचते हैं या फिर धार्मिक पर्यटन के लिए हेमकुण्ड और बद्रीनाथ हर वर्ष लाखों की संख्या में पहुँचने वाले लोग। यहाँ तक पहुँचने वाले लोगों के लिए सभी सुविधाओं को विकसित किया जाता है जैसे – सड़क मार्ग, होटल और रेस्तरां। लाखों लोगों के यहाँ पहुंचने से यह संवेदनशील उच्च हिमालयी इलाका जलवायु परिवर्तन के असर से जूझ रहा है और इसके ऊपर से इन ऊंचाई वाले इलाकों में कचरे का सही प्रबंधन न होना और प्लास्टिक का यहाँ पहुंचना और भी खतरनाक परिणाम देने वाले है। साथ ही नन्दा देवी पार्क में कयी दुर्लभ जड़ी बूटियाँ उगती है और जिन जगहों पर यह कचरा है, वहाँ जड़ी बूटियाँ के पैदा होने की परिस्थितियां कम होती है और उन जगहों पर जड़ी बूटियाँ( विशेष वनस्पतियां) नहीं उगती। फूलों की घाटी के राष्ट्रीय पार्क घोषित होने के बाद वहां बीच में पर्यटकों की संख्या मेें कमी एवं फूलों की संख्या में न्यूनता वहां के तथाकथित पर्यावरण सम्बन्धी कायदे-कानून के कारण बताये गये हैं।
वन-विभाग द्वारा फूलों की घाटी क्षेत्र में पालिथीन आदि का भारी मात्रा का कचरा हटाए जाने के प्रचार से यहां अब पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
अगर आप भी फूलों की घाटी जाने का मन बना रहे हैं तो इन बातों का खास ध्यान रखें। फूलों की घाटी में प्लास्टिक ले जाना प्रतिबंध है। खाने की सामग्री के साथ जाने वाला कचरा भी पर्यटकों को अपने साथ वापस लाना होता है। और ऐसा न करने पर कड़े जुर्माने का प्रावधान भी है। घाटी में रुकने की कोई सुविधा नहीं है, इसलिए पर्यटकों को सूरज डूबने से पहले घांघरिया वापस लौटना होता है। फूलों की घाटी में एंट्री के लिए आपसे शुल्क लिया जाता है, जिससे इसकी देखभाल होती रहे। भारतीयों से इसका शुल्क 150 रुपये है, जबकि विदेशी पर्यटकों के लिए यह 650 रुपये है।
नंदा देवी नेशनल पार्क के अन्तर्गत आने वाले सम्पूर्ण क्षेत्र बेहद खूबसूरत और मनमोहक हैं। साथ ही जैव विविधता के नज़रिए से बहुत ही महत्वपूर्ण और संवेदनशील है। इस क्षेत्र के संरक्षण के लिए हमें पर्यटन, धार्मिक यात्राओअं के साथ तालमेल बैठाकर आगे बढ़ना होगा।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।)