गुरु पूर्णिमा : देशभर में धूमधाम के साथ मनाई जा रही गुरु पूर्णिमा, शिष्य गुरुजनों से लेते हैं आशीर्वाद, महर्षि वेदव्यास की जयंती भी आज
लोक संस्कृति
आज पूरे देश भर में गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। कल 11 जुलाई से सावन माह की शुरुआत होगी। हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा का खास महत्व है। बता दें कि हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को ही गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है।
सावन माह से एक दिन पहले गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर शिष्य अपने गुरु का पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, आषाढ़ पूर्णिमा के दिन महर्षि वेदव्यास जी का अवतार हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार आज ही के दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। बता दें कि वेदों का संकलन उनके ही द्वारा किया गया है।
हिंदू धर्म के महान ग्रंथों में से एक महाभारत की रचना भी उनके द्वारा ही कई गई। शास्त्रों में उन्हें आदिगुरु भी कहा गया है। इस पर्व को अपने गुरुओं के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। आज देशभर की नदियों में सुबह से ही लोग स्नान कर रहे हैं। इस विशेष दिन पर शिष्य अपने गुरु की विशेष पूजा करता है और यथाशक्ति दक्षिणा, पुष्प, वस्त्र आदि भेंट करता है।
शिष्य इस दिन अपने सारे अवगुणों को गुरु को अर्पित कर देता है और शिष्य अपना सारा भार गुरु को दे देता है। कहते हैं कि गुरु की पूजा उपासना से हर चीज बड़ी सरलता से पा सकते हैं। हम लोग शिक्षा प्रदान करने वाले को ही गुरु समझते हैं।
वास्तव में ज्ञान देने वाला शिक्षक बहुत आंशिक अर्थों में गुरु होता है। जो व्यक्ति या सत्ता ईश्वर तक पहुंचा सकती हो उस सत्ता को गुरु कहते हैं। गुरु होने की तमाम शर्तें बताई गई हैं जैसे शांत, कुलीन, विनीत, शुद्धवेषवाह, शुद्धाचारी और सुप्रतिष्ठित आदि।
गुरु प्राप्ति के बाद कोशिश करें कि उनके निर्देशों का पालन करें।
महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अंश के रूप में धरती पर आए
गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास को समर्पित है। कहते हैं ये वही दिन है जिस दिन हिंदुओं के पहले गुरु वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अंश के रूप में धरती पर आए थे। इनके पिता का नाम ऋषि पराशर था और माता का नाम सत्यवती था। वेदव्यास जी को बचपन से ही अध्यात्म में काफी रुचि थी। उन्होंने अपने माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की जिसके लिए उन्होंने वन में जाकर तपस्या करने की मांग की। लेकिन उनकी माता ने इस इच्छा को नहीं माना।
महर्षि वेदव्यास ने अपनी माता से इसके लिए हठ किया और अपनी बात को मनवा लिया। लेकिन उनकी माता ने आज्ञा देते हुए कहा की जब भी घर का ध्यान आए तो वापस लौट आना। इसके बाद वेदव्यास जी तपस्या हेतु वन में चले गए और वहां जाकर उन्होंने कठोर तपस्या की।
इस तपस्या के पुण्य से उन्हें संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल हुई। इसके बाद वेदव्यास जी ने चारों वेदों का विस्तार किया। साथ ही महाभारत, अठारह महापुराणों और ब्रह्मास्त्र की रचना की। इसी के साथ उन्हें अमरता का वरदान प्राप्त हुआ। ऐसी मान्यता है कि किसी न किसी रूप में महर्षि वेदव्यास आज भी हमारे बीच में उपस्थित हैं। इसलिए हिंदू धर्म में वेदव्यास जी को भगवान के रूप में पूजा जाता है और गुरु पूर्णिमा पर इनकी विधि विधान पूजा की जाती है।