प्रकाश पर्व : सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जी जयंती पर गुरुद्वारों में की गई विशेष पूजा, देशभर में लंगर और भंडारों की धूम

प्रकाश पर्व : सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जी जयंती पर गुरुद्वारों में की गई विशेष पूजा, देशभर में लंगर और भंडारों की धूम

लोक संस्कृति

सिख धर्म के सबसे सबसे बड़े गुरु गुरु नानक जी की आज जयंती है। यह पर्व हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। दीपावली के लगभग 15 दिन बाद आने वाला यह दिन सिख समुदाय के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। इसे प्रकाश पर्व के रूप में भी जाना जाता है।

इस दिन सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। प्रकाश पर्व के मौके पर कई राज्यों में सार्वजनिक अवकाश भी रहता है। स्कूल, कॉलेज बैंक और शेयर बाजार सब बंद रहते हैं। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत तमाम मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों ने प्रकाश पर्व पर शुभकामनाएं दी हैं। गुरु नानक देव जी ने समाज से अज्ञानता का अंधेरा हटाकर चारों तरफ ज्ञान का प्रकाश फैलाया था, इसलिए गुरु नानक जयंती को प्रकाश पर्व के नाम से भी जाना जाता है।

पंजाब, हरियाणा, राजधानी दिल्ली समेत पूरे भारत में गुरु नानक जी जयंती धूमधाम के साथ मनाई जाती है। इस मौके पर देश भर के गुरुदारों खूब सजाया गया है।

अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में आकर्षक रोशनी की गई है। देशभर में भंडारों का आयोजन किया जाता है। गुरु नानक देव जी के आदर्शों और शिक्षाओं के कारण, लाखों लोग उन्हें अपना मार्गदर्शक मानते हैं। उनकी शिक्षाओं में सार्वभौमिकता, भाईचारे, और एकता का संदेश है।

गुरु नानक देव जी के 555वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में, 14 नवंबर को देश भर के विभिन्न शहरों में भव्य नगर कीर्तन का आयोजन किया गया। गुरु नानक जयंती पर गुरुद्वारों में विशेष पूजा और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। श्रद्धालु गुरु ग्रंथ साहिब के पाठ में शामिल होते हैं और विशेष अरदास करते हैं। गुरुद्वारों में लंगर का आयोजन भी होता है, जिसमें सभी लोगों को नि:शुल्क खाना प्रदान किया जाता है। इस दिन का महत्व समाज में एकता और प्रेम को बढ़ावा देने के लिए है।

बता दें कि गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 में तलवंडी (अब पश्चिम पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता जी का नाम मेहता कालू और माता जी का नाम तृप्ता था। उनके पिता तलवंडी गांव में पटवारी का कार्य किया करते थे। गुरु नानक देव जी ने वर्ष 1487 में शादी की, जिसका नाम सुलखनी था। इनके दो पुत्र श्रीचंद और लख्मी चंद थे। उन्होंने कई तीर्थयात्रा की थी। यात्रा के दौरान उन्होंने लोगों को सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जागरुक किया। उन्होंने अपना अंतिम समय पाकिस्तान के करतारपुर में बिताया। वर्ष 1539 में उनकी गुरु नानक जी की मृत्यु हो गई। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले ही शिष्य भाई लहना को उत्तराधिकारी बनाया था। इस पर्व का असली महत्व गुरु नानक देव जी के बताए मार्ग पर चलना है।

उन्होंने जीवनभर समानता, सेवा और प्रेम का संदेश दिया। इस दिन लोग जाति और धर्म के भेदभाव को भूलकर एक-दूसरे के साथ भाईचारा और प्रेम का संकल्प लेते हैं।