बड़ी इलायची उत्पादन की अपार संभावनाएं : ढौंढियाल

बड़ी इलायची लगाने का यह उचित समय है।
*समुद्र तट से 600 – 1500 मीटर तक की ऊंचाई वाले नम व छायादार स्थान जहां पर सिंचाई की सुविधा हो, बडी इलायची उत्पादन की अपार संभावनाएं है। किन्तु समय पर उन्नत किस्मों की पौधों का न मिलना, तकनीकी जानकारी का अभाव, फसल ( फलों ) को सुखाने हेतु आधुनिक तकनीक का न होना तथा विपणन की उचित व्यवस्था का न होना उत्तराखंड राज्य में बड़ी इलायची उत्पादन व्यवसायिक रूप नहीं ले पा रहा है*।
बड़ी इलायची या लार्ज कार्डेमम को मसाले की रानी कहा जाता है। इसका उपयोग भोजन का स्वाद बढाने के साथ ही इसमें कई औषधिय गुण भी होते है। बड़ी इलायची से बनने वाली दवाईयों का उपयोग पेट दर्द  , वात , कफ , पित्त , अपच , अजीर्ण , रक्त और मूत्र आदि रोगों को ठीक करने के लिए  किया जाता है। इसकी खेती सिक्किम , पश्चिमी बंगाल , दार्जलिंग , और भारत के उत्तर –  पूर्वी भाग में अधिक की जाती है । बड़ी इलायची  भारत के उत्तर – पूर्वी भाग में प्राकृतिक रूप में पाई जाती है । इसके आलावा नेपाल , भूटान और चीन जैसे देश में भी इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है ।
राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में बड़ी इलायची उत्पादन की अपार संभावनाएं हें। समुद्र तट से 600 – 1500 मीटर तक की ऊंचाई वाले नम व छाया दार स्थान जहां पर सिंचाई की सुविधा हो बडी इलायची की खेती की जा सकती है। पूर्वी व उत्तरीय ढलान वाले स्थान जो हिमालय के समीप हैं इन स्थानों में अधिक ऊंचाई पर बड़ी इलायची की खेती नहीं करनी चाहिए। दक्षिण पश्चिमी ढलान वाले स्थान जो हिमालय से दूर है तथा जहां पर नमी व छाया है उन स्थानौ पर अधिक ऊंचाई पर भी बड़ी इलायची की खेती की जा सकती है।
 बड़ी इलायची की खेती के लिए 20 – 30°c का तापमान सबसे उपयुक्त होता है.
राज्य के कई स्थानों पर कृषक बड़ी इलाइची की व्यवसायिक खेती कर रहे हैं –
 श्री बच्चीराम ढौंढियाल ग्राम कांडई बूगींधार थलीसैंण जनपद पौड़ी गढ़वाल बड़ी इलायची की व्यवसायिक खेती कर रहे है । श्री ढौंढियाल  बड़ी इलायची के उत्पादन के साथ साथ पौधे (सकर्स) हजारौ की संख्या में समीपवर्ती क्षेत्रों के कृषकों को आपूर्ति भी करते हैं । आप को बड़ी इलायची की व्यवसायिक खेती का लम्बा अनुभव व तकनीकी ज्ञान है जिसे समय समय पर कृषकों से साझा करते रहते हैं। उत्कृष्ट कार्य करने के फलस्वरूप आपको कई सम्मानौं से भी नवाजा गया है।
 श्री जगत सिंह नेगी ग्राम पेलिंग, ऊखीमठ जनपद रुद्रप्रयाग भी भेषज संघ की प्ररेणा से बड़ी इलायची की व्यवसायिक खेती कर रहे हैं आप बड़ी इलायची के उत्पादन के साथ साथ  पौधे  उत्पादन कर कृषकों की मांग की पूर्ति करते हैं।
श्रीआशाराम नौटियाल ग्राम द्वारी घनसाली जनपद टेहरी भी बड़ी इलायची की व्यवसायिक खेती कर अच्छा आर्थिक लाभ कमा रहे हैं।
इसी प्रकार , जय प्रकाश सेमवाल,  मुकेश सेमवाल, सूर्य प्रकाश नौटियाल आदि भी विकास खण्ड जखोली जनपद रुद्रप्रयाग में बड़ी इलायची की व्यवसायिक खेती कर रहे हैं।
श्री हरीश जोशी, ग्राम – लोंगा मुल्ली सेरा , मयाली विकास खण्ड जखोली जनपद रुद्रप्रयाग से में दिनांक 29 नवम्बर 2015 को उनके निवास व कार्य क्षेत्र में मिला श्री जोशी  ने 2 नाली के खेत में बड़ी इलायची की कास्त की हुई थी उन्होंने 2012 में 100 पौधे लगा कर बड़ी इलायची की खेती की शुरुआत की दो बर्ष बाद याने 2014 से उन्हें उत्पादन प्राप्त होना शुरू हुआ 2015 में उन्हें दो नाली खेत से लगभग 25 किलो ग्राम बड़ी इलायची की उपज प्राप्त हुई जिसे उन्होंने 800 – 1000 रुपए प्रति किलो ग्राम की दर से ऋषिकेश में बेचा।
 और भी कई अन्य नाम है जो उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों में बड़ी इलायची की व्यवसायिक खेती सफलता पूर्वक कर रहे हैं व इस व्यवसाय से जुड़ कर अपनी आजीविका चला रहे हैं।
भूमि का चुनाव एवं मृदा परीक्षण-
जीवाँशयुक्त बलुई दोमट नम भूमि जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो सर्वोत्तम रहती है।
 जिस भूमि में बड़ी इलायची की खेती करनी है उस भूमि का मृदा परीक्षण अवश्य कराएं जिससे मृदा का जैविक कार्वन लेवल, पी.एच. मान (पावर औफ हाइड्रोजन या पोटेंशियल हाइड्रोजन ) व चयनित भूमि में उपलव्ध पोषक तत्वों की जानकारी मिल सके।
अच्छी उपज हेतु मिट्टी में जैविक/जीवांश कार्वन 0.8 तक होना चाहिए किन्तु अधिकतर स्थानों में यह   0.25 – 0.35 प्रतिशत ही पाया जाता है।
कार्बन पदार्थ कृषि के लिए बहुत लाभकारी है, क्योंकि यह भूमि को सामान्य बनाए रखता है। यह मिट्टी को ऊसर, बंजर, अम्लीय या क्षारीय होने से बचाता है। जमीन में इसकी मात्रा अधिक होने से मिट्टी की भौतिक एवं रासायनिक ताकत बढ़ जाती है तथा इसकी संरचना भी बेहतर हो जाती है।
जैविक कार्वन का मृदा में स्तर बढ़ाने हेतु जंगल में पेड़ों के नीचे की उपरी सतह की मिट्टी व गोबर/ कम्पोस्ट खाद का प्रयोग अधिक करें। जीव मृत का प्रयोग करने से भी जैविक कार्वन की मात्रा को बढाया जा सकता है।
 भूमि का पी. एच. मान 5 से 6 के बीच का हो तो बेहतर होता है । इस तरह की भूमि बड़ी इलायची की वृद्धि के लिए उत्तम होती है .
 पी.एच. मान मिट्टी की अम्लीयता व क्षारीयता का एक पैमाना है यह पौधों की पोषक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित करता है यदि मिट्टी का पी.एच. मान कम (अम्लीय)है तो मिट्टी में चूना या लकड़ी की राख मिलायें यदि मिट्टी का पीएच मान अधिक (क्षारीय)है तो मिट्टी में कैल्सियम सल्फेट,(जिप्सम) का प्रयोग करें।
 भूमि के क्षारीय व अम्लीय होने से मृदा में पाये जाने वाले लाभ दायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता कम हो जाती है साथ ही हानीकारक जीवाणुओ /फंगस में बढ़ोतरी होती है साथ ही मृदा में उपस्थित सूक्ष्म व मुख्य तत्त्वों की घुलनशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. जिस खेत में बड़ी इलायची की खेती की जा रही है उस खेत की मिटटी में प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन , फास्फोरस और पोटाश का होना बहुत जरूरी है . इसकी खेती अम्लीय दोमट मिटटी में सफलतापूर्वक की जाती है । लेकिन मिटटी में नमी की उचित मात्रा होनी चाहिए।
बड़ी इलायची की किस्में-
1.गोलसे Golsey 2.रामसे  Ramsey 3.सावने Sawney 4.रामला Ramla
कुछ स्थानीय किस्में भी अच्छा उत्पादन देती है। बड़ी इलायची की खेती आम तौर पर दो तरह से कर सकते हैं एक बड़ी इलायची के पौधे (सकर्स) ले कर सीधे खेत में रोपित करें या बीज लेकर पहले नर्सरी तैयार करें फिर तैयार पौधों को खेत में लगायें.
बड़ी इलायची के पौधों का रोपण-
अधिक तर कृषक बड़ी इलायची के पुराने पौधों से निकलने सकर्स (पौधे) को ही लगाते हैं। इलायची के पौधों का रोपण जुलाई या अगस्त के महीने में करें । नवम्बर दिसम्बर माह में भी पौधों का रोपण किया जा सकता है।
 बड़ी इलायची का एक पौधा 10 – 12 रुपए में मिल जाता है। पौधों को 1.5 x 1.5 याने लाइन से लाइन की दूरी 1.5 मीटर तथा लाइन में पौधे से पौधे की दूरी 1.5 मीटर रखें। पौध रोपण करने से पहले 30 सेंटीमीटर लम्बा , 30 सेंटीमीटर चौड़ा और 30 सेंटीमीटर गहरा गड्ढा खोद लें । खुदे गड्ढे की मिट्टी में ट्राइकोडर्मा से मिली हुई खूब सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर गड्डे में भर दें ।
इसके बाद पौधे को रोपित करें । एक नाली याने 200 वर्ग मीटर के खेत में 70 – 80 पौधे लगाने चाहिए। खेत के चारों और छाया हेतु बड़े पेड़ होने आवश्यक है , छाया में पौधों की अधिक वृद्धि होती है और हमे अधिक  उपज की प्राप्ति होती है ।
बड़ी इलायची की खेती आम, अमरूद, लीची अखरोट , संतरा , बांज आदि वृक्षों के नीचे भी कर सकते है। पौध रोपण के बाद खेत में सूखे पत्तों का खूब पलवार (मल्र्चिंग) बिछायें जिससे खेत में हर समय नमी बनी रहे।समय समय पर आवश्यकता अनुसार सिंचाई व निराई गुड़ाई करते रहे हैं।
बड़ी इलायची के पौधों में जून के अन्तिम सप्ताह से फ़ूल आने शुरू होते है उस समय से उपज लेने तक पौधों के चारों ओर सफाई रखना आवश्यक है। जिससे  परागण हेतु मधुमक्खी व अन्य कीटों का फूलों पर भ्रमण होता रहे। मधुमक्खियों की सुरक्षा हेतु खेत में व खेत के आसपास किसी भी रसायनिक कीटनाशक का छिड़काव न करें।
बड़ी इलायची  फसल की कटाई-
अक्टुबर/नवम्बर में फसल तैयार हो जाती है। फल आने पर स्पाइक  में ऊपर व नीचे दोनों फलों के पकने पर ही फल युक्त शाखा को जमीन से 45 सेमी. ऊपर से काटना चाहिए तथा फलों को अलग निकालकर छाया में सुखा लेना चाहिए।
उत्पादन
प्रथम व द्धितीय वर्ष में पौधा बढता व विकसित होता है तथा तीसरे व चौथे वर्ष में एक नाली भूमि से 10 – 12 किलोग्राम उपज प्राप्त हो सकती है तथा अच्छी उपज का औसत मूल्य रू. 800 – 1000/- प्रति किलोग्राम के करीब रहता है। तीसरे वर्ष से फल आने पर अगले 10 – 12 वर्षों तक अच्छी उपज व आय प्राप्त होती रहती है।
फसल को सुखाना व भंण्डारण-
पहाड़ी क्षेत्रों के वातावरण में नमी के कारण बड़ी इलायची के फलों को सुखाना एक बडी समस्या है पारंम्परिक फल सुखाने के तरीकों में सुधार की बहुत आवश्यकता है।
 पारम्परिक विधि से फलों को सुखाने हेतु बांस की चटाई में फैलाकर भट्टी में रख दिया जाता है तथा नीचे से आग जलाकर धुयें को चटाई के नीचे से निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में दो से तीन दिन लग जाते हैैं । धुऐं के सम्पर्क मे आने पर इलायची का रंग काला पड़ जाता है व फलों की सुगन्ध नमी व तेल की प्रतिशत मात्रा नियंत्रित नहीं हो पाती है।
वर्तमान में नई तकनीक में फलो को धुऐं के पाइप वाली भट्टी में इस प्रकार सुखाया जाता है कि भट्टी के नीचे वाले चैम्बर में आग जलाकर धुंआ ऊपर वाले चेम्बर के अन्दर से निकालकर चिमनी के रास्ते बाहर छोड़ा जाता है। पाइपों के ऊपर तार से बनी जाली में फलों को रखा जाता है जिससे ऊपर का चेम्बर गरम होकर फलों को सुखाता है। चेम्बर का तापमान 45-50 डिग्री सेन्टीग्रेड तक होना चाहिए जिससे फलों का रंग हल्का बैंगनी, सुगन्ध, तेल व तत्वों की मात्रा बनी रहे। इलाइची सुखाने हेतु सोलर ड्रायर का प्रयोग किया जा सकता है।
पूर्ण रूप से सूखे  फलों को पॉलीथीन से निर्मित थैलियों में भरना चाहिए। थैलियों को लकड़ी के बक्सों में इस प्रकार रखना चाहिए कि इनमें नमी न जा सके तथा फलों को फफूँदी से बचाया जा सके।
कृषकों को  योजनाओं में समय पर उन्नत किस्मों की पौध उपलब्ध कराकर, फसल ( फल) को सुखाने की आधुनिक तकनीक देकर तथा विपणन की उचित व्यवस्था कर  राज्य को सिक्किम राज्य की तरह बड़ी इलायची उत्पादन में अग्रणीय बनाया जा सकता है।