देहरादून/लोक संस्कृति
उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस में कोविड से निपटने की रणनीति से लेकर ई-वेस्ट के निस्तारण और फसलों का उत्पादन बढ़ाने जैसी नई तकनीकों पर विस्तार से चर्चा हुई।
यूकोस्ट के तत्वावधान में ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित 15 व 16वीं उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस का आज दूसरा दिन था। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस में देश भर से आये विशेषज्ञों ने विभिन्न प्रकार की चुनौतियों और उनसे बेहतरीन ढंग से निपटने के वैज्ञानिक तरीकों पर विस्तार से चर्चा की।
वैज्ञानिकों ने कोविड महामारी से दुनिया भर में मची तबाही का उल्लेख करते हुए कहा कि कोरोना ने हमें कई सबक दिए हैं। दवाओं को लेकर कई तरह के मतभेदों के बावजूद कोविड ने सिखाया है कि उपचार के लिए केवल एक पद्धति पर निर्भर रहने के बजाय हमें इम्युनिटी बढ़ाने और बचाव के दूसरे तरीकों को भी उपयोग में लाना चाहिए। ये सही समय है कि हमें ऐसी परिस्थितियों के लिए परम्परागत आयुर्वेद पर हुए अध्ययनों और साक्ष्यों से प्रमाणित आयुर्वेद का भी लाभ उठाना चाहिए।
वैज्ञानिकों ने कहा कि समाज, सरकार और प्रशासन को वैज्ञानिक तरीकों से ऐसी आपदाओं से निपटने की तैयारी करके उसे अमल में लाना चाहिए। ऐसी आपदाओं और संक्रमण के समय में पूरे समाज को सामाजिक और व्यक्तिगत तौर पर आगे आकर योगदान देना चाहिए। तकनीकी सत्र में आपदाओं से निपटने के लिए मजबूत हैल्थ केयर इंफ्रास्ट्रक्चर और उसका बेहतरीन उपयोग करने की व्यवस्था पर ध्यान देने की जरूरत बताई।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस में किसी आपदा के दौर में प्रवासी मजदूरों को परेशानियों से बचाने और व्यावसायिक गतिविधियों को जारी रखने की व्यवस्थाएं पहले से तैयार रखने पर जोर दिया। विशेषज्ञ वक्ताओं ने आपदा के दौर में किसानों, गरीबों और प्रभावित लोगों की मदद के लिए उठाये गए कदमों का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को सराहा।
सी.एस.आई.आर. की इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय बायो रिसोर्स टेक्नोलॉजी के निदेशक डॉ संजय कुमार ने विज्ञान कांग्रेस में कहा कि हिमालय क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों का वैज्ञानिक तरीकों से उपयोग करके बायो इकनॉमी में क्रांतिकारी बदलाव लाए जा सकते हैं। उन्होंने अपने अनुभव बताते हुए कहा कि एग्रो टेक्नोलॉजी के उपयोग से स्टीविया, केशर, हींग, इलायची जैसी फसलों का उत्पादन बहुत बढ़ जाता है।
हिमालय के कोल्ड डेजर्ट लाहौल में लिलियम उगाने और मिजोरम सेब का उत्पादन करने में कामयाबी मिली है। इससे किसानों की आय परम्परागत फसलों के मुकाबले पांच गुनी बढ़ गई है। लाहौल में ट्यूलिप की खेती शुरू करने से पर्यटकों की संख्या भी बढ़ गई है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि देश में आठ लाख टन से ज्यादा इलेक्ट्रानिक वेस्ट हर साल पैदा हो रहा है। ई-वेस्ट को कम करने के लिए लोगों को जागरूक करने और उपयोगशुदा बल्ब, ट्यूबलाइट को ठीक करना सिखाने के बहुत अच्छे परिणाम निकल सकते हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस में हिमालय क्षेत्र में पर्यावरण के बदलाव से जल स्रोतों को बचाने के लिए जागरुकता लाने और तकनीकों के उपयोग पर जोर दिया गया।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस के दूसरे दिन आज ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी में 14 स्थानों पर वैज्ञानिक व तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। इनमें कृषि विज्ञान, बायो टेक्नोलॉजी, बॉटनी, कैमिस्ट्री, इंजीनियरिंग साईंस एंड टेक्नोलॉजी, पर्यावरण विज्ञान एवं वानिकी, मेडिकल साईंस, मैटेरियल साईंस और नैनो टेक्नोलॉजी जैसे विषयों पर विशेषज्ञों ने विस्तार से चर्चा की।
विज्ञान कांग्रेस में बीएचयू प्रो जितेंद्र सिंह वोहरा, कुरूक्षेत्र यूनिवर्सिटी से प्रो. सुमन सिंह, दिल्ली यूनिवर्सिटी से प्रो एस बी बब्बर, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के डॉ वीरेंद्र सिंह राणा, अटल बिहारी वाजपेई इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट, ग्वालियर के डॉ एस एन सिंह, पेटेंट सेंटर के निदेशक डॉ यशवंत पंवार, मैडी कैप्स यूनिवर्सिटी, इंदौर के प्रो एस डी उपाध्याय, जेएनयू के प्रो पवन कुमार जोशी, पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रो. विनय कंवर, कोलकाता के डॉ कैलाश चंद्र, दिल्ली के प्रो. बेनीधर देशमुख, डीएसटी की वैज्ञानिक डॉ रजनी रावत समेत देश के प्रमुख वैज्ञानिक और विशेषज्ञ शिरकत कर रहे हैं।
यूकोस्ट के महानिदेशक डॉ राजेंद्र डोभाल, ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ एच एन नागराजा और महानिदेशक डॉ संजय जसोला भी कांग्रेस के दूसरे दिन का आयोजनों में शामिल रहे। इस मौके पर रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए गये।