देहरादून के चकरायपुर और उसके आसपास की लगभग 350 बीघा जमीन को लेकर विवाद है। यह सरकारी भूमि है लेकिन इसे निजी संपत्ति के तौर पर संतोष अग्रवाल बेचने के प्रयास कर रहा है। कई लोगों को भूमि बेच भी दी गयी है। आरटीआई में खुलासा हुआ है कि तहसील में इस संपत्ति के दस्तावेज ही मौजूद नहीं हैं। एडवोकेट विकेश नेगी के मुताबिक दस्तावेज न होने से साबित होता है कि यह भूमि सरकारी है और इसको खुर्द-बुर्द किया जा रहा है।
देहरादून के रिंग रोड पर सूचना भवन के आसपास की जमीन पर कई बोर्ड लगे हैं कि यह संपत्ति संतोष अग्रवाल की है। जबकि इस भूमि को लेकर 1974 में ही विवाद था और इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। सीलिंग से बचने के लिए इस जमीन पर चाय बागान लगाने की कोशिश की गयी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दस अक्टूबर के बाद इस भूमि की कोई सेलडीड बनती है तो यह जमीन सरकार की मान ली जाएगी।
एडवोकेट विकेश नेगी के मुताबिक इंद्रावती अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद 17 जून 1988 को 35 बीघा जमीन की सेल डीड बना दी और इस भूमि का दाखिला खारिज 19 मार्च 2020 को हुआ। इस आधार पर यह गैरकानूनी है। एडवोकेट विकेश नेगी ने के अनुसार उन्होंने इस भूमि को लेकर सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी कि इसके सत्यापित दस्तावेज उपलब्ध कराए जाएं। लेकिन अपर तहसीलदार सदर ने बताया कि वाद संख्या 75/87 इंद्रावती बनाम कुंवर चंद्र बहादुर मौजा चकरायपुर का फैसला जो कि 17 जून 1988 को किया गया था उसके दस्तावेज नहीं हैं।
आरटीआई एक्टिविस्ट विकेश नेगी के अनुसार साफ है कि इस भूमि को लेकर गोलमाल है और इसके पीछे बड़ी साजिश है। इसका उच्चस्तरीय जांच से ही खुलासा हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह भूमि बेशकीमती है और सरकार चाहे तो इस जमीन पर उन विभागों के कार्यालय बना सकती है जो विभाग किराए के भवन में चल रहे है। इससे सरकार का किराया भी बचेगा और सरकारी जमीन को खुर्द-बुर्द भी नहीं किया जा सकेगा।